RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#46
कभी सोचा नहीं था की जिंदगी ऐसी परीक्षा लेगी, जब सारी दुनिया अपने आप में मग्न थी मैं इस अजीब से चुतियापे में उलझा था जिसके बारे में सब कुछ अधुरा था ,जो भी मिलता था उसका अपना ही रंडी- रोना था . मैं बस ये सब सोच ही रहा था की फोन बज उठा मैंने देखा प्रज्ञा थी .
मैंने फ़ोन उठाया
“कैसे हो ” पूछा उसने
मैं- जैसा तुम छोड़ के गयी थी
वो-मेरा भी हाल कुछ तुम्हारे जैसा ही है , मंदिर दुबारा बनाने के लिए निर्णय हुआ है आज, उसी में व्यस्त थी
मैं- अच्छी बात है मैं भी थोडा योगदान देना चाहूँगा अगर ......
मैंने जानबूझ कर बात अधूरी छोड़ दी
प्रज्ञा- समझती हूँ , पर वो सब राणाजी का मामला है और तुम जानते हो की मैं उनके मामले में दखल नहीं देती .
मैं- एक अच्छी पत्नी की यही निशानी होती है ,
प्रज्ञा- और सुनाओ, क्या हाल है तुम्हारी वाली का, मिले क्या उस से
मैं- नहीं, मिली नहीं वो , तुम मिलना चाहोगी उस से
वो- क्यों नहीं, मैं भी तो देखू, कौन है वो
उसने हँसते हुए कहा
मैं- तुमसे मिलने की हसरत है
वो - अभी तो मुमकिन नहीं
मैं- जानता हु , पर अब हसरतो पर किसका बस
वो- ये हसरत जान ले जाएगी तुम्हारी
मैं- तुमने पहले ही ले ली जान हमारी
वो- अच्छा, तो ये बाते बोलकर ही पटा लिया किसी बेचारी को
मैं- सच ही तो कहा, इस दिल में जितना हिस्सा तुम्हारा है उतना किसी और का हो नहीं सकता , ये बात और है तुम किसी और की हो .
प्रज्ञा- सच तो यही है मेरे दोस्त. मैं तुम्हारी हमनवा तो हो सकती हु हमसफ़र नहीं, तुम्हारी अपनी मजबुरिया है मेरे अपने बंधन है .
मैं- ये तुम्हारा बड़प्पन है , तुमने इस काबिल समझा मुझे
प्रज्ञा- क्योंकि मैं तुम्हारे अन्दर खुद को देखती हु,
मैं- फिर कब मिलोगी,
वो- देखती हु, वैसे कबीर मैं तुमसे एक वादा करती हु, की चाहे जो भी हालात रहे जब तुम उस लड़की से शादी करोगे तो मैं जरुर आउंगी , तुम्हारा गठबंधन मैं करुँगी
मैं- ऐसा कुछ मत कहो जो बूते के बाहर हो
वो-तुम जानते हो न मैं कौन हु, बेशक अब हमारे जिस्मानी तालुक्कात है पर अगर मैं कभी तीसरी औलाद पैदा करती तो मेरी दुआ यही होती की वो तुम जैसी होती, ये रिश्ते नाते तो सब इंसानों के बनाये है कबीर, पर तुम और मैं समझते है अपने इस रिश्ते को ,
मैं- अब इतना भी मत कहो, मैं पिघलने लगा हु, तुमसे मिलने की हसरत और बढ़ जाएगी
वो- मेरी आदत मत डालो
मैं- क्या करू, तुम्हारे सिवा मेरा है ही कौन
वो- अपनी प्रेमिका के साथ भी रहो, उसे समय दो,
मैं- क्या मालूम कब दीदार होगा उसका
वो- चलो रखती हु, फिर बात करते, जल्दी ही मिलूंगी .
फ़ोन तो रख दिया था उसने पर मेरे जेहन में बहुत देर तक बनी रही प्रज्ञा
दूर कही,
मेघा अपना झोला उठाये आ पहुंची थी उसी जगह पर ,न जाने क्या ढूंढ रही थी वो वहां पर अँधेरा घिर सा आया था उसने जेब से एक दिया निकाला और रौशनी की , मेघा न जाने क्या सोच रही थी , फिर उठ कर वो उस कमरे के अन्दर गयी , कुछ नहीं था सिवाय अँधेरे के .
