RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“मैं सच कहता हूं इंस्पेक्टर साब।” गोविन्दा तेजी से खड़ा होता हुआ बिलख पड़ा—“अगर मैं झूठ बोलूं तो अपनी छमिया का मरा मुंह देखूं—मुझे बिल्कुल नहीं मालूम कि ये चाकू मेरे सन्दूक में कहां से आ गया, मेरे कपड़ों पर खून कहां से लग गया?”
“हम सबको बेवकूफ समझता है गधे के बच्चे!” कहने के साथ ही सरकार द्वारा पहनायी गयी भारी बट्ट वाली बैल्ट निकाल ली उसने और फिर जो पीटा है तो अंदाज ऐसा था जैसे इंसान को नहीं जानवर को मार रहा हो।
गोविन्दा की चीखें दूर-दूर तक गूंज रही थीं।
बचाता कौन?
नौकरों की आंखों में उसके लिये घृणा थी।
छमिया हतप्रभ।
सलमा के पैर पकड़कर गिड़गिड़ा उठा वह—“बचा लो मालकिन—मुझे बचा लो, सच कहता हूं—मैंने मालिक को नहीं मारा, भला मालिक की हत्या मैं क्यों करूंगा?”
बेचारा गोविन्दा!
काश, जानता कि वह भिखारी के पैरों में पड़ा भीख मांग रहा है।
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“गड़बड़ तो नहीं हो जायेगी इंस्पेक्टर साहब?” देशराज के सामने बैठे दयाचन्द ने आशंका व्यक्त की—“
अदालत में कोई धुरन्धर वकील हमारी ‘स्टोरी’ के परखच्चे तो नहीं उड़ा देगा?”
“तेरे में सबसे बड़ी खराबी ये है दयाचन्द कि तू बोलता बहुत है—कोई धुरन्धर वकील क्या इसमें ‘हींग’ लगा लेगा—सलमा अदालत में गवाही देते वक्त कुबूल करेगी या नहीं कि उसने मुझे यानि इंस्पेक्टर देशराज को अपने खाविन्द और छमिया के अवैध सम्बन्धों के बारे में बताया था?”
“जरूर कुबूल करेगी, उससे मेरी बात हो चुकी है।”
“तेरी बात क्यों नहीं मानेगी वह, आखिर माशूक है तेरी और फिर आखिर तूने उसी की खातिर तो उसके खाविन्द को लुढ़काया है—खैर, स्टोरी ये है कि सलमा ने मुझे असलम और छमिया के नाजायज ताल्लुकात के बारे में बताया—तब मेरे दिमाग में यह बात आई कि कहीं यह भेद गोविन्दा को तो पता नहीं लग गया था—कहीं इसलिए तो असलम की हत्या नहीं हुई—पुष्टि करने के लिए उसके कमरे की तलाशी ली गई, सारे नौकर गवाही देंगे कि खून से सने कपड़े और चाकू उनके सामने गोविन्दा के सन्दूक से बरामद हुए—देंगे की नहीं?”
“देनी पड़ेगी, आखिर यह सच है।”
“उसके बाद काम करेगी फिंगर प्रिन्ट्स एक्सपर्ट की रिपोर्ट!” देशराज कहता चला गया—“उसे साफ-साफ लिखना पड़ेगा कि चाकू की मूठ पर गोविन्दा की अंगुलियों के निशान हैं।”
“क्या आप उस पर गोविन्दा की अंगुलियों के निशान ले चुके हैं?”
“अपना काम ‘फिनिश’ करने के बाद ही मैं यहां आराम से बैठा हूं।”
“ल-लेकिन चाकू की मूठ पर उसने अपनी अंगुलियों के निशान कैसे दिए?”
देशराज ने जोरदार ठहाका लगाया और दयाचन्द के सवाल का भरपूर आनन्द लूटने के बाद बोला—“लगता है तू कभी थर्ड डिग्री टॉर्चर से नहीं गुजरा?”
“म-मैंने तो कभी हवालात भी नहीं देखी इंस्पेक्टर साहब।”
“तभी ये बचकाना सवाल पूछ रहा है।”
“मैं समझा नहीं।”
“थर्ड डिग्री टॉर्चर एक ऐसे पकवान का नाम है दयाचन्द, जिसका स्वाद केवल वही जानता है जिसने उसे चखा हो, इसलिए तू ठीक से नहीं समझ सकता—बस इतना जान ले कि उसके दरम्यान अगर हम तुझसे अपना पेशाब पीने और मैला खाने के लिए भी कहेंगे तो वह तुझे करना पड़ेगा—ये तो एक चाकू पर गोविन्दा की अंगुलियों के निशान लेने जैसा मामूली मामला था।”
“कहीं लैबोरेट्री में जांच के दरम्यान जांचकर्ता यह तो नहीं जान जायेंगे कि गोविन्दा के धोती-कुर्ते पर जो खून लगा है, वह असलम का नहीं है?” दयाचन्द ने दूसरी शंका व्यक्त की।
“कैसे जाने जायेंगे—वे केवल खून का ग्रुप बताते हैं और उसके धोती-कुर्ते पर जो खून लगा है वह उसी ग्रुप का है जो असलम के खून का ग्रुप था—लगा है कि नहीं?”
“बिल्कुल लगा है, खून तो मैं खुद ही खरीदकर लाया था।”
“उसमें तूने कौन-सा तीर मार दिया, बाजार में हर ग्रुप का खून मिलता है।”
“फिर भी, आखिर कुछ काम तो किया ही है मैंने?” दयाचन्द कहता चला गया—“गोविन्दा के कमरे से उसके कपड़े चुराना और फिर खून लगाकर चाकू सहित वापस सन्दूक में रखकर आना कम रिस्की काम नहीं था।”
“फांसी से बचने के लिए लोग आकाश-पाताल एक कर देते हैं और तू इतना मामूली काम करने के बाद सीना फुलाये घूम रहा है?”
“लेकिन गोविन्दा और छमिया तो हमारी स्टोरी की पुष्टि नहीं करेंगे?”
“अदालत ही नहीं, सारी दुनिया जानती है कोई मुल्जिम खुद को मुजरिम साबित करने वाली स्टोरी की पुष्टि नहीं करता। यह सवाल होता है पुख्ता गवाहों और सबूतों का—वह सब हमने जुटा लिये हैं—घर जा दयाचन्द, आराम से पैर पसार कर सो—अब असलम की लाश कब्र फाड़कर कभी तेरी गर्दन दबाने नहीं आएगी।”
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