RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#22
ये दिल कुछ ऐसे धड़का था की बारिश के शोर में भी धडकने सुनी जा सकती थी , मेरे सामने बाहें फैलाये एक समुन्दर खड़ा था , जो कह रहा था की ए छोटे छोटे तालाब आ मिल जा मुझमे, प्रज्ञा की आँखों में जो चमक थी वो बेशुमार थी, जैसे किसी चुम्बक ने लोहे के कण को अपनी तरफ खींच लिया हो. वैसे ही मैं उसकी तरफ बढ़ने लगा.
ठंडी बारिश ने एक पल के लिए मेरे बदन को झकझोर दिया पर अगले ही पल आराम हुआ, उसने मुझे अपने सीने से जो लगा लिया था . उसके कापते बदन की धडकनों को मैंने अपने जिस्म से होकर गुजरते महसूस किया .मेरे कंधे से अपना सर लगाये आगोश में लिपट गए थे हम दोनों, काश उस वक्त बिजली गिर जाती हम पर , तो ये परवाना भी अपनी शम्मा के लिए जल जाता.
मैंने उसका हाथ थमा और वो घूम गयी,वो नाचना चाहती थी मेरे साथ, मैंने सर हिला कर इशारा किया , बेशक बैंड बाजा नहीं था , कोई त्यौहार, कोई शादी ब्याह नहीं था पर फिर भी कुछ तो ऐसा था जिसे शब्दों में मैं बता नहीं पहुँगा
उसकी पायल की झंकार को मैंने दिल के किसी कोने में उतरते महसूस किया. बहुत देर तक मैं उसका साथ देता रहा , देखता रहा उसे, बल्कि यूँ कहूँ की जीता रहा उसके इस खास लम्हे में. और फिर अपनी उखड़ी सांसो को सँभालने की कोशिश करते हुए वो मेरी बाँहों में आ गिरी .
उसे यु महसूस करना अपने आप में एक सुख था. क्या लगती थी वो मेरी, मेरे जीवन में क्या हिस्सा था उसका ,और आगे इस रिश्ते का क्या अंजाम होना था ये तमाम सवाल मेरे पास थे पर फिलहाल इनके जवाब की मुझे न जरुरत थी न परवाह.
“अन्दर चले ” पूछा मैंने
“अभी नहीं ” उसने कहा
मैं- ठण्ड लग जाएगी
वो- मैंने कहा न अभी नहीं , मेरा सकूं मुझसे मत छीनो कबीर,
बेशक घनघोर मेह पड़ रहा था फिर भी मैंने प्रज्ञा के बदन की तपिश को अपने आगोश में फील किया. उसकी पकड मेरी बाँहों में कसती जा रही थी, और मैंने अपने बदन में भी चिंगारी सुलगती महसूस की, और ठीक उसी वक़्त मैंने उसे अपनी बाँहों से आजाद कर दिया
“क्या हुआ कबीर, ” बोली वो
मैं- हमें यही रुकना होगा,
वो- पर किसलिए
मैं- बस यु ही
वो- सच बोलो न
मैं- मुझे लगा मैं बहक जाऊंगा इस कमजोर लम्हे में
प्रज्ञा- मेरे पास आओ
एक बार फिर वो मेरी बाँहों में बाहे डाले खड़ी थी .
“जानते हो कबीर, तुम पर इतना भरोसा क्यों करती हूँ, क्योकि दिल तेरे सीने में धडकता जरुर है पर धड़कने उसमे मेरी है, इतना पाक, इतना साफ़ मेरे लिए तुमसे जरुरी कोई नहीं, और फिर क्या हुआ जो हम बहक जाये, ये सारी दुनिया ही तो बहकी हुई है , मेरे दोस्त ” वो बोली और इस स पहले की मैं उसे जवाब दे पाता मेरे होंठो को जैसे किसी ने सी दिया .
