RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
दरीबा कलां !
यह जगह दिल्ली में चांदनी चौक के नजदीक ही है ।
उस समय रात के ग्यारह बज रहे थे, सर्राफे की रिटेल मार्केट के रूप में प्रसिद्ध दरीबा कलां की तब तक लगभग हर दुकान बंद हो चुकी थी । सिर्फ अपवाद के तौर पर एक दुकान खुली थी, जिसके शटर के ऊपर एक नियोन साइन बोर्ड जल-बुझ रहा था ।
उस नियोन साइन पर लिखा था-
सेठ दीवानचन्द एण्ड सन्स
सनमाइका के विशाल काउण्टर के पीछे सेठ दीवानचन्द एण्ड सन्स का एक सेल्समैन खड़ा था ।
सेल्समैन ने सबसे पहले अपना चश्मा दुरुस्त किया, फिर तीक्ष्ण दृष्टि काउंटर पर कोहनी टिकाये खड़े राज पर डाली और उसके बाद अपनी बेहद पारखी नजरों से उस नटराज मूर्ति को देखने लगा, जिसे राज ने अभी-अभी उसे बेचने की खातिर सौंपी थी ।
मूर्ति देखते-देखते सेल्समैन की आंखों में एकाएक हैरानी के चिन्ह उभरने लगे ।
फिर उसने घोर आश्चर्य से पूछा- “य...यह मूर्ति तुम्हारे पास कहाँ से आयी ?”
“मैंने चुराई है ।” राज ने बड़ी दिलेरी के साथ जवाब दिया ।
“च...चुराई है ?” एक पल के लिये सेल्समैन के होश उड़ गये ।
“हाँ ।”
“अगर यह चोरी की हैं, तो तुम इसे यहाँ क्यों लेकर आये हो ?” सेल्समैन थोड़ा भड़ककर बोला- “हम चोरी का माल बिल्कुल नहीं खरीदते, समझे !”
मुस्कराया राज ।
उसकी ‘मुस्कान’ ने सेल्समैन को और ज्यादा सस्पेंस में फंसा दिया- “त...तुम मुस्करा क्यों रहे हो ?”
“क्योंकि मुझे सब मालूम है बिरादर !” राज बोला- “मैं जानता हूँ कि तुम और तुम्हारे सेठजी रात के दो-दो बजे तक यहाँ बैठकर क्या करते हैं ।”
“क्या करते हैं ?” सेल्समैन ने अपनी आंखें लाल-पीली कीं ।
“देखो, मैं यहाँ लड़ाई-झगड़ा करने नहीं आया ।” राज ने अपनी आवाज नरम की- “अगर तुम्हारी इच्छा हो, तो मूर्ति खरीदो । न इच्छा हो, तो मना करो ।” उसके बाद राज ने सेल्समैन के हाथ से अपनी इकलौती नटराज मूर्ति ले ली और फिर चलने का उपक्रम करता हुआ बोला- “वैसे एक बात कहूँ ?”
“कहो ।”
“मेरे जिस दोस्त ने मूर्ति बेचने के लिये मुझे यहाँ का एड्रेस दिया था, वह एड्रेस गलत नहीं हो सकता । क्योंकि मेरा दोस्त बहुत भरोसे वाला आदमी है और उसने अपने जीते जी कभी कोई गलत बात जबान से बाहर नहीं निकाली ।”
वह बात कहने के बाद राज जैसे ही जाने के लिए मुड़ा ।
“सुनो !” सेल्समैन ने फौरन उसे पुकारा ।
राज ठिठका ।
“क्या है ?”
“तुम अपने उस दोस्त का नाम बता सकते हो, जिसने तुम्हें यहाँ का एड्रेस दिया ?”
अब राज सकपकाया ।
उसे एकाएक कोई जवाब न सूझा ।
“बताया नहीं तुमने, तुम्हारे दोस्त का क्या नाम है?”
“च...चीना… चीना पहलवान ।” राज के मुँह से चीना पहलवान का नाम अनायास ही निकल गया- “च...चीना पहलवान ने मुझे यहाँ का एड्रेस दिया था ।”
चीना पहलवान !
