RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
मैं सड़क के बीचो बीच था , सड़क जो मेरे गाँव और शहर को जोडती थी . गाड़ी के ब्रेक लगे एक तेज आवाज के साथ . .........
“अबे, मरना है क्या , ” ड्राईवर चीखा
मैं- जा भाई .....
तभी पीछे बैठी औरत पर मेरी नजर पड़ी , ये सविता थी , हमारे गाँव के स्कूल की हिंदी अध्यापिका .
मैं- अरे मैडम जी आप, इतनी रात.
मैडम- कबीर तुम, इतनी रात को ऐसे क्यों घूम रहे हो सुनसान में देखो अभी गाड़ी से लग जाती तुम्हे . खैर, आओ अन्दर बैठो.
मैं- मैं चला जाऊंगा .
मैडम- कबीर, बेशक तुमने पढाई छोड़ दी है पर मैं टीचर तो हूँ न.
मैं गाड़ी में बैठ गया.
मैं- आप इतनी रात कहाँ से आ रही थी .
मैडम-शहर में मास्टर जी के किसी मित्र के समारोह था तो वहीँ गयी थी .
मैं- और मास्टर जी .
मैडम- उन्हें रुकना पड़ा , पर मुझे आना था तो गाड़ी की .
मैं- गाँव के बाहर ही उतार देना मुझे.
मैडम- मेरे साथ आओ, मेरा सामान है थोडा घर रखवा देना
अब मैं सविता मैडम को क्या कहता
सविता मैडम हमारे गाँव में करीब १६-१७ साल से रह रही थी , उनके पति भी यहीं मास्टर थे, 38-39 साल की मैडम , थोड़े से भरे बदन का संन्चा लिए, कद पञ्च फुट कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी पर देखने में आकर्षक थी, ऊपर से अध्यापिका और सरल व्यवहार , गाँव में मान था . मैडम का सामान मैंने घर में रखवाया .
मैडम- बैठो,
मैं बैठ गया. थोड़ी देर बाद मैडम कुछ खाने का सामान ले आई,
मैडम- कबीर, वैसे मुझे बुरा लगता है तुम्हारे जैसा होशियार लड़का पढाई छोड़ दे.
मैं- मेरे हालात ऐसे नहीं है , पिछला कुछ समय ठीक नहीं हैं .
मैडम- सुना मैंने. वैसे कबीर, तुम मेरे पसंदिद्दा छात्र रहे हो , कभी कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकते हो. मैं तुम्हारे निजी फैसलों के बारे में तो नहीं कहूँगी पर तुम चाहो तो पढाई फिर शुरू कर लो
मैं- सोचूंगा
मैडम- आ जाया करो कभी कभी .
मैंने मिठाई की प्लेट रखी और सर हिला दिया .
वहां से आने के बाद , मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी की जानवरों का रोना कैसे अपने आप थम गया और मुझे जानवर दिखे क्यों नहीं , ये सवाल जैसे घर कर गया था मेरे मन में . इसी बारे में सोचते हुए मैं उस दोपहर सड़क के उस पार जंगल की तरफ पहुच गया, शायद वो आवाजे इधर से आई थी या उधर से . सोचते हुए मैं बढे जा रहा था तभी मैंने कुछ ऐसा देखा जो उस समय अचंभित करने वाला था .
भरी दोपहर ये कैसे, और कौन करेगा ऐसा. .........................
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