प्रज्ञा ने अपने तपते होंठो से मेरे लबो को छू लिया था , एक पल में ही उसने मेरे निचले होंठ को अपने दोनों होंठो में दबा लिया , प्रज्ञा मुझे शिद्दत से चूमे जा रही थी . मैं समझ नहीं पाया पर गुलाब नहीं बल्कि बहुत से गुलदस्ते मेरी सासों में समाते चले गए हो जाये, पर फिर मैंने चुम्बन तोड़ दिया.
“तुम होश में नहीं हो, प्रज्ञा, ,ये ठीक नहीं है ,हमारे रिश्ते को कमजोर कर देगा ये सब ” मैंने कहा
प्रज्ञा- परवाह नहीं
मैं- ये आग हमें बर्बाद कर देगी,
प्रज्ञा- मैं बर्बाद होना चाहती हु, तबाह होना चाहती हूँ इस रातके आगोश में मैं तुम होना चाहती हु कबीर, मैं तुम होना चाहती हूँ,
उसकी आँखों में आई सुर्खी, जैसे मुझे कुछ कह रही थी और फिर अगले ही पल उसने फिर से मुझे चूमना शुरू कर दिया . नियति ने अपना खेल खेलना शुरू कर दिया था, काश मैं ये उस पल जानता था इस रस्ते पर कभी नहीं चलता , पर तक़दीर के लिखे लेख कौन पलट सकता था भला इसका अंदाजा बहुत जल्दी होने वाला था मुझे, पर खैर, अभी तो बस एक दुसरे की बाँहों में हम थे जो एक नया रिश्ता बनाने की राह पर कदम रख चुके थे.
शबनमी होंठो के रस का कतरा कतरा मेरे मुह में घुल रहा था , पर खेल अभी शुरू होना हटा प्रज्ञा ने अपना हाथ मेरी पेंट में डाल दिया और
मेरे लिंग को अपनी मुट्ठी में कस लिया, मैं सिसक उठा ,उसने मुझे इशारा किया और मैं उसे अपनी गोद में उठाये कमरे के भीतर ले आया. लालटेन की लौ में उसका भीगा बदन, जिसपर कपडे धीरे धीरे कम होते जा रहे थे, और फिर मैंने प्रज्ञा को बस एक छोटी सी कच्छी में देखा जो उसके बदन के उस खास हिस्से को भी पूरी तरह से धक नहीं पा रही थी .
सुबहकी घास पर जो ओस की बूंदे लिपटी होती है ठीक वैसे ही उसके बदन पर बारिश लिपटी थी. दरअसल ये समां बहुत ही निराला था बाहर बरसते मेह और अन्दर के तूफान का एक संयोग बन रहा था
“इस तरह क्या देख रहे हो ”लरजती आवाज में पूछा उसने
“शोले और शबनम को एक साथ पहली बार देखा है ” बस इतना ही कह पाया मैं
पतली कमर में हाथ डाल कर उसे खींच लिया मैंने और उसके नितम्बो को सहलाने लगा. प्रज्ञा ने मेरे कच्छे को निचे सरका दिया और अपने खिलोनो को फिर से मुट्ठी में भर लिया . ठंडी हवा के झोंको के बीच हमारे गरम बदन सुलगने लगे थे, झटके खाने लगे थे और फिर उसे चूमते हुए मैं उसके सुडोल कुलहो को मसलने लगा, दबाने लगा. और भी पूरी कोशिश करने लगी मुझमे सामने की
प्रज्ञा ने मुझे बिस्तर पर खींच लिया मैं उसके ऊपर लेटकर उसके चाँद से चेहरे को चूमने लगा. मेरा लंड उसकी जांघो के जोड़ पर दस्तक दे रहा था , प्रज्ञा के बदन की थिरकन तेज होती जा रही थी, पुरे चेहरे कंधे को चूमते हुए मैं निचे को सरकता जा रहा था और फिर मेरी जीभ उसकी चुचियो पर पहुँच गयी . खुरदरी जीभ ने जैसे ही उसकी निप्पल को छुआ आग लग गयी उसके बदन में
“ओह, कबीर,,,,,,,,,,,,,,,,,, ”प्रज्ञा ने जोर से मुझे अपनी बाँहों में भर लिया .
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