RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#61
मैंने भाई को धक्का दिया तो वो गुस्से से उबल पड़ा .
“इस दो कौड़ी की के लिए तू मुझ पर हाथ उठा रहा है , पर शायद तू भूल गया है की मैं कर्ण हु ठाकुर कर्ण , पहले तुझसे निपट कर ही चोदुंगा इसे ” उसने गुस्से से कहा
मेरी आँखों के सामने तीन साल पहले की वो रात आ गयी जब ठीक ऐसी ही परिस्तिथि सामने थी, और क्या बदला था उस रात से इस रात में सिवाय मेरे दुःख के, इन चुतियो को तो कोई फर्क न तब पड़ा था न आज. बस फर्क इतना था उस रात ताऊ था आज भाई था और समानता ये थी की वो भी अपना विवेक छोड़ चूका था ये भी .
मैं- कर्ण, ये गलती मत कर, मेरे सब्र का इम्तेहान मत ले एक बार मैं शुरू हुआ तो रुकुंगा नहीं ,
भाई- शुरू तो अब हो गया है .
वो मेरी तरफ लपका, मैंने उसके पैरो में अडंगी लगाई वो निचे गिरा गिरते ही मैंने उसके पेट में एक लात मारी. चीखा वो . मैंने एक लात और मारी . अब उसे भी गुस्सा आया. उसने मुझे परे किया और उछालते हुए मेरे मुह पर एक लात मारी. बड़ी जोर से लगी . इतने में उसने एक लकड़ी उठा ली और दनादन मेरी पीठ पर मारने लगा. जैसे वो पागल हो गया था.
“आज तेरी चमड़ी नहीं उधेड़ दी तो मेरा नाम बदल दियो ” मुझे मारते हुए बोला वो
मैंने उसका प्रतिकार किया और उसके मुह पर एक मुक्का मारा , तिलमिला गया वो . मैंने एक पत्थर उठा लिया और उसके चेहरे पर दे मारा, मुझे गुस्सा तो था ही बस मारते गया उसे जब तक की वो कराहते हुए गिर नहीं गया.
पर मैं रुक गया, मैं इतिहास नहीं दोहराना चाहता था , मैंने उस लड़की को वहां से जाने को कहा , और फिर कर्ण को गाड़ी में डाल कर घर की तरफ गया. हवेली में मेरे पहुचते ही चीख पुकार मच गयी भाभी, माँ दौड़ कर आई ,पूछने लगी
मैं- इलाज करवा लेना इसका, और जब इसे होश आये तो इसे समझा देना गाँव की किसी भी बहन बेटी की तरफ गलत नजरो से देखा न इसने तो खाल खींच लूँगा इसकी
मेरी बात पूरी होती उस से पहले ही मेरे गाल पर थप्पड़ आ पड़ा
“हिम्मत कैसे हुई मेरे पति को हाथ लगाने की तुम्हारी, ” भाभी ने चीखते हुए कहा
मैं- वाह , वाह भाभी वाह , मेरी हिम्मत की बात करती हो हिम्मत इसकी कैसे हुई जब वो लड़की मिन्नते कर रही थी दुहाई दे रही थी अपनी इज्जत की भीख मांग रही थी इस से
भाभी- तो क्या हुआ, ठाकुरों का खून थोडा गर्म होता ही है क्या हुआ अगर कही बाहर मुह मार लिया तो
मैं- क्या हुआ बाहर मुह मार लिया तो , ठाकुरों का खून है , मेरे अन्दर भी ठाकुरों का खून है न भाभी मेरा भी जी कर रहा है चल तू ही आ कर मेरा बिस्तर गर्म, क्या हुआ मैं भी सो लूँगा तेरे साथ
मैंने भाभी का हाथ पकड़ लिया.
