RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#73
मैं इतनी जोर से पिल्लर से टकराया था की अन्दर से टूटती पेशियों की आह को मैंने बहुत जोर से महसूस किया. आँखों के आगे अँधेरा छा गया. इस से पहले की मैं संभल पाता मेघा ने बहुत गहरा जख्म दे दिया. मेरे मुह से खून की उलटी गिर गयी. जिस तरह से उसके प्रहारों की त्रीवता बढती जा रही थी मुझ को भी क्रोध आने लगा था .
और इसी गुस्से में मुझसे वो हो गया जो नहीं होना था , मैंने गुस्से में उसे उठा कर सीढियों पर दे मारा उसके हाथो से तलवार छूट गयी, जिसे मैंने उसके पेट में घोंप दिया. बेशक ये क्रोध का छोटा सा लम्हा था पर इसी में सब हो गया था .
मुझे उसी पल अहसास हो गया था की अनर्थ हो गया है , मेघा दर्द से बिलबिलाते हुए सीढियों पर पड़ी थी , मैंने उसे भर लिया अपने आगोश में, उसकी आँखे खुली थी .मैंने तलवार पेट से बाहर निकाली , खून का दरिया जैसे बह चला, पर बात अगर यही तक ठीक थी तो कोई बात नहीं असली मुसीबत का पता मुझे थोड़ी देर बाद चला जब मेरे जिस्म में दर्द की एक लहर उठी.
ज़ख्म मेघा का था पर दर्द, मेरा था जितना खून उसके बदन से बह रहा था उतना दर्द मुझे हो रहा था , मेरा जिस्म ऐंठने लगा. नसे जोर मारने लगी, मैं पागलो की तरह चीख रहा था , चिल्ला रहा था पर सब मेघा को संभालने में लगे थे,
“”क्या किया तूने मेघा क्या किया “ मैंने सवाल किया उस से
पर वो बस आँखे मूंदे पड़ी थी , होंठ हिल रहे थे उसके हौले हौले. क्या मेघा ने तंत्र का कोई प्रयोग कर दिया मुझ पर . आँखे जैसे दर्द के मारे बाहर आने को हुई पड़ी थी , ये दर्द ऐसा था की जैसे कोई नोंच रहा हो, काट रहा हो मेरे बदन को , इस दर्द को मैंने पहले भी महसूस किया था जब टूटे चबूतरे पर जानवरों ने हमला किया था मुझ पर .
“ये तूने क्या किया मेघा, बताती क्यों नहीं मुझे ” मैंने चीखते हुए कहा पर उसके होंठो पर बस एक मुस्कान थी , वो मुस्कान जो कभी इस दिल में उतर जाती थी .
मेघा लड़खड़ाते हुए उठी, मेरे पास आई.
मेघा- ये साथ यही तक था, सोचा तो था की सुहागन बन कर तेरे साथ ये जीवन जीना है , पर अब ये ही सही .
वो मुड़ी और पीठ मोड़ कर चल पड़ी, मैं बस उसे जाते हुए देखते रहा , उसे रोकना चाहता था पर रोक नहीं पाया. जिस्म को जैसे अंगारों पर रख दिया हो किसी ने , आग लगी थी पर जल नहीं पा रहा था मैं , मैंने देखा मेरे बदन से बहता खून काला पड़ने लगा था . कोयले सा काला. घुटने धरती पर टिक गए थे, सब कुछ अँधेरा अँधेरा लगने लगा था .
न जाने कब बेहोशी ने अपने आगोश में समा लिया मुझे कोई होश नहीं , कोई खबर नहीं.
इन सब बातो से अनजान प्रज्ञा आरती के लिए दिया जला रही थी की मंदिर में रखते ही दिया बुझ गया, उसकी २२ साल की गृहस्थी में ऐसा कभी नहीं हुआ था, अनजाने भय से उसकी आत्मा कांप गयी, एक तो वो मेघा को लेकर बहुत परेशान थी . वो उस से नजरे नहीं मिला पा रही थी .
