RE: Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से
रूबी यह सब इग्नोर कर देती थी। रूबी खुद आगे नहीं बढ़ना चाहती थी। आखीरकार, वो उसकी मालेकिन थी। वो चाहती तो सीधाधा राम से अपनी दिल की बात बोल सकती थी, पर वो औरत थी। राम उस जैसी हसीन औरत को कैसे मना कर सकता था। अगर वो ऐसा करती तो रामू उसको चीप औरत समझता। वैसे भी पहल तो मर्द को ही करनी होती है। अब यह तो राम पे था की वो कब हिम्मत करता है। वो रामू से उम्मीद कर रही थी की वो आगे बढ़े।
एक दिन सफाई के टाइम पे रूबी ने फिर से ट्रैक सूट ही पहना था। रामू को उसकी पैंटी की आउतलाइन उसके चूतरों पे साफ-साफ दिखाई दे रही थी। पैंटी की आउतलाइन से साफ-साफ पता चल रहा था की पैंटी ने चालीस पर्सेट ही गाण्ड को ढक रखा था। पैंटी रूबी की गाण्ड को पूरा नहीं ढक पा रही थी। जब रूबी चलती थी तो उसके चूतर आपस में रगड़ खाते थे। रूबी की मटकती गाण्ड राम के दिल पे तीर चला रही थी।
रामू का मन सफाई में नहीं लग रहा था। बस रूबी की मटकती गाण्ड की तरफ ही ध्यान जा रहा था। राम के मुँह में पानी आ रहा था। रूबी जानती थी की रामू का ध्यान उसकी मटकती गाण्ड पे ही है, और काम में कम है। तभी बाहर से आवाज आती है।
कमलजीत- बह, मैं थोड़ा सा काम के लिए पड़ोस में जा रही हैं। जल्दी वापिस आ जाऊँगी।
रूबी- ठीक है मम्मीजी। वापिस कब आओगे?
कमलजीत- आधे एक घंटे तक वापिस आ जाऊँगी।
रूबी- ठीक है मम्मीजी।
आज पहली बार रूबी और रामू कुछ पल के लिए घर में अकेले होने वाले थे। रामू के पास इससे अच्छा मौका नहीं आने वाला था, जब वो रूबी से अपनी दिल की बात कर पाए।
कमलजीत के जाने के बाद रूबी ने रामू को स्टोर की सफाई करने को बोला, और खुद भी हाथ बटाने लगी। रामू उसे अपनी दिल की बात बताना चाहता था, पर थोड़ा डर भी रहा था। उसका ध्यान बार-बार घड़ी की तरफ जा रहा था। वो जानता था की टाइम निकलता जा रहा है, और कमलजीत कभी भी वापिस आ सकती है। अगर उसने अभी नहीं किया कुछ तो कभी दुबारा शायद मौका ना मिले।
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