RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#11
मैं- पर क्यों,
प्रज्ञा- प्रीत का वचन कबीर,
मैं- किसका वचन
प्रज्ञा- कहानी है, किस्सा है, अफसाना तुम इसे जो भी कहो , कुछ लोग मानते है कुछ इत्तेफाक कहते है , , कहते है की किसी ने प्रीत की डोर तोड़ी थी , किसने ये कोई नहीं जानता ,ये जो मंदिर है हमारे गाँव वाला इसमें कुछ ऐसा हुआ था की तभी से इस मंदिर में कोई दीप नहीं जलता .
मैं- पर मैंने ज्योत जलते देखि,
प्रज्ञा- पुजारी वो ज्योत अपने घर से लाता है , कितने बरस तो मुझे देखते हो गए ,
मैं- पूरी बात बताओ न
प्रज्ञा- कुछ कहानिया अधूरी ही होती है कबीर,किसी को भी नहीं पता की वो कौन थे क्या हुआ था कब की बात है ,
मैं- तुमने मुझे उलझन में डाल दिया
प्रज्ञा,- कैसी उलझन
मैं- किसी ने मुझसे कहा था वो दिया जलाने को
प्रज्ञा- तो उसमे क्या हैं इस कहानी पर बहुत लोग विश्वास करते है , कोशिश करते है इसकी डोर ढूंढने को , खैर , जाने दो इस बात को तुम ऐसे जंगल में मत घुमा करो ये सुरक्षित नहीं है , कहीं कोई जानवर न मिल जाए, अभी परसों की बात है तीन लोगो की लाशें मिली है नोची हुई
मैं- क्या करू, मेरे पैर अपने आप मुझे इस तरफ खींच लाते है और अब तो मेरे पास कारण भी है
मेरी बात सुनकर प्रज्ञा के चेहरे पर लाली छा गयी .
प्रज्ञा- अच्छा जी, बाते बहुत मीठी करते हो
मैं- बताया तुमने ,पर प्रज्ञा इन दोनों गाँवो की दुश्मनी का कोई सम्बन्ध है क्या इस मंदिर से
प्रज्ञा- मुझे नहीं मालूम , और हमें इस बारे में बाते नहीं करनी चाहिए, हमारे पास और विषय है न, हैं न कबीर.
मैंने हाँ में सर हिला दिया.
प्रज्ञा से ये मेरी दूसरी मुलाकात थी पर ऐसा लगता था की जैसे वो हमेशा से मेरे साथ है , अहंकार बेशक उसके खून में था पर फिर भी कुछ तो मासूमियत थी उसमे,
“क्या सोचने लगे ” उसने पूछा
मैं- तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था
वो- पर क्या
मैं- अपनी सी लगती हो तुम
वो- हम्म, सच कहू तो मैंने भी ऐसा ही महसूस किया कबीर
तभी उसने घडी देखि और बोली- अभी मुझे जाना होगा कबीर, मैं फिर मिलूंगी
मैं- कब
वो- शायद कल
मैं- ठीक है
हमने अपने अपने रस्ते बदले और दो दिशाए हमें जुदा करने लग गयी. मेरे दिमाग में बहुत सवाल थे , जिनके जवाब अब तलाश करने ही थे, मेरे दादा मेरे नाम करते है एक दिया. और तभी मेरे दिमाग की घंटी बजी , उस दिए का कोई न कोई सम्बन्ध रतनगढ़ से था , तो क्या मेरे दादा का कोई रोल था उस खंडित वचन में, पर दादा का जमाना ज्यादा पुराना नहीं था , फिर उनके साथ के लोग क्यों नहीं जानते थे इस कहानी का सार.
मेरे सवालो का जवाब वो लड़की दे सकती थी , पर वो मिले कहाँ , पुजारी का घर नहीं जानता था मैं , पर क्या वो मंदिर में होगी , शायद हाँ वही होगी, मैं उलटे पाँव मुड गया. बिना कुछ सोचे . पर भाग देखो मेरे और मंदिर के बीच का रास्ता ऐसा लम्बा हो गया की पहुँच नहीं पाया.
