RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
दयाचन्द उसे खट् … खट् … करते सीढ़ियां चढ़ते देख रहा था—दिमाग चीख-चीखकर कह रहा था कि लाश उसे मार डालेगी, उसे भाग जाना चाहिए और वह चाहता भी था कि भाग जाए मगर … शरीर दिमाग का आदेश नहीं मान रहा था—भागना तो दूर, जिस्म के किसी हिस्से को स्वेच्छापूर्वक जुम्बिश तक नहीं दे पा रहा था वह।
मानो किसी अदृश्य ताकत ने जकड़ रखा हो।
खट् … खट् … करती लाश जीना चढ़कर बॉल्कनी में आ गई।
उसके ठीक सामने—बहुत नजदीक पहुंचकर रुकी, जबड़े हिले—“तुझे कितनी बड़ी गलतफहमी थी दयाचन्द कि मेरा मर्डर करने के बाद सारी जिन्दगी सलमा के साथ ‘ऐश’ कर सकेगा—देख, मैं आ गया—अब तुझे दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा सकती।”
जाने क्या जादू हो गया था?
दयाचन्द की हालत ऐसी थी जैसे खड़ा-खड़ा सो गया हो।
लाश ने अपने सड़े-गले हाथ उठाकर उसकी गर्दन दबोच ली—विरोध करने की प्रबल आकांक्षा होने के बावजूद वह कुछ न कर सका—यहां तक कि लाश ने उसकी गर्दन दबानी शुरू कर दी।
सांस रुकने लगी—चेहरा लाल हो गया, आंखें उबल आयीं।
“न-नहीं … नहीं!” पुरजोर शक्ति लगाकर वह चीख पड़ा, मचल उठा—उसके अपने दोनों हाथ उसकी गर्दन दबा रहे थे।
चेहरा पसीने-पसीने हो रहा था।
गर्म रेत पर पड़ी मछली की मानिन्द बिस्तर पर तड़प रहा था वह।
घबराकर उठा, कमरे में नाइट बल्ब का प्रकाश बिखरा हुआ था—असलम की लाश कहीं न थी।
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“सीधे सवाल का सीधा जवाब दे!” इंस्पेक्टर देशराज ने खतरनाक स्वर में पूछा—“तूने असलम की हत्या क्यों की?”
“मेरे उसकी पत्नी से ताल्लुकात थे।”
“ओह!” देशराज के चेहरे पर मौजूद खतरनाक भाव चमत्कारिक ढंग से व्यंग्यात्मक भावों में तब्दील हो गए
—“और यह भेद असलम पर खुल गया होगा?”
“अगर मैं उसे न मारता तो वह मुझे मार डालता।”
“ऐसा क्यों?”
“उस रात असलम जबरदस्ती मुझे अपने घर ले गया था—वहां जाकर पता लगा उसने न केवल कोठी के सभी नौकरों को छुट्टी पर भेजा हुआ है, बल्कि सलमा को भी उसके मायके भेज रखा है।”
“सलमा … यानी उसकी बीवी, तेरी माशूक?”
“हां!”
“इन्वेस्टीगेशन के वक्त मैंने उसे देखा था—इतनी खूबसूरत तो नहीं है वह, तू मरा भी किस पर—उससे लाख गुना लाजवाब चीज तो उसकी नौकरानी है—क्या नाम है उसका—हां, शायद छमिया!”
दयाचन्द चुप रहा।
“खैर, पुरानी कहावत है—दिल आया गधी पर तो परी क्या चीज है—आगे बक!”
“उसने अपनी बीवी के नाम लिखे मेरे सारे लैटर सामने रख दिये—कहने लगा, मैंने दोस्ती की पीठ में छुरा घोंपा है और अब वह मेरे सीने में छुरा घोपेगा—इन शब्दों के साथ उसने जेब से चाकू निकाल लिया—मुझ पर हमला किया …।”
“हाथापाई में चाकू तेरे हाथ लग गया—तूने उसका काम तमाम कर दिया।” इंस्पेक्टर देशराज ने व्यंग्यात्मक स्वर में बात पूरी कर दी।
“हां!”
“और अब तुझे एक हफ्ते से हर रात अजीब-अजीब सपने दिखाई दे रहे हैं... कभी मैं तुझे तेरे हाथों में हथकड़ियां पहनाता नजर आता हूं, तो कभी तू खुद को फांसी के फन्दे पर झूलता पाता है, पिछली रात तो असलम की लाश ही कब्र फाड़कर तेरी गर्दन तक पहुंच गई?”
“हां इंस्पेक्टर साहब, मैं तब से एक क्षण के लिए भी शांति की सांस नहीं ले पाया हूं।”
“इतने ही मरियल दिल का मालिक था तो हत्या क्यों की?”
“अगर मालूम होता, किसी की हत्या कर देना खुद मर जाने से हजार गुना ज्यादा दुःखदायी है तो ये सच है इंस्पेक्टर साहब, मैं खुद मर जाता मगर असलम की हत्या न करता—मैं तो ख्वाब में भी नहीं सोच सकता था कि ऐसे-ऐसे ख्वाब दीखेंगे।”
“तुझे थाने में आकर मुझे यह सब बताने में डर न लगा?”
“लगा तो था मगर …”
“मगर?”
“आपने असलम की फैक्ट्री के एक ऐसे यूनियन लीडर को डकैती के इल्जाम में फंसाकर जेल भिजवा दिया था जिसके कारण फैक्ट्री में आये दिन हड़ताल हो जाती थी।”
“फिर!”
“उन्हीं दिनों मेरी असलम से बात हुई थी—उसका कहना था आपने उसे आश्वस्त कर दिया था कि कोई भी, कैसा भी काम हो—आप अपनी फीस लेकर कर सकते हैं।”
“फीस बताई थी उसने?”
“हां।”
“क्या?”
“कह रहा था आपने पच्चीस हजार लिए।”
“और तू यह सोचकर अपनी करतूत बताने चला आया कि मैं अपनी फीस लेकर तेरी मदद कर दूंगा?”
“सोचा तो यही था इंस्पेक्टर साहब—अब आप मालिक हैं, जैसा चाहें करें—मुझे असलम की हत्या के जुर्म में पकड़कर जेल भेज दें या …।”
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