RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#49
बाक्स में कुछ कपडे थे, जो जार जार थे, पर हमारी हैरानी थी उस लाल जोड़े की वजह से, जैसे अभी अभी ख़रीदा हो दुकान से, लाल रंग का दुल्हन का जोड़ा जिस पर चांदी की तारो से सजावट थी,
“नहीं तुम मत छूना मैं देखता हु ” मैंने मेघा से कहा . लॉकेट वाले हादसे के बाद मैं रिस्क नहीं लेना चाहता था
मैंने उस जोड़े को उठाया, बस एक लिबास था ,
मेघा ने उसे अपने हाथो में लिया सब ठीक था,
मेघा- बहुत , बहुत खूबसूरत है
मैं- पर किसका है
मेघा- फिलहाल इसे रखते है और खुदाई करते है
मैं- ठीक है .
हमने फिर शाम तक खुदाई की पर और कुछ खास नहीं मिला , कभी तो किसी का घर रहा होगा ये पर समय ने छुपा लिया था इसे , और बहुत मुश्किल था इसकी सम्पूर्ण खुदाई करना म जितना हमसे हुआ हमने कोशिश की ,
“अब और नहीं होगी मुझसे ” मैंने कहा
मेघा- ठीक है चलते है कल फिर आयेंगे,
मैं- हाँ
मेघा- पर मैं ये लिबास ले चलूंगी
मैं- मिली चीजो पर हमारा हक़ नहीं होता मेघा
मेघा- कबीर, मेरा मन है
मैं- पर ये हमारा नहीं है
मेघा- मान जाओ न
अब मैं उसे न न ही कह पाया, एक बार फिर हम मेरे आशियाने पर थे,
“तुम चलो मैं नाहा कर आता हु ” मैंने कहा
मेघा- वैसे नहाना तो मुझे भी है, हाल बेहाल है
मैं ठीक है पहले तुम नहालो मैं बाद में नहाता हु
मेघा- बाथरूम किधर है तुम्हारा
मैं- मैं तो यही नहाता हु नलके पर , मैं मोटर चलाता हु, वैसे भी अँधेरा है यही नहा लो .
मेघा- हम्म , अब जाओ भी ,
मैंने मोटर चलाई
मैं- जब तक तुम नहाओगी मैं गाँव हो आता हु, कुछ सामान ले आता हु
मेघा- जल्दी आना
मैं- हाँ बस यु गया यु आया
मैंने साइकिल उठाई और गाँव की तरफ बढ़ गया, सब्जिया, छोटा मोटा खाने पीने का सामान ख़रीदा , वापसी में घर से पास से गुजर रहा था की भाभी मिल गयी दरवाजे पर
“देवर जी, ”
मुझे रुकना पड़ा
मैं- फिर मिलता हु भाभी अभी थोड़ी जल्दी है
भाभी तब तक सड़क पर आ चुकी थी , मेरे सामान को देखा और बोली- क्या बात है , बड़ी जल्दी में हो और ये कपडे कैसे सने है धुल मिटटी से
मैं- मजदूरी मिल गयी थी , अभी वही से आया था पैसे ठीक मिले थे सोचा थोडा राशन ले लू
मैंने तो बस ये बात भाभी को टालने के लिए कही थी पर वो थोडा महसूस कर गयी थी
भाभी-क्यों करते हो ये सब ,हम सब के जी को जलने के लिए न
मैं- भाभी मुझे थोड़ी जल्दी है , कभी फुर्सत हुई तो आपसे ढेर सी बाते करुँगी
वो मुझे आवाज देती रह गयी पर मैं रुका नहीं क्योंकि मेरे हालात ऐसे नहीं थे की मेघा को मैं अकेला छोड़ दू, रतनगढ़ वाले न जाने कब आ जाये उधर, खैर मैं पंहुचा तब तक मेघा नाहा चुकी थी , मैंने उसे सामान दिया वो खाना बनाने लगी मैं नहाने लगा, ठन्डे पानी में उतर के बड़ा सकूं मिला, बदन पर कुछ छाले थे उन्हें आराम मिला ठन्डे पानी से.
मैंने आँखे मूँद ली और थोड़ी देर के लिए सबसे जैसे दूर हो गया .
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