पुलिया के किनारे मैंने जीप देखि, ये मेरे पिता की जीप थी , दो गाड़िया और थी, पिताजी खड़े थे और कुछ लोग गड्ढा खोद रहे थे , मैं छुप के देखने लगा, उन दूसरी गाडियों में तीन चार बोरी थी , उन्होंने गड्डे में डाली और आपस में कुछ खुसुर पुसुर करने लगे.
मैं जानता था की अपने काले कर्मो को एक बार फिर ठिकाने लगा दिया उन्होंने. ये जंगल ऐसे न जाने कितने राज़ दबाये बैठा था , यहाँ जानवर कम खाते थे लोगो को, इन्सान ज्यादा खाते थे, मुझे बहुत नफरत थी की मैं एक ऐसे घर में पैदा हुआ.
तीन साल पहले मैंने घर छोड़ा था , और इन तीन सालो को कैसे जिया था ये बस मैं जानता था, तन्हाई, अकेलेपन को कैसे महसूस किया था मैंने , बस मैं जानता था . सब कुछ जैसे शून्य हो गया था मेरे लिए. सांझ ढलने लगी थी , मैंने वापिस आके चारपाई बाहर निकाली और लेट गया. अगले दिन का इंतज़ार जैसे लम्बा हो गया था .
अगले एक हफ्ते तक मैं लगातार मंदिर गया, पुजारी ने जैसे मेरे होने को ना होना समझ लिया था, मैं मंदिर घंटो बैठे रहता , जंगल में तलाश करता उसे, पर वो न मिली, जैसे सब भूल गया था मैं , जिन्दगी जैसे इंतज़ार हो गयी थी , मैं उसे पुकारना चाहता था पर उसका नाम भी तो नहीं जानता था .
दुनिया कहती थी की यहाँ सबकी दुआ कबूल होती थी और एक मैं था की मुझे मिल रहा था इंतज़ार. न जाने वो कौन सी रात थी , मैं वही मंदिर में पड़ा था , की मेरी अधूरी नींद जैसे गायब हो गयी, उस पायल की आवाज को मैंने उनींदी अवस्था में भी पहचान लिया. बेहद थके होने के बाद भी मैं जैसे दौड़ पड़ा .
और फिर मैंने उसे देखा पानी की टंकी के पास से वो मेरी तरफ आ रही थी , मेरी नजरे उस से मिली और मैं जैसे दौड़ पड़ा उसकी तरफ और तभी मेरा पाँव गीले फर्श पर फिसला और मैं एक शिला से जा टकराया. दो पल में ही सब जसी घूम सा गया.आसमान के सारे तारे जैसे आँखों में उतर आये थे . बड़ी मुश्किल से खुद को सँभालने की कोशिश हुई मुझसे
“ठीक हैं , उठ जरा ” उसने मुझे सहारा देते हुए कहा
वो मुझे अन्दर ले आई और एक दिवार के साहारे बैठा दिया.
“कहाँ थी तू ” मैं बोला
वो- यही थी ,
मैं- कहाँ थी तू
वो - काम था मुझे
मैं- कितने दिनों से तेरी राह देख रहा हूँ और तू है की ..................
वो- चुप रह जरा, ले थोडा पानी पि शांत हो जा.
पानी पीकर थोडा चैन आया .
वो- मैंने तुझे कहा था की यहाँ मत आना,
मैं- किसी और ठिकाने का पता भी तो नहीं बताया तूने.
वो- पागल है तू पूरा. और ये क्या हाल बनाया हुआ है कोई तुझे देखेगा तो क्या कहेगा
मैं- फर्क नहीं पड़ता, मुझे मेरे सवाल का जवाब दे.
वो- शांत तो हो जा, और चिल्ला मत बाबा न आ जाये इधर.
वो मेरे पास आयी और मेरे चेहरे को अपने हाथो में लिया. बोली- देख मेरी तरफ, अब आ गयी हु न , अब मेरी सुन तू सुबह सुबह ही यहाँ से अपने घर जाना, मैं वादा करती हूँ कल दोपहर को तुमसे मिलूंगी. पर तू भी मुझे कह की तू ऐसे नहीं भटकेगा. कल जब हम मिलेंगे हम खूब बात करेंगे. अभी मैं रुक नहीं सकती , जाना होगा ...
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