RE: Thriller Sex Kahani - हादसे की एक रात
“प...पुलिस !”
वह ‘शब्द’ राज के दिमाग में इस तरह टकराया, मानो धायं से राइफल की गोली लगी हो ।
शरीर फ्रीज !
हाथ-पैर सुन्न !
चेहरे का रंग उड़ गया ।
थर-थर कांपते स्वर में पूछा उसने- “ल...लेकिन पुलिस यहाँ क्यों आयी थी ?”
“तुझे पकड़ने आयी थी ।” डॉली ने एक और भयंकर धमाका किया- “गिरफ्तार करने आयी थी तुझे ।”
“ग...गिरफ्तार करने ।” राज का जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया- “य...यह तू क्या कह रही है डॉली ?”
“वही कह रही हूँ बेवकूफ, जो सच है ।” डॉली ने दांत किटकिटाये- “पुलिस की एक पूरी जीप भरकर सोनपुर में आयी थी, वह तेरे बारे में ही पूछताछ कर रहे थे । कोई इंस्पेक्टर योगी नाम का बड़ा कड़क पुलिसिया था, वह बोलता था कि तूने चीना पहलवान का खून किया है ।”
“ख...खून ! च...चीना पहलवान का खून !!!” राज इस तरह थर-थर कांपने लगा, जैसे जूड़ी का मरीज कांपता है ।
“उस इंस्पेक्टर ने मोहल्ले वालों के सामने तेरे घर का ताला भी तोड़ा और वहाँ की तलाशी भी ली ।”
“फ...फिर मिला उसे कुछ वहाँ से ?”
“कहाँ से मिलता ?” डॉली गुर्रायी- “मूर्तियां तो तूने मेरे पास रख छोड़ी हैं । राज, मैं तेरे से पहले ही बोलती थी, कोई भी अपराधी पुलिस के फंदे से ज्यादा दिन तक नहीं बचा रह सकता । अब देख तेरी तमाम चालाकियों के बावजूद, तेरी तमाम योजना के बावजूद पुलिस तेरे तक कितनी जल्दी पहुँच गयी । कितनी जल्दी तेरी करतूत का पर्दाफाश हो गया ।”
उस हादसे ने राज की खोपड़ी और ज्यादा फिरकनी की तरह घुमाकर रख दी ।
“ल...लेकिन मेरे एक बात समझ नहीं आयी ।” राज झल्लाकर बोला- “इंस्पेक्टर योगी को इतनी जल्दी यह हकीकत कैसे मालूम हो गयी कि चीना पहलवान की लाश हम दोनों ने ठिकाने लगायी थी ?”
“हम दोनों ने नहीं ।” डॉली नागिन की तरह फुंफकार उठी- “हम दोनों ने नहीं राज- सिर्फ खुद को बोल । मैं तेरे इस बेहद खतरनाक और जानलेवा चक्कर में नहीं पड़ने वाली ।”
“मैं ही सही, लेकिन इंस्पेक्टर योगी को यह खबर हुई कैसे ?” राज विचलित मुद्रा में बोला- “उसने यह कैसे पता लगाया कि चीना पहलवान की हत्या में या उसकी लाश ठिकाने लगाने में मेरा कैसा भी कोई हाथ था ?”
“मुझे क्या मालूम ? इंस्पेक्टर योगी को किस तरह मालूम हुआ ? पुलिस वालों के अपने सोर्स होते हैं । जांच करने का अपना स्टाइल होता है । जरूर इंस्पेक्टर योगी ने किसी तरह यह सारी हकीकत पता लगा ली होगी ।”
राज के दिमाग में धमाके होने लगे ।
तेज धमाके ।
☐☐☐
सारी घटनायें इतनी सुपर फास्ट स्पीड से घट रही थीं, जिनकी राज ने कल्पना भी न की थी ।
हर क्षण चौंका देने वाला था ।
हर कदम रहस्य से भरा हुआ ।
तभी डॉली ने एक और भयंकर विस्फोट किया ।
“जानता है बल्ले कौन है ?” डॉली का सनसनाया स्वर ।
“क...कौन है ?”
“वो चीना पहलवान का सगा भतीजा है ।”
“भ...भतीजा ? च...चीना पहलवान का भतीजा ?”
