RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#65
मेरे दिल में एक साथ हजार सवाल दौड़ रहे थे आखिर ऐसी क्या बात थी जो प्रज्ञा ने मुझे इतना अर्जेंट बुलाया था, किसी अनहोनी की वजह से मैं थोडा टेंशन में आ गया था , ले देकर बस एक प्रज्ञा ही तो बची थी मेरे पास , खैर मैं जल्दी ही अनपरा पहुच गया , मैंने उसे फ़ोन किया
मैं- हाँ मैं पहुच गया हु
प्रज्ञा- पुरानी हवेली के पास आ जाओ
मैंने गाड़ी उस तरफ मोड़ ली, कुछ देर बाद प्रज्ञा उस तरफ आई , उसके हाथो में एक बैग था , तुरंत वो गाड़ी में बैठ गयी
मैं- क्या हुआ .
वो- बताती हु, तुम गाड़ी स्टार्ट करो
मैं- पर हुआ क्या
प्रज्ञा- कहा न यहाँ से चलो
मैं- ठीक है बाबा , पर किधर चलना है .
प्रज्ञा- जहाँ सिर्फ हम दोनों हो .
उसने मेरे काँधे पर अपना सर रखा और बोली- थोड़ी देर सोना चाहती हु
मैं समझ गया था की उसे कहाँ जाना है और ये भी की परेशान है वो . रात आधी से ज्यादा बीत गयी थी , थोडा समय और लगा हमें फिर हम प्रज्ञा के फार्महाउस पहुच गए.
गाड़ी अन्दर लगाई और फिर कमरे में आ गए.
मैं- अब तो बता दो
प्रज्ञा- बताती हु, मेरे पति और तुम्हारे पिता का क्या रिश्ता है
मैं- इस सवाल के लिए इतना जल्दी था मिलना
प्रज्ञा- बताओ मुझे
मैं- तुम नहीं जानती क्या
प्रज्ञा- जानती तो तुमसे सवाल नहीं करती
मैं- दुश्मनी का
प्रज्ञा - और दो दुश्मन जब एक साथ आ जाये, उनमे दोस्ती हो जाये तो
मैं- हो सकता है लोग अपने स्वार्थ के लिए अक्सर दुश्मनी भुला देते है , या फिर कोई ऐसी चीज़ जो दुश्मनी से ऊपर हो , मतलब कोई व्यापारिक फायदा जैसे की
प्रज्ञा- यही बात मुझे खटक रही है की पीढियों की दुश्मनी को अचानक भुला कर दो लोग एक कैसे ही गए, कोई और मौका होता तो मैं भी खुश होती की चलो दोनों गाँव एक हो गए, भाईचारा बन गया , पर इस हालात में ये कैसे मुमकिन है
मैं- भाड़ में जाए दुनिया, तुम क्यों इतना सोचती हो. अगर दोनों कोई खिचड़ी पका भी रहे है तो भी हमें क्या लेना देना उनसे
प्रज्ञा- आज होटल में एक मीटिंग हुई है , किस्मत से मुझे जानकारी मिल गयी ,
मैं- क्या हुआ मीटिंग में
प्रज्ञा- ये कहानी इतनी आसान नहीं है कबीर, इस कहानी के मोहरे भर है हम सब , तुम्हे याद होगा कबीर मैंने तुमसे कहा था की राणाजी ने बहुत सा सोना ख़रीदा है . वो लोग उस सोने से कुछ करने जा रहे है
मैं- क्या , क्या करने जा रहे है
प्रज्ञा- ये मालूम करना होगा हमें .
मैं- किस जगह
प्रज्ञा- जल्दी ही मालूम कर लुंगी मैं
मैं- हम्म, पर तुम्हारी माँ बीमार है , तुम्हे ऐसे नहीं आना चाहिए था फ़ोन पर बता देती , मैं देख लेता मामले को
प्रज्ञा- मेरा सब कुछ दांव पर लगा है कबीर, राणाजी ने रखैल पाली हुई है गृहस्थी डांवाडोल हुई पड़ी है
मैं- समझता हूँ पर सोचो जरा एक दिन ऐसा आएगा जब दुनिया के सामने तुम्हे हमारे इस रिश्ते को बताना पड़ेगा तब क्या कहोगी तुम राणाजी से.