“क्यों लगता है की इस जगह से कोई सम्बन्ध है , अरे ये क्या रखा है ” मेघा ने अन्दर रौशनी करते हुए कहा
उसकी नजर उस रुबाब पर पड़ी, उसने उसे हाथो में लिया
“ये कौन लाया यहाँ ” अपने आप से सवाल किया उसने और उस रुबाब को बाहर ले आई, उसकी उंगलियों ने छेड़ दिया किसी धुन को. ऐसा नहीं था की मेघा ने पहले कभी रुबाब बजाया वो पर जैसे वो रुबाब खुद खेल रहा था उसकी उंगलियों से ,
“किसी ने बताया नहीं तुझे छोरी, दुसरो की मिलकियत में चोरी छिपे नहीं आते, और न दुसरो की चीजे छेड़ते है, मैंने उस लड़के को कहा था की तू यहाँ नहीं आणि चाहिए , उसने नहीं बताया तुझे, ” गुस्से से भरी आवाज जैसे मेघा की रीढ़ में उतर गयी .
उसने पीछे मुड कर देखा और उसी पल उसके हाथ से दिया निचे गिर गया .
“कौन है आप ” उसने धीरे से पूछा
“मेरी छोड़ , अपनी देख , ये मोहब्बत की जगह है और तेरी कोई जरुरत नहीं यहाँ ” जवाब आया
मेघा- मैंने भी इसी जगह को शायद इसलिए ही चुना ताकि ज़माने से दूर अपने प्रेम से मिल सकू
वो मेघा के पास आई और बोली- धडकने तो कुछ और कह रही है तेरी, मुझे कुछ और बू आ रही है , जो खेल तू खेल रही हैं न , कीमत जानती है उसकी,
मेघा- क्या कह रही है आप
वो- उफ्फ्फ ये खूबसूरत चेहरों की झूठ बोलने की कला. चल मैं ही बताति हु, सप्त सिद्धि के बारे में बात कर रही हूँ मैं
जैसे ही उसने मेघा के सामने ये बात कही, मेघा के चेहरे का नूर उड़ गया
मेघा- आपको कैसे
वो- मेरी छोड़ , बताऊ तुझे तेरे छल के बारे में, तू क्या जानेगी मोहब्बत को तू तो छलिया है ,
मेघा ने अपना सर निचे झुका लिया
वो- मोहब्बत, बस मजाक बनाके रख दिया तेरे जैसी ने , जो अपने साथी को अपनी हकीकत नहीं बता पाई, तू क्या हाथ पकड़ेगी उसका, तेरी बाते, तेरे वादे सब बेमानी हो जायेंगे जब परीक्षा की घडी आएगी,
मेघा- मैं उसका साथ कभी नहीं छोडूंगी , जियूंगी तो उसके साथ और मरूंगी तो उसके लिए
वो- मार तो दिया ही था तूने उसे , तुझे क्या लगता है तेरी सिद्धि ने बचाया था उसे, उसकी डोर तू नहीं थाम पाई थी .
मेघा के लिए ये एक और हैरान करने वाली बात थी .
वो- तू नादान लड़की , तेरी अधूरी शिक्षा , और वो पाने की चाह , जानती है कितना बड़ा पाप हुआ था तुझसे .
मेघा- मानती हु मेरी गलती थी , और पश्चाताप की आग में जल भी रही हु,
वो- नसीब तेरा, अब तू जा यहाँ से और मुड कर मत आना
मेघा- आप मुझे नहीं रोक सकती
वो- मैं नहीं मेरी तलवार रोकेगी
मेघा- मैं भी पीछे नहीं हटूंगी फिर, मैं ये तो नहीं जानती की आपका इस जगह से क्या नाता है पर मेरी मोहब्बत की दास्ताँ के किस्से यही लिखे जायेंगे.
वो- तेरा नसीब, छोरी
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