Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:16 PM,
#52
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#48

न वो कुछ बोल रही थी न मैं बस एक दुसरे के आगोश में इस वाकये को भूलने की कोशिश कर रहे थे , कोई छोटी मोटी बात हो तो भूल भी जाये, पर मेघा मरते मरते बची थी , एक पल की ही बात थी और वो ख़ाक हो जाती, मेरी धडकने ये सोच कर ही घबरायी हुई थी , मैंने उसकी गर्दन पर देखा निशान थे जलने के

मैं-दर्द हो रहा है

वो- नहीं , बस तभी था

मैं- पर वो क्या था

मेघा- शायद ये लोकेट शापित है ,

मैं- तो फिर मैंने कैसे पहना हुआ है

मेघा- क्या मालूम तुम्हारा कोई नाता हो इस से

मैं- पर ये मेरा भी नहीं है , बस मैं इसके बोझ को उठा पा रहा हूँ

मेघा- कैसा बोझ कबीर,

मैं- यही तो नहीं मालूम

वो- मुझे लगने लगा है कबीर ये सब तुमसे जुड़ा है , वो औरत को ही देख लो उसने बस मुझे रोका तुम्हे नहीं , वक़्त के पन्नो में जो कुछ भी दफ़न है वो तुमसे जुड़ा है

मैं- पर कैसे , मेरा क्या लेना देना

मेघा ने अपने झोले से कागज निकाले और आड़ी टेढ़ी रेखाए खीचने लगी ,

मैं- क्या कर रही हो

“दो मिनट रुको बस ” उसने कहा

कुछ देर बाद उसने कागज पर एक नक्शा सा उकेर लिया था

मेघा- देखो ये नक्शा उस पुरे एरिया का हैं जो हम से सम्बंधित है , मंदिर, चबूतरा, ये जगह , तुम्हारा खेत और तुम्हारे गाँव की वो जगह जहाँ मैंने दिया जलाया था .

मैं- पर इनमे क्या समानता है

मेघा- गौर से देखो कुछ तो होगा ही , अगर एक छोटी मोटी जानकारी भी मिल पाए तो हम बहुत आगे बढ़ जायेंगे

मैं- छोड़ इन बातो को मुझे भूख लगी है, रात को भी कुछ नहीं खाया था चल चलते है

मेघा- हाँ

हम दोनों चोर रस्ते से घूमते फिरते खेत पर आये, मेघा हाथ पांव धोने लगी, उसके चेहरे पर गिरते पानी से इर्ष्या होने लगी मुझे

मेघा- यूँ न देखा करो, ये नजरे दिल में उतरती है

मैं- आदत डाल लो , ये नजरे अब बस तुम्हे ही देखा करेंगी, बार बार देखा करेंगी

मेघा- मेरी खुशनसीबी मेरे सरकार , चाय बनाऊ

मैं- नहीं, रोटी ही खाते है ,

कहने को तो बस ये हमारी बाते थी पर हम कहाँ जानते थे की हम बस वो लम्हे जी रहे थे , या किरदार निभा रहे थे, ये डोर जो हम बाँध रहे थे ये कहाँ हमारी थी . चूल्हे पर रोटी बनाती मेघा को बस जैसे देखते रहू, कोई तो बात थी जो मुझे उसके इतने करीब ले आई थी

“सामान नहीं है न इसलिए चटनी ही खानी पड़ेगी, तुम तो जानती हो न आजकल मैं इधर रहता नहीं तो खाने पीने की चीज़े कम है ” मैंने कहा

वो- क्या फर्क पड़ता है, तुम साथ हो , हम साथ खा रहे है ये बड़ी बात है, और फिर ये दिन भी बीत जायेंगे , सुख अपने भाग में भी आएगा

मैं- सो तो है ,

मेघा- तो फिर क्या शिकवा करना, खाओ खाना

मैं- हाँ

कुछ तो भूख थी कुछ उसके हाथ से बनी रोटियों का स्वाद , खाने के बाद उसने फिर से वो नक्शा उठा लिया, कुछ देर बाद बोली-” इन तमाम जगहों में एक समानता है कबीर ”

मैं- क्या

मेघा- ये आपस में एक तारा बनाते है देखो

उसने कुछ बिंदु को रेखा बनाई और यक़ीनन ये एक तारे की शक्ल बन रही थी .

मैं- यानि माँ तारा , यानि मंदिर से कोई सम्बन्ध है

मेघा-और देखो हम लगभग तमाम जगहों पर घूम रहे है सिवाय इस एक के .

मेघा ने उस जगह पर ऊँगली रखी ये वो जगह थी जो हमारी सरहद में थी ,

मैं- पर तुम यहाँ गयी थी न

मेघा-हाँ पर किसी और प्रयोजन से , मुझे लगता है हमें वहां दुबारा जाना चाहिए,

मैं- ठीक है चलते है ,

मेघा- एक काम और कबीर, कुदाली, फावली भी ले चलते है शयद जरुरत पड़ जाये.

मैंने सामान साइकिल पर लादा और वहां चल दिए, ये दोपहर का समय था , धुप पूरी थी, पर हम आखिरकार पहुँच ही गयी, बरसात के बीते मौसम ने यहाँ का नक्शा ही पलट दिया था . मेघा ने अपना माथा पीट लिया , जंगल की यही तो परेशानी थी ये न जाने कैसे किधर फ़ैल जाए

“अब क्या करे,” मैंने पूछा

मेघा- अंदाजा ही लगा सकते है

मैं- मेघा एक बात याद है तुम्हे जहाँ तुमने दिया जलाया था वहां पर सूखी मिटटी वाली धरती थी , घास भी नहीं थी वहां

मेघा- अरे हाँ ये तो मैं भूल ही गयी थी

घंटे भर की मेहनत के बाद आखिर हम कुछ कामयाब हुए ,

“यहाँ हो सकती है शयद वो जगह ” मैंने कहा

मेघा- लग तो यही रही है

हमने वहां पर खुदाई करनी शुरू की, उमस में मेहनत का काम करना अपने आप में जैसे सजा था ऊपर से ये बस हमारा अंदाजा था , पर कौन जानता था अज तक़दीर हम पर थोड़ी मेहरबान थी , कुछ घंटो की खुदाई के बाद हमें कुछ निशानिया दिखने लगी थी .

“कबीर ये श्याद कोई कमरा रहा होगा ” मेघा ने कहा

मैं- नहीं, ये घर था .

मेघा- काश, हम खुदाई की मशीने मंगा पाते तो आसानी होगी

मैं- और फिर लोगो की नजर में आ जाते उसका क्या,

मेघा- ठीक कहते है .

दोपहर कब रात में ढल गयी और रात न जाने कब अगले दिन में पर हम लगे रहे, कुछ छोटी मोटी चीज़े मिली, पुराने बर्तन, आदि पर करार जब आया जब हमको वो बक्सा मिला. एक बड़ा सा संदूक जो ऐसा था की जैसे अभी अभी रखा हो किसी ने

“खोल के देखो ” मेघा ने कहा

मैंने उसे खोला और हम दोनों की आँखे हैरत से जैसे फट गयी
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RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश - by desiaks - 12-07-2020, 12:16 PM

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