RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
तभी घटना ने एक और नया मोड़ लिया ।
राज ने देखा- उसके पेशाबघर में घुसते ही भड़ाक से सेकंड पोर्शन का दरवाजा खुला था, फिर उसमें से सेल्समैन के साथ-साथ बुरी तरह हड़बड़ाया एक और आदमी भी बाहर निकला ।
जरूर वह सेठ दीवानचंद था ।
उसकी उम्र तक़रीबन चालीस-पैंतालीस के बीच थी । गेंहुआ रंग, लम्बी-चौड़ी कद काठी, साधारण सेठों की भांति उसका शरीर थुलथुला होने की बजाय काफी तंदरुस्त था । उसने काले रंग का बंद गले का कोट और काली पैंट के साथ ही अपने गले में ढेरों किस्म की रंग-बिरंगी मालायें भी पहनी हुई थीं । दोनों हाथों में रत्नजड़ित अंगुठियां थीं । कुल मिलाकर सेठ दीवानचंद अपने पहनावे से ही धनकुबेर नजर आ रहा था । लेकिन उसके चेहरे पर ऐसी क्रूरता विद्यमान थी, जो ज्यादातर खतरनाक अपराधियों के चेहरे पर ही पाई जाती है ।
राज को ज्वैलरी शॉप के अंदर से गायब देख वह दोनों चौंके ।
“य...यह कहाँ गया?” सेल्समैन की साफ-साफ भौंचक्की आवाज राज के कानों में पड़ी ।
“वडी तेरे को ही मालूम होगा नी, कहाँ गया ?” सेठ दीवानचंद अपनी 'सिन्धी' भाषा में बोला-"मेरे से क्या पूछता है नी ?”
“ल...लेकिन अभी तो यहीं था ।” सेल्समैन दौड़कर ज्वैलरी शॉप से बाहर निकला और सड़क पर दायें-बायें देखने लगा- “अभी-अभी में वो कहाँ गायब हो गया ?”
पेशाबघर में छिपा राज माजरा समझ पाता, तभी उसके देखते ही देखते सेठ दीवानचंद की ज्वैलरी शॉप के सामने एक फियेट धड़धड़ाती हुई आकर रुकी ।
फिर फियेट में से एक-एक करके दनादन तीन मवाली बाहर कूदे ।
दो के हाथ में हॉकियां थीं ।
एक के हाथ में साइकिल की चैन ।
नीचे कूदते ही उन्होंने सेठ दीवानचंद और सेल्समैन से धीरे-धीरे कुछ बातें कीं, उनके हाव-भाव बता रहे थे कि चर्चा उसी के बारे में हो रही है ।
“वह जरूर इधर गया है ।” तभी सेल्समैन ने गली में दायीं तरफ उंगली उठाई ।
“तुमने देखा था उसे भागते हुए ?” एक गुण्डे ने सेल्समैन से पूछा ।
“न...नहीं ।” सेल्समैन सकपकाया- “भागते हुए तो नहीं देखा ।”
“फिर क्या गारंटी है कि वो इसी तरफ गया है ?” दूसरा गुण्डा बोला- “सम्भव है कि वो इस तरफ गया हो ।” गुण्डे ने दूसरी दिशा में उंगली उठाई ।
“वडी तुम लोग यूं ही बक-बक किये जाओगे नी ।” सेठ दीवानचंद झल्ला उठा- “या फिर दौड़कर उस हरामी को पकड़ोगे भी । भई सब हर तरफ फैल जाओ, वह जिस तरफ भी भागा होगा, अपने आप पकड़ा जायेगा ।”
सेठ दीवानचंद के तर्क में जान थी ।
फौरन वह तीनों मवाली और सेल्समैन अलग-अलग दिशाओं में दौड़ पड़े ।
जबकि पेशाबघर में छिपे राज का दिमाग सुनसान पड़ी वीरान घाटियां बन चुका था ।
उसके मस्तिष्क में रह-रहकर एक ही सवाल डंके की तरह बज रहा था- “सेठ दीवानचंद को उसके पीछे गुण्डे लगाने की क्या जरूरत थी ?”