मेघा ने दिए को दुबारा जलाने के लिए दियासलाई जलाई ही थी की बाहर से आते शोर ने उसका ध्यान भटका दिया. नंगे पैर ही दौड़ी वो बाहर की तरफ और जब उसने देखा मेघा को चक्कर ही आ गए उसे, खून से लथपथ मेघा लड़खड़ाते कदमो से हवेली में आ रही थी . प्रज्ञा उसे देखते ही चीख पड़ी, माँ जो थी औलाद के लिए कलेजा फटना ही था .
“मेघा, मेरी बच्ची क्या हुआ तुम्हे ” प्रज्ञा भागी मेघा की तरफ
पर मेघा ने हाथ के इशारे से प्रज्ञा को रोक दिया.
“तुम्हे चिंता करने की जरुरत नहीं है मेरी , ये दिखावा बंद करो ” मेघा ने हौले से प्रज्ञा को कहा और अन्दर चली गयी.
प्रज्ञा को बहुत दुःख हुआ आँखों में पानी आ गया. उसने मूक निगाहों से राणा से सवाल किया की क्या हुआ . राणा ने उसे अपने साथ आने को कहा. धडकते दिल को बड़ी मुश्किल से संभाले प्रज्ञा राणा के साथ चल पड़ी.
राणा ने पूरी बात बताई उसे, प्रज्ञा के लिए अपने जज्बातों पर काबू रखना बहुत कठिन था , एक तरफ दोस्त के अनिष्ट की खबर और सामने पति खड़ा , धर्मसंकट में फंसी प्रज्ञा चाह कर भी कुछ न कर सकी. बस नसीब को कोस कर रह गयी.
अपने ज़ख्मो को सीती मेघा के चेहरे पर कोई भाव नहीं था , पर दिल में तूफ़ान आया हुआ था , आँखों के सामने तमाम वो पल आ रहे थे जो उसने कबीर के साथ बिताये थे, पर साथ ही एक याद ऐसी भी थी जिसने उसके मन को नफरत से भर दिया था.
“बस तुमसे अब मैं थोड़ी ही दूर हूँ, एक बार तुम्हे पा लू ” उसने अपने ख्यालो से कहा
अपने कमरे में चहलकदमी करते हुए राणा गहरी सोच में डूबा था , उसने प्रज्ञा का ऐसा रूप नहीं देखा था , वो हैरान था की औलाद ने क्या क्या छुपा रखा था उस से, और मेघा और कबीर के रिश्ते की हकीकत ने तो उसे हिला कर रख दिया था . राणा को अपनी बेटी पर बहुत गुमान था पर वही बेटी दुश्मन से इश्क में थी.
राणा जैसे लोग जिनके लिए जान से ज्यादा अपनी मूंछ की कीमत रही हो. वो ऐसी बातो को कैसे पचा पाते, और वो भी तब जब बात उसकी बेटी की हो.
उसने नौकर को भेजा मेघा को बुलाने के लिए. वो अपनी बेटी को टटोलना चाहता था उसके मन का भेद लेना चाहता था .
“देखो, बेटी मैं नहीं जानता की उस लड़के और तुम्हारे बीच क्या है क्या नहीं है , पर एक बाप होने के नाते मेरा इतना तो हक़ है की तुमसे पूछ सकू ” राणा ने पासा फेका
मेघा- कुछ नहीं है मेरा उस से, सिवाय इसके की वो हमारा दुश्मन है
राणा- हाँ पर बीते समय में हालात ऐसे नहीं थे न
मेघा- जो बीत गया उसका क्या जिक्र करना
राणा- तुम्हारा बाप हूँ , इस घर का मुखिया हूँ , मुझे मालूम होना चाहिए
मेघा- तो फिर करिए मालूम किसने रोका है , अभी मैं थोड़ी देर अकेले रहना चाहती हूँ सुबह वैसे भी मुझे शहर के लिए निकलना है
जिस तरह से मेघा ने राणा को जवाब दिया था एक पल को वो हैरान रह गया की क्या ये उसकी ही बेटी है .
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