RE: hot Sex Kahani वर्दी वाला गुण्डा
“प्रतापगढ़ में आपके नाम का डंका बज रहा है इंस्पेक्टर साहब, चारों तरफ जय-जयकार हो रही है आपकी।” खुशी से पागल हुआ जा रहा मनचंदा कहता चला गया—“सुना है जुर्म के ठेकेदार प्रतापगढ़ छोड़कर भाग गए हैं—राम-राज्य स्थापित कर दिया है आपने—ये मुजरिम साले स्टार फोर्स के कारण हुकूमत कर रहे थे, जब आपने काली बस्ती में जाकर थारूपल्ला का ही …।”
“वो सब छोड़ मनचंदा।” चुटकी बजाकर सिगरेट की राख अपने ऑफिस के फर्श पर डालते तेजस्वी ने पूछा—“अपनी सुना, तू कैसा है?”
“ख-खुश हूं साहब, बहुत खुश।”
“दुकानें कैसी चल रही हैं?”
“मजा आ रहा है हुजूर—दोनों ठेकों पर लाइनें बनी रहती हैं, खाने-पीने की लत किसे नहीं है, और अब प्रतापगढ़ में शराब कहीं और मिलती नहीं, जाएंगे कहां?”
“खूब इन्कम हो रही होगी …।”
“आपकी कृपा से सारे दिलद्दर दूर हो गए मेरे।”
“मगर तेरी कृपा अब तक हम पर नहीं हुई।”
“ज-जी!”
तेजस्वी ने एक लम्बा कश लेने के बाद कहा—“जब मैंने तुझे पहली बार बुलवाया तब तूने पूछा था कि क्यों बुलवाया है मगर अब … जब दूसरी बार थाने पर तलब किया है तो पूछ ही नहीं रहा—पूछ मनचंदा, ये तो पूछ कि मैंने तुझे बुलाया क्यों है?”
“हुक्म करो साहब!”
“कच्ची शराब का धंधा चौपट करके मैंने अच्छा काम किया है न?”
“इसमें क्या शक है साहब!”
“अच्छा काम करने वाला इनाम का हकदार होता है और जिसे उस अच्छे काम से फायदा मिला हो, उसकी ड्यूटी बन जाती है कि उसे इनाम दे जिसके कारण उसे फायदा हुआ।”
मनचंदा को लकवा मार गया।
उसने स्वप्न तक में न सोचा था कि तेजस्वी रिश्वत मांगेगा, मगर वह मांग रहा था।
खुलेआम मांग रहा था।
“क्या हुआ मनचंदा, तू बोल क्यों नहीं रहा?”
“आं … कुछ नहीं, कुछ नहीं साहब।” उसकी तंद्रा भंग हुई—“ठ-ठीक है, इनाम आपके क्वार्टर पर पहुंच जाएगा।”
“क्वार्टर पर क्यों, यहां क्या बुराई है?”
“य-यहां पहुंच जाएगा साहब, म-मैं तो इसलिए कह रहा था कि शायद आप ऐसा न चाहें—दूसरे पुलिस वाले भी रहते हैं यहां …।”
“तो क्या हुआ, क्या उन्होंने कच्ची शराब का धंधा बन्द कराने में मेरे साथ मेहनत नहीं की?”
“क-की थी साहब, जरूर की थी।”
“तो वे बेचारे इनाम से वंचित क्यों रहें?”
“ब-बिल्कुल नहीं रहेंगे साहब, सभी हकदार हैं—सबको इनाम मिलेगा।”
“एक बार नहीं, हर महीने मिलता रहना चाहिए—जिस महीने न मिला उस महीने फिर कच्ची शराब का धंधा शुरू हो जाएगा।”
“नहीं हुजूर, ऐसा नहीं होना चाहिए।”
“नहीं होगा।”
“मगर लगे हाथों बता दें कि क्या पहुंचता रहे जो मेरी समस्या हल हो जाए।” मनचंदा हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा उठा—“बड़ी दुविधा में हूं, अगर मेरे भेजे हुए से आप नाराज हो गए तो मेरे बच्चे वीरान हो जाएंगे।”
“अगर तू इस थाने पर मेरी नियुक्ति से पहले एक पैसा कमाता था और अब पांच कमाता है तो बढ़े हुए प्रॉफिट का पचास परसेंट यानि दो पैसे भिजवा दे।”
चिहुंक उठा मनचंदा—“ये तो ज्यादा हो जाएगा हुजूर …।”
“अब तू यहां से जाता है या नहीं?” गुर्राते हुए तेजस्वी ने मेज पर रखा रूल उठा लिया।
“ज-जाता हूं साहब।” मनचंदा खड़ा हो गया—“जाता हूं, इनाम पहुंच जाएगा …।”
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“ये-ये क्या है साब?” पांडुराम की जुबान लड़खड़ा गई।
तेजस्वी ने जबरन मुस्कान के साथ कहा—“दस हजार रुपया।”
“म-मगर साब …।”
“मनचंदा दे गया है।” पांडुराम की हालत का भरपूर आनंद लूटता तेजस्वी कहता चला गया—“हमने प्रतापगढ़ से कच्ची शराब का धंधा उखाड़ दिया न, फायदा मनचंदा को मिला—खुश होकर वह बीस हजार दे गया—दस मैंने रख लिए हैं, दस ये हैं—सबमें बराबर बांट दे।”
“ल-लेकिन सर, ये तो रिश्वत …।”
“इतना हकला क्यों रहा है, पहली बार रिश्वत के नोट देखे हैं क्या?”