“हाँ ।”
“क...कमाल है, पहले तो मुझे यह बात मालूम नहीं थी ।”
“सिर्फ तुझे क्या, सोनपुर में पहले यह बात किसी को मालूम नहीं थी ।” डॉली बोली- “एक बात सुनकर तू और हैरान होगा राज, चीना पहलवान रहता भी सोनपुर में ही था । आगे जो कोने वाला मकान है, उसी में ।”
“यह कैसे हो सकता है ?” राज के मुँह से तेज सिसकारी छूटी- “अ...अगर चीना पहलवान सोनपुर में ही रहता था, तो वह पहले कभी दिखाई क्यों नहीं दिया ? जबकि मैंने पहले उसे किशनपरा में तो क्या पूरी दिल्ली में कहीं नहीं देखा था ।”
“मैंने खुद पहली कभी उसे सोनपुर में नहीं देखा था ।” डॉली बोली- “दरअसल वह आधी रात के समय कभी-कभार ही उस घर में आता था, जिसमें बल्ले रहता है । इसलिये हममें से कोई भी उसे न देख सका ।”
“ओह ।”
सचमुच सारी परिस्थितियां बेहद चौंका देने वाली थीं । चौंका देने वाली भी और हद से ज्यादा सस्पेंसफुल भी ।
“चीना पहलवान की लाश का क्या हुआ ?”
“वह शाम तक ताबूत में बंद शवगृह के अंदर रखी थी । इंस्पेक्टर योगी बता रहा था कि लावारिस लाशों को तीन-चार दिन तक इसलिये शवगृह में रखा जाता है कि क्या पता उन्हें कोई हासिल करने वाला आ ही जाये । अगर कोई नहीं आता, तो फिर उन लावारिस लाशों का सरकार ही दाह-संस्कार कर देती है । आज इंस्पेक्टर योगी की बल्ले से मुलाकात न होती, तो बहुत मुमकिन था कि चीना पहलवान की लाश को भी लावारिस समझकर सरकार ही उसका दाह संस्कार कर देती ।”
“इ...इसका मतलब इंस्पेक्टर योगी भी इस बात से वाकिफ नहीं था ।” राज भौंचक्के स्वर में बोला- “कि चीना पहलवान बल्ले का चाचा है ?”
“नहीं, अगर इंस्पेक्टर योगी इस बात से वाकिफ होता, तो सुबह ही बल्ले को चीना पहलवान की हत्या की इन्फॉर्मेशन न दे दी जाती । दरअसल बल्ले को तो अपने चाचा की मौत की खबर तब मिली, जब इंस्पेक्टर योगी तुझे गिरफ्तार करने सोनपुर आया था ।”
“ओह !” राज भयभीत मुद्रा में बोला- “तब तो बल्ले बहुत भड़क रहा होगा ?”
“भड़कता ही । आखिर उसके चाचा की हत्या हुई थी, वह इंस्पेक्टर योगी के सामने ही खूब गरज-गरजकर कह रहा था कि अगर राज ने उसके चाचा को मारा है, तो वह राज को किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ेगा, उसे भी मार डालेगा ।”
राज के शरीर में झुरझुरी दौड़ गयी ।
अब सारा माजरा उसकी समझ में आया ।
अब वो समझा कि सोनपुर में घुसते ही बल्ले ने उसके ऊपर जानलेवा हमला क्यों किया था ।
☐☐☐
“बल्ले जब चिल्ला-चिल्लाकर मुझे जान से मार डालने के लिये कह रहा था ।” राज अपने शुष्क होठों पर जबान फिराता बोला- “तो इंस्पेक्टर योगी ने उससे कुछ नहीं कहा ?”
“वह क्या कहता? आखिर चाचा मरा था बल्ले का । इसलिये उसका यूँ गुस्से में गरजना-बरसना जायज ही था । कौन सदमे की हालत में इस तरह की बातें नहीं बोलता ।”
“एक बात कहूँ राज ?” डॉली ने अपलक उसे देखते हुए कहा ।
“क्या ?”
