RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#43
प्रज्ञा को उसके यहाँ होने की बिलकुल उम्मीद नहीं थी , उसे देखते ही उसका गुस्सा जैसे छूमंतर हो गया .
“छोड़ो मुझे, मैं नाराज हु तुमसे ” वो बोली
“जानती हु, ” जवाब आया
प्रज्ञा- अभी तुम्हारे कालेज से होकर आ रही हु, ये क्या किया हुआ है तुमने, जानती हो न डॉक्टर की पढाई है तुम्हारी और तुम हो की क्लास से गायब हो जाती हो, ये तो शुक्र है की तुम्हारे कालेज से फ़ोन आया तो हमें मालूम हुआ वर्ना हमें तो खबर नही की हमारी होनहार औलाद पीठ पीछे क्या कर रही है ,
“आपकी नाराजगी समझती हु माँ ” उसने कहा
प्रज्ञा- तो फिर बताओ क्लास बंक करने का क्या कारन है
“कोई कारण नहीं , ” उसने कहा
प्रज्ञा- तुम्हारी यही गोल मोल बाते हमें समझ नहीं आती , कभी सीधे मुह जवाब भी दे दिया करो हमारा बस एक ही सपना है कितुम डॉक्टर बनो ,अब माँ- बाप का औलाद के लिए सपने देखना भी गुनाह हो गया क्या. जानती हो जबसे तुम्हारे कालेज से फोन आया है , कितना परेशां थी मैं , ये तो शुक्र करो तुम्हारे पिता का रुतबा है वर्ना अब तक नाम कट गया होता तुम्हारा.
“कब तक मुझे माँ-बाप के नाम के सहारे जीना पड़ेगा मेरा खुद का वजूद जैसा कुछ है या नहीं ” उसने जैसे शिकायत की
प्रज्ञा- मालूम नहीं आजकल के बच्चो को क्या हो गया है , खैर, ये समय नहीं है इन बातो का हम बस इतना चाहते है की तुम अपनी पढाई पर ध्यान दो. तुम जानती हो गाँव के हालात , कुछ बताने, समझाने की जरुरत नहीं, शहर में इसी लिए तो भेजा है की तुम सुरक्षित रहो. दुश्मनों की नजरो से दूर रहो. हम तुम्हारी सुरक्षा में कुछ लोग तैनात कर देते है
“ये ज्यादती है माँ, ” तुनकते हुए उसने कहा
प्रज्ञा- जानते है हम पर क्या करे, काश तुम समझ सकती
“मैं समझती हूँ माँ, मैं सब समझती हूँ पर आप भी जानती है ये जिन्दगी मुझे कैसे जीनी हिया , ये बंदिशे रोक नही पाएंगी मुझे ” उसने प्रतिकार किया
प्रज्ञा- तब तुम खुद जिम्मेदार होंगी अपने पिता को जवाब देने के लिए, बेशक ये बंदिशे तुम्हे सजा लगती है पर यकीं मानो तुम्हारे भले के लिए ही है ये सब .
पर इस से पहले प्रज्ञा अपनी बात पूरी कर पाती उसकी बेटी उठ खड़ी हुई और गुस्से से दरवाजे को बंद करते हुए बाहर चली गयी .प्रज्ञा बस उसे देखते रह गयी,जवान बच्चो पर माँ- बाप ज्यादा जोर चला भी तो नहीं सकते
दरसल अब प्रज्ञा भी कहे तो क्या , करे तो क्या , सब कुछ उलझ गया था उसकी जिन्दगी में इतनी मुसीबते आ गयी थी , पर इन मुसीबतों की कुछ अच्छी बाते भी थी, इसने सबको आपस में जोड़ा हुआ था , प्रज्ञा, कबीर, मेघा और तमाम लोगो को . पर वो ये नहीं जानते थे की नियति उनकी तकदीरो में ऐसे लेख लिखना शुरू कर चुकी है जो उनकी जिंदगियो को ऐसे भंवर में फंसा देगा , जिसे पार करना बहुत मुश्किल होगा .
ठाकुर- मास्टर, कबीर का कुछ पता चला
मास्टर- नहीं हुकुम, जहाँ जहाँ संभवना थी तलाश किया पर नहीं मिला हाँ एक खबर और है , रतनगढ़ के मंदिर पर बिजली गिर गई .
ठाकुर के पेशानी पर बल पड़ गए ये खबर सुनकर.
“कबीर को तलाश करो , उसे लेके आओ यहाँ ” वो बस इतना कह पाया.
इधर कबीर को कहाँ चैन था , एक तो रात वाली घटना फिर मेघा का नहीं मीलना दिमाग को हिला गया था, अब मेघा को कहाँ तलाश करूँ, उसका कोई और ठिकाना मालुम भी तो नहीं उसे, हार कर वो उसी जगह आ गया सब कुछ वैसा ही था जैसे वो छोड़ कर गया था , दिन के उजाले में उसने और छानबीन करने का सोचा, जबकि कुछ घंटे पहले वो कर चूका था .
वो बड़े गौर से उन तस्वीरों को देख रहा था , चेहरे पहचानने की कोशिश कर रहा था , पर बेकार वक्त की मार पड़ चुकी थी उन चेहरों पर, आखिर कुछ सोचकर उसने अपनी जेब से वो फ़ोन निकाला जो प्रज्ञा ने उसे दिया था . उसने फ़ोन किया
“कबीर, तुम ठीक तो हो न , ” पहली साँस में प्रज्ञा पूछ बैठी
मैं- ठीक हूँ , सुनो मुझे अभी मिलना है
प्रज्ञा- मैं जल्दी ही आउंगी कबीर, थोड़े से काम निपटा लूँ
मैं- मेरी बात समझो मुझे तुम्हारी मदद की जरुरत है
प्रज्ञा- चंपा से बात कराओ, जो भी तुम्हे चाहिए मी जायेगा
मैं- तुम समझ नही रही हो, मेरे पास कुछ है , दरसल मेरी मदद सिर्फ तुम ही कर सकती हो, प
प्रज्ञा- कबीर, मैं इस वक्त होटल में हूँ , मुझे समय लग जायेगा आने में , इतना इंतजार करना होगा
मैं- नहीं मुझे भी तुम्हे लेके शहर ही जाना था , मैं जल्दी ही होटल पहुँचता हु ,
मैंने फोन रखा और तुरंत ही शहर के लिए निकल गया . और पहुचते ही सीधा होटल गया मुझे देखते ही वो खुश हो गयी
प्रज्ञा- ओह, कबीर,
मैं- सुनो तुम्हे मेरे साथ चलना होगा,
प्रज्ञा- कहाँ
मैंने झोले से वो तस्वीरे निकाली ,
मैं- मुझे मालूम करना है की ये किसकी है
प्रज्ञा- पर इनकी हालत तो बहुत खस्ता है
मैं- तभी तो तुम्हारी मदद चाहिए, कोई स्टूडियो वाला, कोई फोटोग्राफर ढूँढना होगा जो इन्हें देखने लायक बना दे.
प्रज्ञा- तुम्हारा क्या लेना देना है इस तस्वीर से .
मैं- मालूम नहीं , पर कुछ तो सम्बन्ध है .
मैं और प्रज्ञा ने कई जगह चक्कर लगाये पर काम नहीं बना , तस्वीरो की हालत बहुत बुरी थी , पर तभी मुझे एक बात और सूझी मैं प्रज्ञा को लेकर हमारे वकील के घर गया पर वहां एक मुसीबत और जैसे हमारा ही इंतज़ार कर रही थी .
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