RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#3
ये देखना अपने आप में बेहद अजीब था , मेरे सामने एक जलता दिया था , बस एक दिया जो शांत था , कोई और वक्त होता तो मैं ध्यान नहीं देता पर भरी दोपहर में कोई क्यों दिया जलायेगा , जबकि ये कोई मंदिर, मजार जैसा कुछ नहीं था , और सबसे बड़ी बात एक गहरी शांति , हवा जैसे थम सी गयी थी मेरे और उस दिए के दरमियाँ . मैं बस वहां से चलने को ही हुआ था की मेरी नजर उस कागज के छोटे से टुकड़े पर पड़ी .
इस पर मेरा ध्यान ही नहीं गया था , मैंने वो कागज उठाया जिस पर कोई शब्द नहीं लिखा था , कोरा कागज , न जाने क्यों मैंने वो कागज जेब में रख लिया . और वापिस अपने खेतो की तरफ चल पड़ा. दूर से ही मैंने ताई को देख लिया था , जो एक पेड़ के निचे कुर्सी डाले बैठी थी. जैसे ही मैं उनके पास पहुंचा वो बोली- कबीर , कहाँ थे तुम , कब से इंतजार कर रही हूँ मैं तुम्हारा .
मैं- मैं इतना भी महत्वपूर्ण नहीं की मेरा इंतजार करे कोई .
ताई- फिर भी मन कर रही थी, सुनो, कल मेरे साथ तुम्हे शहर चलना है .
मैं- किसी और को ले जाओ , मेरे पास समय नहीं है
ताई- कबीर, मैंने कहा न कल तुम मेरे साथ शहर चल रहे हो क्योंकि तुम्हारा वहां होना जरुरी है , कल तुम्हे कुछ मालूम होगा
मैंने ताई की बात अनसूनी करना चाहा पर मैं कर रही पाया.
ताई- एक खुशखबरी और बतानी है तुम्हे कर्ण का रिश्ता पक्का हो गया है ,
मैं- मुझे क्या लेना देना
ताई- तुम्हारा बड़ा भाई है वो .
मैंने जैसे ताई का उपहास उड़ाया
कहने को कर्ण मेरा बड़ा भाई था , पर क्या वो मेरा भाई था नहीं, वो एक बिगडैल जिद्दी लड़का था जिसके तन में खून की जगह अहंकार दौड़ रहा था . गाँव भर में कोई ही शायद होगा जिस पर उसने अत्याचार नहीं किया होगा. अपने ख्यालो में खोये हुए जैसे ही मेरी नजर ताई पर पड़ी, मुझे एक अनचाही याद आ गयी, एक कडवा सच .
अचानक ही मेरे मुह से निकल गया - मैं कल चलूँगा आपके साथ ताईजी
पर मैं ये बिलकुल नहीं जानता था की कल मेरे जीवन के एक नए अध्याय की शरूआत होगी , मेरे पतन की शरूआत होगी. अगले दिन मैं पूरी तरह से तैयार था शहर जाने को . ताईजी की गाड़ी में बैठा और हम शहर की तरफ चल दिए.
मैं- पर हम क्यों जा रहे है.
ताई- तुम समझ जाओगे
मैंने अपना सर हल्का सा खिड़की से बाहर निकाल लिया और हवा को महसूस करने लगा . बहुत दिनों बाद मैं कोई सफ़र कर रहा था. पर ये सकून ज्यादा देर नहीं रहा, लगभग आधी दुरी जाने के बाद गाड़ी झटके खाने लगी और फिर बंद हो गयी.
ताई- इसको भी अभी बिगड़ना था .
मैं- बस से चलते है .
ताइ ने मेरी तरफ देखा . मैं- और नही तो क्या .
थोड़ी देर बाद बस आई पर वो बहुत भरी थी भीड़ थी . जैसे तैसे करके हम दोनों चढ़ गए. गर्मी के मौसम में बस का भीड़ वाला सफ़र, और तभी किसी ने ताई के पैर पर पैर रख दिया,
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