प्रज्ञा- मैं क्या कहूँगी, मैं क्या कहूँगी मैं हक़ से तुम्हारे हाथ को थाम लुंगी
मैं- किस हक़ से
प्रज्ञा- दोस्ती के हक़ से,
मैं- जमाना कहाँ मानता है इन बातो को और मेरी वजह से तुम्हारे दामन पर दाग लगे, ऐसा होने नहीं दूंगा मैं .
प्रज्ञा- इसलिए तो तुमपे भरोसा करती हूँ , ये जिस्मानी रिश्ते इसलिए नहीं बनाये मैंने की मेरी हवस मेरे काबू में नहीं है बल्कि मैं तुमसे इस तरह जुडी हु की तुम मेरा एक हिस्सा हो .
मैं- इसीलिए डरता हु की कही मेरी वजह से तुम्हारी ग्रहस्थी में आग न लग जाये.
प्रज्ञा- आग तो राणाजी ने लगा ही दी है , मैं तो बुझाने की कोशिश कर रही हूँ
मैंने ताई वाली बात प्रज्ञा को बताई की मैं सविता के लिए चिंतित था
प्रज्ञा- अगर वो रतनगढ़ आ जाये तो मैं जिम्मेदारी ले सकती हु उसकी सुरक्षा की
मैं- ऐसा नहीं हो पायेगा.
प्रज्ञा- तो फिर जैसा है वैसे रहने दो. वैसे मैंने एक बात और मालूम कर ली है
मैं क्या
प्रज्ञा- यही की कामिनी के कमरे में वो कौन आदमी की तस्वीर थी .
मैं- ये सबसे पहले बताना था न
प्रज्ञा- अभी ध्यान आया, वो राणा हुकुम सिंह की तस्वीर थी ,
मैं- कौन राणा हुकुम सिंह
प्रज्ञा- तुम्हे हमेशा से इतिहास जानने की तलब थी न , मैं पूरा तो नहीं पर जितना जानती हूँ बताती हूँ , राणा हुक्म सिंह का ताल्लुक देवगढ़ से है .
मैं- देवगढ़. पर वो तो
प्रज्ञा- हाँ , वही देवगढ़ जो बरसो पहले खत्म हो गया .
प्रज्ञा ने एक पेग बना कर मेरी तरफ बढ़ाया
मैं- इस से बात नहीं बनेगी,
प्रज्ञा- तो क्या चाहिए तुम्हे
मैं- तुम्हारी चूत का रस पीना चाहता हु
प्रज्ञा- तुम्हारी ये अश्लील बाते, कलेजे में उतर जाती है
मैं- तुम हो ही ऐसी , इस खूबसूरत बदन की कशिश मुझे पागल कर देती है
प्रज्ञा- ठीक है वो रस भी पिला दूंगी , पर पहले इन अधूरी बातो को पूरा कर लेते है , और कल सुबह सुबह ही हम देवगढ़ के लिए निकलेंगे.
मैं- बिलकुल , पर एक बात खटक गयी है दोनों ठाकुर मिल कर आखिर क्या करने वाले है कामिनी की डायरी भी नहीं आई है दुरुस्त होक , कुछ जानकारी मिल जाती
प्रज्ञा- जानकारी मिली तो है , देखो मंदिर में पिघला सोना, फिर वो बावड़ी पर सोना, उसके बाद दोनों ठाकुरों का सोना खरीदना, फिर कामिनी की हवेली में पिघला सोना मिलना , ये सब आपस में जुडी हुई घटनाये है , बस हमें इनके जुड़ने की वजह तलाश करनी है
मैं- और वो वजह हमें मिलेगी देवगढ़ में .
मैंने प्रज्ञा का हाथ पकड़ा और उसे अपने आगोश में खींच लिया .
प्रज्ञा- मुझे लगता है थोड़ी देर सो लेना चाहिए
मैं- सो लेंगे पर अभी मुझे तुम्हे प्यार करना है .
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