“चल तेरे इस मादक जिस्म से मेरी गर्मी मिटा दे, भाभी ” मैंने कहा
तड़क
एक और थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा
“कमीने तुझे शर्म नहीं है अपनी भाभी से ऐसे बात करता है , खाल खींच लुंगी तेरी ” माँ थी ये
मैं- क्यों मिर्च लग गयी , तुम्हारा खून, खून दुसरो का खून पानी कब तक इन न मर्दों की गलतिया छुपओगी माँ
मैं- गलती है इसकी पर तूने जो हरकत की है वो भी गलत है
मैं- क्यों गलत है क्योंकि ये भाभी इस घर की बहु है , वो लड़की भी किसी की बहन बेटी होगी न, और जब उसका जिस्म सस्ता है तो तेरे गहर की बहु का क्यों नहीं .
माँ- निकल जा इस घर से, और मुड के शक्ल मत दिखाना
मैं- जा रहा हु, शौक नहीं है तुम नकली लोगो संग रहने का पर अपने इस चाँद को समझा लेना अगर मुझे मालूम हुआ उस लड़की को इसने फिर तंग किया तो तू तेरी बहु का सिंदूर खुद मिटा देना
अगर मेरा बस चलता तो इस झूठी शान शौकत, दिखावे को मैं इस जहाँ से मिटा देता . मैंने गुस्से में दरवाजे पर थूका और बाहर निकल गया .
दूसरी तरफ, मेघा, हाँ ये मेघा ही थी जो बावड़ी पर खड़ी थी, उसने अपने झोले से एक छोटी सी सीशी निकाली और कुछ बूंदे खून की पानी में डाली , पानी में हलचल हुई मेघा पानी में उतरने लगी , उतरती रही जब तक की डूब नहीं गयी. कुछ देर बाद वो अपने कंधे पर एक मोटी बेल लिए कुछ खींच रही थी, जबड़े भींचे थे जैसे उसे बहुत जोर लगाना पड़ रहा हो. जैसे ही उसने पानी से बाहर आने को अपना पैर बाहार निकाला वो बेल जलने लगी.
तपिशसे अपने कंधे को जलते महसूस किया उसने
“आह” चीखी वो . बेल वापिस पानी में डूब गयी.
“”वारिस को ले आओ , वारिस तुम्हे ये देता है तो ले जाओ “ आवाज आई
“ये मेरा है , मैं इसे लेकर रहूंगी ” मेघा बोली
आवाज- जान जाएगी
मेघा- आजमाइश करुँगी
आवाज- पीछे हटी तो मौत , जीती तो सब तेरा
मेघा- तैयार हूँ
आवाज- तैआर हो
कुछ पल ख़ामोशी छाई रही , और फिर पानी से बुलबुले निकले एक दो तीन नहीं ये तो पुरे २१ थे, और फिर जब वो सामने आये तो मेघा के पैर एक पल को लडखडा गए.
मेघा के सामने २१ नाहर्वीर थे, दुनिया एक को नहीं देख पाती, भाग्यवान थी मेघा जो २१ को देख रही थी , २१ नाहर्वीर जिनका काम था मुद्दतो तक खजाने की रक्षा करना ताकि उसे उसके वारिस को सौंप सके. कोई आवाज नहीं हो रही थी, पर फिर भी सीढियों पर तुफ्फान आया हुआ था. एक तलवार २१ से लोहा ले रही थी .
जहाँ बड़े बड़े तांत्रिक घुटने टेक देते थे उन्हें साधने में मेघा का दुस्साहस ही था ये की वो उनको सीधे युद्ध में हराना चाहती थी, मेघा ने अपनी सिद्धियों का इस्तेमाल किया और अपने रूप के २१ टुकड़े कर लिए. एक मेघा और एक नाहर्वीर पर वो दुनिया के सबसे कुशल रक्षक थे, उन्होंने डोरा बांधना शुरू किया और मेघा कमजोर होने लगी.
कुछ ही पलो में उसके रूप बिखरने लगे, डोरे में फंस गयी थी वो और २१ तलवारे अब उसकी एक से टकराने को उठी, पर टकरा नहीं पायी मेघा को अपने ऊपर ढाल महसूस हुई .
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