RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#18
कहते है न कभी कभी जिन्दगी में कुछ ऐसा हो जाता है की उम्मीद न हो. मैं मेघा से इतनी शिद्दत से मिलना चाहता था और तक़दीर ने देखो किस हालत में मुझे उसके पास ला पटका. हम दोनों एक दुसरे से इतना घुल मिल गए थे की कोई भी कह सकता था हमारी जोड़ी के बारे में . हॉस्पिटल के उस बंद कमरे में घंटो वो बैठी रहती , मेरा हाथ थामे.
रोज अपने साथ वो खाना लाती मेरे लिए, न जाने कैसे वो मेरी पसंद जान लेती थी, उसके हाथ से खाई हर रोटी का ही असर था जो मैं पहले से और ठीक होता जा रहा था , दवाइया तो बस बहाना था , डॉक्टर हर दो तीन दिन में नयी पट्टिया कर देता , मैं अपने ज़ख्मो को देखना चाहता था, देखना चाहता था की जिस्म को कितना नुक्सान हुआ है पर ऐसा हो नहीं पाता था.
पर एक सवाल अभी भी मेरे मन में था .
मैं- मेघा , पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ, तुम उदास हो
मेघा- नहीं कबीर, ऐसी कोई बात नहीं,
मैं- दोस्तों से झूठ नहीं बोलते, मुझसे नहीं कहोगी तो किस से कहोगी.
मेघा- कबीर, तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं हूँ , न मैं वो दिया जलाती न तुम उस तरफ आते, न वो जानवर तुमपर हमला करता
मैं- बस इतनी सी बात का बोझ है , अरे पगली, मैं तो आभारी हूँ उस जानवर का जिसकी वजह से तुम फिर मिली मुझे.
मेघा- कबीर, बेशक तुम इसे मजाक में टाल दो, पर मैं नहीं .जानते हो कितना डर गयी थी मैं. उस रात को याद करती हूँ तो रूह कांप जाती हिया, दर्द से तदप रहे थे तूम, खून बिखरा था , मुझे लगा मैं खो दूंगी तुम्हे.
मैं- मेघा, मेरा बस एक सवाल है तुमने वो दिया क्यों जलाया था उस रात को.
मेघा- मैं बस, मैं बस एक कहानी की सत्यता को जाँच रही थी .
मैं- कौन सी कहानी
मेघा- प्रीत की कहानी,
मैं- मुझे बताओ इस कहानी के बारे में
मेघा- ये कहानी क्या है , किसकी है ये कोई नहीं जानता कबीर, बस कुछ बाते है जो इशारा करती है की किसी ज़माने में कोई रहा होगा जिसने कोई वादा तोडा था, उसे माँ तारा के मंदिर में श्राप मिला था , तुमने देखा न मंदिर में कोई दिया नहीं जलता कभी, लौ को भी बाहर से जला कर फिर लाते है
मैं- ये तो मैं भी जानता हु , पर कैसा वादा तोडा था और किसने
मेघा- कहते है की वो जो टुटा चबूतरा है वहां पर कुछ हुआ था ,
मैं- एक बात बताना, अर्जुन्गढ़ की तरफ से जब शहर को जो रास्ता जाता है उसके पास उस मिटटी पर भी तुमने ही दिया जलाया था न
मेघा- हाँ
मैं- वहां क्यों
मेघा- मैं , घूम रही थी उस दिन उस तरफ
मैं- ये जानते हुए भी की वो दुश्मनों का इलाका है
मेघा- तुम भी तो ऐसा ही करते हो. और यही बात तुम्हे मुझसे जोडती है , तू भी भटकते रहते हो मैं भी .
मैं- इस कहानी के बारे में कौन बता सकता है .
मेघा- मालूम नहीं , पर कहते है की एक दिन आएगा जब टुटा वचन पूरा होगा.
मैं- तुम्हे विश्वास है इस पर.
मेघा- झूठ भी तो नहीं है ये. खैर कबीर, तुम आराम करो मुझे जाना होगा, और हाँ, आने वाले कुछ दिन मैं व्यस्त रहूंगी, तो कम आ पाऊँगी
मैं- कोई बात नहीं
जैसे जैसे मेरी हालत ठीक हो रही थी , मेघा का आना कम हो रहा था , कभी कभी वो तीन- चार दिन तक नहीं आती थी , पर उसकी मजबुरिया भी समझता था मैं. हर रोज शहर आने के नए नए बहाने खोजने भी तो आसान नहीं थे, हालाँकि मैं इतना मजबूत नहीं था की पूरी तरह से चल फिर सकूँ पर फिर भी मैंने कही जाने का सोचा.
“नर्स, मेरा एक काम करोगी.” मैंने कहा
नर्स- क्या
मैं- मुझे एक फ़ोन करना है .
नर्स, - करवा दूंगी.
मैं- पर मुझे नुम्बर नहीं मालूम
नर्स- तो फिर ऐसा मजाक क्यों किया
मैं- मजाक नहीं है, सुनो मुझे होटल शालीमार फ़ोन करना है ,
नर्स- फ़ोन नम्बर तो नहीं है , पर मेरे घर का रास्ता उधर से ही पड़ता है , नाम बता दो मैं तुम्हारी बात पहुंचा दूंगी.
मैं- सुनो, होटल की मालकिन है प्रज्ञा , सिर्फ उनसे ही मिलना , यदि तुम्हारी मुलाकात हो तो बस इतना कहना दोस्त, इस हॉस्पिटल में है . मेरी बात ध्यान रखना बस उनसे ही कहना किसी और से नहीं,
नर्स- ठीक है
दरअसल प्रज्ञा ही थी जिस पर मैं खुद से ज्यादा भरोसा करता था , परिवार के नाम पर बस वो ही थी मेरे पास. ये ठीक था की मेघा ने मुझे संभाल लिया था इन मुश्किल हालातो में पर शायद प्रज्ञा ही थी जो मेरे दर्द को समझ पाती . जब जब मेरी पट्टिया बदली जाती मैं अपने शरीर को देखता , मेरी हालत क्या से क्या हो गयी थी, और बिना मेघा ये कमरा हर पल जैसे काट खाता था मुझे
जब भी मैं सोचता मेरे दिमाग में प्रीत की डोर वाली बात आती जिसके सिरे मेघा ढूंढ रही थी, पर कोई तो होगा जो इस कहानी को जानता हो, कोई एक इन्सान जो बता सके की आखिर उस अधूरी कहानी में मैं कैसे जुड़ा था
मुझे ठीक से याद था की जैसे ही मैंने दिया उठाया था , ठीक उसी पर मुझ पर हमला हुआ था , आखिर ये कैसा इत्तेफाक था , बहुत सी बातो पर मैंने गौर किया था जैसे उन रातो में कैसे जानवरों के रुदन का पीछा करते हुए मैं बार बार रतनगढ़ पंहुचा था,
कैसे मुझे वसीयत में एक मिटटी का दिया मिला था , कैसे मंदिर की पहेली थी , हर चीज़ केवल मुझे जोड़ रही थी रतनगढ़ से और मेघा से. पर क्या नियति खेल रही थी ये खेल
क्योंकि ये सब बिलकुल मामूली नहीं था .मैं और मेघा , हाँ , मेघा, क्योंकि वो भी एक किरदार थी, उसका मुझसे मिलना, हमारी बाते, मुलाकाते सब किसी फिल्म सा था , जैसे किसी ने स्क्रिप्ट लिख दी हम रोल निभा रहे थे . बहुत सोचने के बाद मैंने फैसला किया, मैं हरहाल में मालूम करके रहूँगा की प्रीत के वचन का क्या राज है .
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