“वह इस तरह उसे क्यों ढूंढ रहे थे ?”
“क्या चक्कर था ?”
राज को लगा- जैसे रहस्य का जाल हर पल उसके चारों तरफ कसता जा रहा हो ।
कसता ही जा रहा हो ।
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उस दिन राज चोरों की तरह छिपता-छिपाता सोनपुर में दाखिल हुआ, दरीबा कलां से वहाँ तक का रास्ता उसने दौड़कर पूरा किया था ।
इसलिए उसकी सांस बेहद तेज चल रही थी ।
आज वो एक नये संकट में फंसते-फंसते बचा था, यह तो ऊपर वाले की कृपा थी कि वह आज डॉली के पास से सिर्फ एक ही नटराज मूर्ति लेकर चला था, वरना आज उन तमाम नटराज मूर्तियों से उसे हाथ धोना पड़ता ।
सोनपुर में आकर राज ने चैन की सांस ली, लेकिन उसे कहाँ मालूम था कि अब चैन उसकी किस्मत से पूरी तरह छिन चुका है ।
नकली दाढ़ी-मूंछे वो पेशाबघर में ही उतार चुका था ।
तभी उसके साथ एक और घटना घटी ।
खतरनाक घटना ।
रोजाना की तरह उस दिन भी सोनपुर में सन्नाटा फैला था । तभी एकाएक राज को अपने पीछे सरसराहट-सी सुनाई दी ।
“क...कौन है ?”
राज जैसे ही बौखलाकर पलटा, तुरन्त उसके मुँह से हृदयविदारक चीख निकल गयी ।
एक लम्बे फल वाला चाकू बिजली की तरह चमचमाता हुआ अंधेरे में कौंधा था और फिर उसके बायें बाजू से रगड़ खाकर गिरा ।
अगर राज से पलटने में एक क्षण का भी देर हो जाती, वह चाकू उसकी पीठ में आर-पार जा धंसना था ।
एकाएक हुए इस हमले से राज के होश फना हो गये ।
अंधेरा होने के बावजूद उसने हमलावर को बिल्कुल साफ-साफ पहचाना, चाकू बल्ले ने चलाया था ।
बल्ले !
यानि सोनपुर का नम्बर एक गुण्डा ।
बल्ले, राज पर दोबारा हमला करने के लिये पुनः चाकू के ऊपर झपटा ।
“क्या हुआ? क्या हुआ?”
उसी क्षण भड़ाक से डॉली के घर का दरवाजा खुला और फिर वह लगभग चीखती-चिल्लाती राज की तरफ लपकी ।
डॉली द्वारा एकदम से मचायी चीख-पुकार से घबराकर बल्ले भाग खड़ा हुआ ।
“क्या हुआ राज, क्या हुआ ?”
डॉली दौड़कर राज के करीब पहुँची और उसने उसे अपनी बांहों में भर लिया ।
“व...वो...वो...।” राज की दहशत के मारे बुरी हालत थी ।
“क्या हुआ ?”
“व...वो बल्ले मुझे चाकू मारकर भाग गया ।”
“व...वो बल्ले था ?” डॉली के मुँह से सिसकारी छूटी ।
डॉली भी घबरा उठी ।
“ह...हाँ, वो बल्ले ही था ।”
“चल, तू जल्दी घर चल राज !”
“ल...लेकिन बात क्या है ?”
“तूने सुना नहीं ।” डॉली गुर्रा उठी- “जल्दी घर चल ।”
“म...मगर... !”
राज के आगे के तमाम शब्द अधूरे रह गये, क्योंकि बुरी तरह दहशतजदां डॉली ने उसकी शर्ट का कॉलर पकड़ा था और फिर वह उसे लगभग घसीटती हुई घर की तरफ ले गयी ।
किसी भूसे के बोरे की तरह उसने राज को चारपाई पर पटका और फिर बेपनाह फुर्ती के साथ दरवाजा बंद करती हुई बोली- “तेरे पीछे यहाँ पुलिस आयी थी बेवकूफ ।”
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