“जरूर बल्ले बहुत देर से सोनपुर में तेरे आने का इंतजार कर रहा होगा, जो उसने यूं एकदम से तेरे ऊपर हमला कर दिया ।”
राज के गले की घण्टी जोर से उछली ।
“ल...लेकिन मुझे यह थोड़े ही मालूम था ।” राज सकपकाये स्वर में बोला- “कि चीना पहलवान, बल्ले का चाचा है । फिर चीना पहलवान ने भी तो मुझे कल रात यह बात नहीं बतायी कि वो सोनपुर में ही रहता है । अगर उसने मुझे यह बात बतायी होती, तो फिर क्या मैं पागल था, जो उससे मूर्तियां हड़पने की सोचता । फिर यह बात भी बड़ी अजीबोगरीब है कि सोनपुर में आने के बाद भी चीना पहलवान अपने घर नहीं गया बल्कि मेरे घर आया । वाकई एक के बाद एक नये-नये मायाजाल जन्म ले रहे हैं ।”
“इस बात के पीछे तो एक सॉलिड वजह हो सकती है, जो चीना पहलवान अपने घर नहीं गया ।”
“क्या सॉलिड वजह हो सकती है ?”
“मत भूलो, चीना पहलवान के पास सोने की छः बेशकीमती मूर्तियां थीं । मुमकिन है कि उन बहुमूल्य मूर्तियों को लेकर चीना पहलवान ने अपने भतीजे के पास जाना मुनासिब न समझा हो । आखिर उसका भतीजा था तो एक गुण्डा ही, मवाली ही । क्या पता चीना पहलवान को यह शक हो कि अगर वो मूर्तियां लेकर बल्ले के पास गया, तो बल्ले उन मूर्तियों को डकार जायेगा ।”
डॉली काफी हद तक ठीक कह रही थी ।
यह बात संभव थी ।
“भू...राज, अब तू जितनी जल्दी हो सके, यहाँ से चला जा ।”
“क...क्यों ?”
“पागल आदमी !” डॉली दांत किटकिटाकर बोली- “तू नहीं जानता, तुझे गिरफ्तार करने यहाँ कभी भी इंस्पेक्टर योगी आ सकता है । फिर बल्ले के सिर पर भी खून सवार है, वो इतनी आसानी से खामोश बैठने वाला नहीं है । इस बार तो उसका वार खाली चला गया, लेकिन बहुत मुमकिन है कि उसका दूसरा वार खाली न जाये ।”
राज का पोर-पोर कांप उठा ।
“इसलिए जितना जल्द से जल्द हो ।” डॉली बोली- “यहाँ से चला जा ।”
“ल...लेकिन मैं इतनी रात को कहाँ जाऊं ?”
“कहीं भी जा ।” डॉली का स्वर जज्बाती हो उठा- “लेकिन अगर तुझे अपनी जान की थोड़ी-सी भी परवाह है, अपने हाथ-पैरों को हिलते-डुलते देखना चाहता है, तो सोनपुर में एक सेकेंड के लिये भी मत रुक । वरना तू खामख्वाह अपनी इस जिंदगी से हाथ धो बैठेगा ।”
राज के शरीर से पसीने की धारायें छूटने लगीं ।
कैसी विचित्र हालत हो गयी थी उसकी ।
सोनपुर के अलावा उसका कहीं कोई और ठिकाना भी तो नहीं था, जहाँ वो जाता ।
“अब खड़े-खड़े सोच क्या रहा है ?”
राज मरे-मरे कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ा ।
“और सुन !”
राज के कदम ठिठक गये ।
“उस मूर्ति का क्या हुआ, जिसे तू बेचने गया था ?” डॉली जल्दी से उसके सामने पहुँचकर बोली ।
‘मूर्ति’ के नाम राज की गर्दन लटक गयी ।
“बताता क्यों नहीं, क्या हुआ मूर्ति का ? क्या वो बिक गयी ?”
“न...नहीं ।”
“फिर ?”
राज ने फंसे-फंसे स्वर में पूरी घटना डॉली को बता दी ।
डॉली हैरानी से उसे देखती रह गयी ।
“कोई बात नहीं ।” फिर डॉली ने उसकी हिम्मत बंधाई- “मूर्ति गयी, तो गयी । जिंदगी बची रहनी चाहिये । इंसान की जिंदगी सलामत रहे, तो हजार मर्तबा उसके सामने धनवान बनने के मौके आते हैं ।”
राज चुप रहा ।
“अब तू जा, जल्दी जा । तेरा यहाँ ज्यादा ठहरना ठीक नहीं है ।”
राज पुनः मरे-मरे कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़ गया ।
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