उस नाम को सुनकर सेल्समैन के नेत्र यूं अचम्भे से फटे, मानो उसके सिर पर एकाएक बम आकर गिर गया हो ।
“त...तुम चीना पहलवान के दोस्त हो ?” सेल्समैन के मुँह से सिसकारी छूटी ।
“हाँ ।”
“ठीक है, तुम मुझे मूर्ति दिखाओ ।” सेल्समैन आश्चर्यपूर्ण मुद्रा में ही बोला- “मैं अभी अंदर सेठ जी से बात करके आता हूँ ।”
राज ने खुशी-खुशी मूर्ति उसे सौंप दी।
सेल्समैन मूर्ति लेकर दुकान के अंदर वाले पोर्शन में चला गया ।
राज नहीं जानता था, अब वो एक और कितनी बड़ी आफत में फंसने जा रहा है ।
कितनी बड़ी मुश्किल उसके सिर पर टूटने वाली है ।
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दरअसल ‘सेठ दीवानचंद एण्ड संस’ की ज्वैलरी शॉप दो पोर्शन में बंटी हुई थी ।
एक फ्रंट पोर्शन !
जबकि दूसरा फ्रंट पोर्शन से ही होता हुआ अंदर का पोर्शन ।
उस अंदर के पोर्शन में ही सर्राफों के सर्राफ सेठ दीवानचंद बैठते थे और वहाँ तक सिर्फ सेल्समैन की पहुँच थी, वहाँ कोई कस्टमर नहीं जा सकता था ।
वह सर्राफे की दुकान रोजाना रात के दो बजे तक खुलती थी । इतना ही नहीं, तब तक वहाँ राज जैसे इक्का-दुक्का ग्राहक भी आते रहते थे ।
ऐसे ही कई ग्राहकों को राज पहले भी कई मर्तबा अपनी ऑटो रिक्शा में बिठाकर वहाँ लाया था । उनमें से कुछेक ग्राहक नशे में बुरी तरह धुत्त होते और वह ऑटो में बैठे-बैठे सेठ दीवानचंद को माल बेचकर बस रुपया हासिल होने की बात करते रहते । राज को तभी मालूम हुआ, रात के समय वहाँ कौन-सा धंधा होता है ।
इस समय राज फ्रंट पोर्शन में बिल्कुल अकेला खड़ा था ।
ज्वैलरी के वहाँ जितने भी शोकेस थे, वह सब लॉक्ड थे, ताकि कोई उनके साथ छेड़छाड़ न कर सके ।
राज ने अपने चेहरे पर नकली दाढ़ी-मूंछे भी चिपकाई हुई थीं।
उसे वहाँ खड़े-खड़े दस मिनट से भी ज्यादा गुजर गये, लेकिन सेल्समैन अंदर वाले पोर्शन से बाहर न निकला ।
अब राज बेचैन हो उठा ।
“क...क्या चक्कर है ? यह बाहर क्यों नहीं आ रहा ?”
राज बेचैनीपूर्वक इधर-से-उधर टहलने लगा ।
पांच मिनट और इसी तरह गुजर गये, लेकिन सेल्समैन फिर भी बाहर न निकला ।
अब राज की बेचैनी हद से ज्यादा बढ़ चुकी थी ।
उसके दिमाग में रह-रहकर खतरे की घण्टियां बजने लगी ।
“ज...जरूर कुछ चक्कर है ?”
“ज...जरूर कुछ घपला है ?”
“भाग राज, भाग !”
“भाग !”
राज के माथे पर पसीने चुहचुहाने लगे ।
एकाएक राज बड़ी फुर्ती के साथ ज्वैलरी शॉप से बाहर निकला और नजदीक ही बने कारपोरेशन के पेशाबघर में जा घुसा ।
पेशाबघर की जालियों के पीछे से ज्वैलरी शॉप का नजारा बिल्कुल साफ देखा जा सकता था ।
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