RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
“आई, ईईईई ” ताई जैसे चीख पड़ी . किसी औरत चप्पल या जूते में कील थी या कुछ नुकीला ताई को बड़ी जोर से चुभा था , पैर से खून निकल आया और उन्होंने उसी वक्त बस से उतरने का फैसला किया, मज़बूरी में मैं भी उतर गया.
वो सडक के पास बैठ कर अपने पैर को देखने लगी, ख़राब गाड़ी को कोसने लगी. लगभग बीस मिनट बाद एक टेम्पो आते हुए दिखा . मैंने उसे हाथ दिया तो वो रुका .
मैं- शहर तक बिठा लो , दुगना किराया दूंगा.
टेम्पो वाला- बिठा तो लूँ, पर भाई मैं सामान लेके जा रहा हूँ , जगह थोड़ी कम है पीछे तुम दो लोग हो .
मैं- हम देख लेंगे वो .
टेम्पो वाला- तो फिर बैठ जाओ.
टेम्पो में पीछे की तरफ गत्ते भरे हुए थे. मैं चढ़ा और फिर ताई का हाथ पकड कर खींच लिया. टेम्पो चल पड़ा.
ताई- कबीर, बहुत कम जगह है शहर तक परेशान हो जायेंगे.
मैं- बस की भीड़ से तो सही हैं न .
तभी टेम्पो ने झटका खाया और मैंने ताई की कमर पकड़ ली, पहली बार था जब मैंने किसी औरत को छुआ था . , इतनी कोमल कमर थी ताई की.
ताई- थोड़ी जगह बनाओ , कहीं मैं गिर न जाऊ.
टेम्पो में गत्ते, भरे थे मैंने थोडा सा खिसका कर जगह बनाने की कोशिश की पर बात नहीं बन पा रही थी .
मैं- एक तरीका है ,
ताई- क्या
मैं- मैं बैठ जाता हूँ आप फिर मेरे पैरो पर बैठ जाना
ताई- मैं कैसे ,
मैं- शहर दूर है वैसे भी आपके पर पर लगी है .
ताई को भी और कुछ नहीं सुझा . तो वो बोली- ठीक है .
मैंने अपनी पीठ पीछे गत्ते के बॉक्स पर टिकाई और बैठ गया ताई भी झिझकते हुए मेरे पैरो पर बैठ गयी. ताई का शरीर वजनी था , मेरे पैर दुखने लगे और तभी टेम्पो शायद किसी ब्रेकर पर उछला तो ताई एकदम से मेरी गोद में आ गयी. वो उठने लगी ही थी की तभी फिर से टेम्पो ने झटका लिया और मैंने उनकी कमर को थाम लिया दोनों हाथो से.
मैंने अपनी उंगलियों से ताई की नाभि को सहलाया और वो हल्के से कसमसाई . सब कुछ जैसे थम सा गया था .
ताई के चूतडो की गर्मी को मैंने अपनी जांघो के जोड़ पर महसूस किया. मैं धीरे धीरे उनके पेट को सहलाने लगा था . मैंने महसूस किया की ताई की आँखे बंद थी, मेरे सिशन में मैंने उत्तेजना महसूस की और शायद ताई ने भी .टेम्पो के साथ साथ हमारे बदन भी हिलने लगे थे . मैं उत्तेजित होने लगा था. और फिर मैंने न जाने क्या सोच कर अपने दोनों हाथ ताई की छातियो पर रख दिए. aaahhhhh ताई के होंठो से एक आह सी निकली और मैं उनकी चुचियो को दबाने लगा. .
मेरे लिए ये सब अलग सा अह्सास था मैं अपनी ताई को गोदी में बिठाये उनकी चूची दबा रहा था और वो बिलकुल भी मेरा विरोध नहीं कर रही थी. मेरा लिंग अब पूरी तरह उत्तेजित हो चूका था . उत्तेजना से कांपते हुए मेरे हाथो ने ताई के ब्लाउज के बटन खोल दिए और ब्रा के ऊपर से ही मैं उन उभारो को दबाने लगा. ताई मेरी गोद में मचलने लगी. मैंने हौले से ताई की पीठ को चूमा, कंधो को चूमा और छातियो से खेलने लगा.
तभी जैसे ये सब खत्म हो गया. शहर की हद में पहुच गए थे हम ताई ने मेरे हाथ को हटाया और अपने कपडे सही कर लिए. कुछ देर बाद हम टेम्पो से उतरे , मैंने किराया दिया और चलने को हुआ ही था की वो बोला- भाई मैं लगभग तीन घंटे बाद यही से वापिस जाऊंगा चलो तो मिल लेना. शायद उसे भी दुगने किराये का लालच था .
उसके बाद हम शहर में एक ऑफिस में गए. ये किसी वकील का ऑफिस था.
वकील बड़ी गर्मजोशी से हमसे मिला और फिर बोला- कबीर, देखो तुम्हारे लिए ये थोडा सा अजीब होगा पर मुझे लगता है की अब तुम्हे ये मालूम होना चाहिए.
मैं- क्या
वकील-लोग, अपनी पीढियों को दौलत देते है , जमीन देते है या जो कुछ भी पर तुम्हारे लिए विरासत में ऐसी चीज़ छोड़ी गयी है जिसे कोई क्यों छोड़ेगा, मतलब ये अजीब है .
मैं- पर बताओ तो सही
वकील ने अपनी मेज की दराज से एक पैकेट निकाला और मेरे हाथ पर रख दिया . एक ये छोटा सा पैकेट था. छोटा सा. मैंने उसे खोला और मैं हैरान रह गया. ये कैसे ........................
मतलब ये चीज़ ,,,,,,,,,,,, कैसे ....
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