“न-नहीं साब, परंतु …।”
तेजस्वी ठहाका लगाकर हंसा, बोला—“हैरान हो रहा है—यह सोचकर आश्चर्य के कारण दिमाग फटा जा रहा है तेरा कि मैं यानि तेजस्वी भला रिश्वत कैसे ले सकता है?—सब समझ में आ जाएगा पांडुराम, धीरे-धीरे तेरी समझ में भी आ जाएगा कि तेजस्वी के थाना क्षेत्र में इतने कम क्राइम क्यों होते हैं बल्कि तेरी समझ में तो अब तक ये बात आ भी जानी चाहिए थी मगर तूने दिमाग नहीं लगाया, ध्यान से सोचा नहीं—खैर, मुमकिन है सोचने की कोशिश न की हो।”
किंकर्त्तव्यविमूढ़ अवस्था में खड़े पांडुराम के मुंह से निकला—“म-मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा साब, पता नहीं आप क्या-क्या कहे चले जा रहे हैं …।”
“हत्या का षड्यंत्री होने के बावजूद मैंने इकबाल को गिरफ्तार नहीं किया—किसी अफसर से उसके संबंध में एक लाइन न कही और थाने से चुपचाप निकालकर फिल्म नगरी के लिए रवाना कर दिया—शुब्बाराव के जरिए ब्लैक फोर्स से तेरे संबंध पकड़ लिए, मगर न मैंने खुद इस थाने से तेरे ट्रांसफर की कोशिश की न किसी अफसर से इस संबंध में जिक्र किया—तुझे सोचना चाहिए था पांडुराम, एक ईमानदार इंस्पेक्टर कहीं ऐसा करता है?”
“म-मैंने सोचा था सर!”
“सोचा होता तो इस वक्त हैरान न होता।” तेजस्वी के होंठों पर धूर्त मुस्कान थी—“अगर रंगनाथन के अड्डे तबाह करने थे तो कर देता—मनचंदा को बुलाकर उस पर यह जताने की क्या जरूरत थी कि मैं उसे कितना आर्थिक फायदा पहुंचाने वाला हूं—साफ जाहिर था, मैं भविष्य में उससे कुछ चाहता हूं—एक कर्त्तव्यनिष्ठ इंस्पेक्टर को भला इससे क्या लेना-देना कि उसके कौन से कदम से किसको क्या लाभ मिलने वाला है!”
“य-ये सब बातें मेरे दिमाग में अटकी थीं साब, मगर आपके चारों तरफ ऐसा आभामंडल है कि जो कुछ इस वक्त आप अपने मुंह से कह रहे हैं, वैसा सोचा तक नहीं जा सकता था।”
“मेरी यही खूबी है पांडुराम—खास तौर पर यह आभामंडल मैं अफसरों के लिए बनाता हूं—इतना खुदगर्ज नहीं हूं कि जो मिले उसे अकेला गड़प कर जाऊं … मिल-बांटकर खाता हूं मैं।”
“म-मुझे अब भी यकीन नहीं आ रहा साब कि …।”
“कि मैं इतना बड़ा रिश्वतखोर हूं?” बात पूरी करने के साथ तेजस्वी ने जोरदार ठहाका लगाया।
“मैं अपने मुंह से आपके लिए ऐसे शब्द नहीं निकाल सकता।”
“निकालना भी नहीं।” तेजस्वी ने चेतावनी दी—“जिन पुलिसियों में रकम बांटो, उन्हें समझा देना—मेरे आभामंडल को तोड़ने की कोशिश न करें—क्योंकि उसे कोई तोड़ नहीं सकता, ऐसी कोशिश करने वाला बहुत जल्द सजा पाता है—पिछले थाने पर ईमानदारी के नशे में चूर एक सिपाही ने ऐसी बेवकूफी कर दी थी—सीधा कमिश्नर साहब के पास पहुंच गया वह, बोला—‘इंस्पेक्टर तेजस्वी वैसा नहीं है सर, जैसा आप और अन्य लोग समझते हैं, वह एक भ्रष्ट और रिश्वतखोर पुलिसिया है’—मेरे थाने पर तैनात होने के कारण वह मेरे काफी कारनामों से वाकिफ था—साले ने कमिश्नर के सामने सब बक दिए, कमिश्नर ने सुना जरूर मगर विश्वास न किया—मुझे बता दिया उन्होंने कि कौन-सा सिपाही मेरे बारे में क्या कह रहा था!—मैंने कमिश्नर को समझा दिया, बल्कि सिद्ध कर दिया कि वह सिपाही उस थाना क्षेत्र के उस माफिया गिरोह से पगार पाता है जिसके लिए मैं सिरदर्द बना हुआ हूं, इसी जुर्म में पट्ठा आज तक जेल में पड़ा सड़ रहा है।”
“नहीं साब, इस थाने पर ऐसा ईमानदार कोई नहीं है।”
“जानता हूं, तभी तो यह रकम सबमें बांटने को कहा है—खाओ-पियो मौज लो, ये रकम मनचंदा उस दिन तक हर महीने पहुंचाएगा जब तक मैं यहां हूं और एक क्या, सैकड़ों मनचंदा पैदा करने हैं मुझे—अभी तो प्रतापगढ़ में आया हूं—इतनी मौज कराऊंगा कि पुलिस की नौकरी में पहले कभी न की होगी।”
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