Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:10 PM,
#7
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#4

मेरे हाथ में एक दिया था , मिटटी का दिया , ठीक वैसा ही दिया जिसे मैंने कल जंगल में जलते हुए देखा था, एक दिया था मेरी विरासत. बस एक दिया .

वकील- मुझे समझ नहीं आ रहा की तुम्हारे दादा ने ये दिया क्यों छोड़ा है , एक लाइन की ये अजीब वसीयत क्यों बनाई उन्होंने.

मैं- मुझे नहीं मालूम .

जबकि मेरे अन्दर एक उथल पुथल मची हुई थी, मैं कबीर सिंह, जिसके परिवार के पास न जाने कितनी जमीन थी, कितने काम धंधे थे, आस पास के गाँवो में इतना रुतबा किसी का नहीं था उस कबीर के लिए कोई एक दिया छोड़ गया था जिसकी कीमत शायद रूपये दो रूपये से जयादा नहीं थी. मैं ताई को देखू ताई मुझे देखे . खैर वकील से विदा ली हमने और ताई मुझे एक होटल में ले आई. कुछ खाने की आर्डर दिया .

ताई- कबीर, मुझे कुछ दिन पहले फ़ोन आया था वकील का , पर मुझे ये नहीं मालूम था की पिताजी ऐसा करेंगे

मैं- पर किसलिए,

ताई- कोई तो बात रही होगी.

इस बात से हम वो बात भूल गए थे जो उस टेम्पो में हुई थी , पास वाली खिड़की से आती धुप ताई के चेहरे पर पड़ रही थी , मैंने पहली बार ताई की खूबसूरती को महसूस किया ३७ साल की ताई , पांच सवा पांच फुट के संचे में ढली , भरवां बदन की मालकिन थी , टेम्पो में जो घटना हुई थी , बस ये हो गया था ,मेरी नजर ताई की नजर से मिली और मैंने सर झुका लिया.

ताई- घर पर सब तुम्हे यद् करते है

मैं- पर कोई आया नहीं

ताई- मैं तो आती हूँ न

मैं चुप रहा

ताई- कबीर,

मैं- मेरा दम घुटता है उस नर्क में, सबके चेहरे पर लालच पुता है, एक सड़ांध है उस घर में झूठी शान की, झूठे नियम कायदों की

ताई- वो तुम्हारे पिता है , जिस दिन से तुमने घर छोड़ा है ख़ुशी चली गयी है वहां से

मैं- मैं कभी कर्ण, नहीं बन सकता मैं कभी ठाकुर अभिमन्यु नहीं बन सकता , मुझे नफरत है इस सब से

ताई- कबीर, मैं नहीं जानती की आखिर क्या वो वजह रही थी जिस बात ने हस्ते खेलते घर को बिखेर दिया , बाप बेटे में आखिर ऐसी नफरत की दिवार क्यों खड़ी हो गयी, पर कबीर अपनी माँ के बारे में सोचो, उसके दिल पर क्या गुजरती है वो कहती नहीं पर मैं जानती हु, मेरे बारे में सोचो,

मैं- मेरे नसीब में खानाबदोशी लिखी है ये ही सही , कबीर उस घर में कभी नहीं लौटेगा ,

ताई ने फिर कुछ नहीं कहा.

खाने के बाद हम कुछ कपड़ो की दुकान पर गए ताई ने मेरे लिए कुछ कपडे ख़रीदे. और फिर वापसी के लिए हम उसी जगह आ गए जहाँ टेम्पो वाला था. टेम्पो देखते ही ताई के चेहरे पर आई मुस्कान मेरे से छुप नहीं पाई. अबकी बार टेम्पो में गत्तो की जगह गद्दे भरे थे , माध्यम आकार के गद्दे , टेम्पो में चढ़ने से पहले मैंने ताई को देखा जिनकी आँखों में मुझे एक गहराई महसूस हुई.

जैसे ही टेम्पो चला ताई मेरी गोद में आ गयी , और जो शुरू हुआ था फिर स शुरू हो गया . इस इस बार मैंने ताई की चुचिया पूरी तरह से बाहर निकाल ली और जोर जोर से भींचने लगा ताई ने फिर से अपनी आँखे मूँद ली . कुछ देर बाद ताई थोड़ी सी उठी और अपनी साडी को जांघो पर उठा लिया अब ताई बहुत आराम से अपनी गांड पर मेरे लंड को महसूस कर सकती थी ,

और जो भी हो रहा था उसमे उनकी भी स्वीक्रति थी, एक हाथ से उभारो को मसलते हुए मैं दुसरे हाथ से ताई की चिकनी जांघो को सहलाने लगा था और फिर मैंने ताई के पैरो को अपने हाथो से खोला और ताई की सबसे अनमोल चीज पर अपना हाथ रख दिया ताई के बदन में जैसे हजारो वाल्ट का करंट दौड़ गया , वो आहे भरने लगी थी, सिल्क की कच्छी के ऊपर से मैं ताई की चूत को मसल रहा था.

न जाने कैसे मेरे हाथ अपने आप ये सब करते जा रहे थे जैसे मुझे बरसो से इन सब चीजो का अनुभव रहा हो, मैंने कच्छी को थोडा सा साइड में किया और ताई की चूत को छू लिया मैंने, उफ्फ्फ्फ़ कितनी गर्म जगह थी वो मेरी ऊँगली किसी चिपचिपे रस में सन गयी, तभी टेम्पो मुड़ा और मेरी बीच वाली ऊँगली, ताई की चूत में घुस गयी,

“uffffffffffff कबीर ” ताई अपनी आह नहीं रोक पाई.

मैं समझ गया था ताई को मजा आ रहा है, मैं जोर जोर से ताई की चूत में ऊँगली करने लगा ताई अब ने एक पल के लिए मेरे हाथ को पकड़ा और फिर खुद ही छोड़ दिया. ताई के बदन की थिरकन बढती जा रही थी. तभी ताई मेरी तरफ घूमी और ताई ने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए. मेरे मुह में जैसे किसी ने पिघली मिश्री घोल दी हो, ताई ने अपना पूरा बोझ मेरे ऊपर डाल दिया और मेरे होंठ चूसते हुए झड़ने लगी, मेरी हथेली पूरी भीग गयी थी, बहुत देर तक ताई मेरे होंठ चुस्ती रही , मेरी सांसे जैसे अटक गयी थी ,

और जब उन्होंने मुझे छोड़ा तो अहसास हुआ की ये लम्हा तो गुजर गया था पर आगे ये अपने साथ तूफान लाने वाला था , अपनी मंजिल पर उतरने के बाद न ताई ने कुछ कहा न मैंने , वो घर गयी मैं अपने खेत पर.

मेरे हाथ में दिया था , बहुत देर तक मैं सोचता रहा की आखिर क्या खास बात है इसमें , मैंने उसमे तेल डाला और उसे जलाना चाहा पर हैरत देखिये , दिया जला ही नहीं, मैं हर बार प्रयास करता और हर बार बाती रोशन नहीं होती............
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश - by desiaks - 12-07-2020, 12:10 PM

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