RE: Bhai Bahan XXX भाई की जवानी
आज तक औरतों के अंडरगार्मेंट्स का पता नहीं था। जाने विशाल के मन क्या आया, और विशाल ने आरोही की ब्रा को हाथ में ले लिया, और ब्रा को हाथ में लेकर उसका मआइना सा करने लगा। विशाल ने आज पहली बार कोई ब्रा हाथ में ली थी।
आरोही ये सब कुछ बाथरूम के दरवाजे की झिरी से देख रही थी। आरोही के चेहरे पर बड़ी शरारती मुश्कान आ रही थी की कैसे उसके भैया उसकी ब्रा का मुआइना कर रहे हैं।
आरोही सोचती है- "क्या भैया ब्रा को देखकर मेरी चूचियों का साइज नाप रहे हैं?" और में सोचकर खुद-ब-खुद मुश्कुराती जा रही थी। आरोही कुछ सोचते हुए विशाल की पैंट की तरफ देखती है। जो इस वक़्त काफी उभरा हुआ लग रहा था।
फिर आरोही को एक और शरारत सूझती है। वो हाथ में तौलिया पकड़कर धड़ाम से ऐसे दरवाजा खोलती है जैसे उसे पता नहीं था की विशाल रूम में है।
विशाल भी इस आवाज से एकदम हड़बड़ा कर बाथरूम की तरफ देखता है।
उफफ्फ... क्या सीन था दोनों भाई बहन का?
विशाल के हाथ में इस बढ़त आरोही की ब्रा थी। और आरोही एकदम पूरी तरह नंगी विशाल के सामने खड़ी थी। दो पल के लिए दोनों चकित होकर एक दूजे को देख रहे थे। जैसे ही दोनों को होश आता है, विशाल अपने हाथ में पकड़ी ब्रा वापस बेड पर रख देता है, और आराही भी अपने हाथ में पकड़ी तालिया से खुद को कवर करने की नाकाम कोशिश करती है, और जल्दी से बाथरूम का दरवाजा बंद कर लेती है।
विशाल भी खुद से शर्मिंदा होकर नीचे चला जाता है।
बाथरूम के अंदर मारें खुशी के आरोही का बुरा हाल था, की कैसे अपने भाई को आरोही में अपना नंगा जिश्म दिखाया था।
थोड़ी देर बाद आरोही भी फ्रेश होकर नीचे आती हैं। विशाल साफ पर बैठा अपनी पढ़ाई में लगा हआ था। विशाल की आरोही से नजरें मिलाने की हिम्मत भी नहीं हो रही थी। थोड़ी देर , ही दोनों खामोश रहते हैं।
विशाल- आरोही, आई आम सारी... मुझे मालूम नहीं था की तुम नहा रही हो।
आरोही- "भैया, इसमें आपकी नहीं मेरी गलती है। मुझे रूम का दरवाजा बंद करना चाहिए था... फिर दोनों खामोश हो जाते हैं।
विशाल- आरोही में देखो हमारी एग्जाम लिस्ट आ चुकी है। अब तुम भी अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा लो।
आरोही- भैया तुम मेरी फिकर मत करो। इस बार मेरे मार्क आपसे ज्यादा ही आयेंगे।
विशाल- अपने आप पर बड़ा कान्फिडेंस है तुझे?
आरोही- जी भैया वो तो हैं। चाय पीओगे भैया?
विशाल- बना ले।
आरोही- "भैया तब तक आप कुरकुरे ले आओ..."
आरोही किचेन में चाय बनाने पहुँचती है, और विशाल बाहर शाप से कुरकुरे ले आता है। दोनों चाय पीते हुए कुरकुरे का आनंद ले रहे थे। आरोही अंदर ही अंदर विशाल को देखकर मुश्कुराये जा रही थी।
आरोही की शरारतें य ही अब विशाल को भी अच्छी लगने लगी थी।
आज सनई का दिन था जाश्ता करते हुए राजेश सुमन से बोलता है- "सुमन मुझं आज कंपनी के काम से देल्ही जाना है मेरा बैग तैयार कर दो.."
सुमन- फिर कब तक आओगे आप?
गजेश- रात में देर हो सकती है। शायद रात को वहीं रुकना पड़ेगा?
सुमन- "मैं भी चलं आपके साथ? मुझे किरण के यहां छोड़ देना..."
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