RE: Kamukta Story प्यास बुझाई नौकर से
रामू धीरे-धीरे अपनी सांसें कंट्रोल में करता है। उसके वीर्य से रूबी की गर्दन और बेडशीट दोनों भीग गये थे। रामू के पूरी तरह शांत होने के बाद रूबी उठती है और अपने को बाथरूम में बंद कर लेती है और गरम पानी से नहाने लगती है।
इधर रामू अपने कपड़े पहनता है और सफाई वगैरा करने लगता है। उनपे कोई शक ना करे इसलिए वो काकरोच स्प्रे भी कर देता है। कुछ देर बाद रूबी बाथरूम से बाहर आती है और फोन चेक करती है और देखती है की लखविंदर का फोन आया था।
रूबी काल बैक करती है और लखविंदर से बातें करने लगती है।
इधर हरदयाल भी वापिस आ जाता है ट्रैक्टर लेकर। राम को मजबूरन काम खतम करने के बाद अपने रूम में जाना पड़ता है। उसे लगता है की आज जिस हिसाब से रूबी गरम हो गई थी और जैसे उसके लण्ड को प्यार दे रही थी, अगर कमलजीत ना होती तो चुदवा ही लेती।
रामू की किश्मत फूटी थी जो लखविंदर का फोन आ गया बीच में, और रूबी वापिस अपने होशो-हवास में वापिस आ गई और उधर से हरदयाल भी तो वापिस आ ही गया था। पर राम इस बात से खुश था की रूबी ने आज उसके लण्ड के दीदार कर लिए थे। इतना तो पक्का था की रूबी अपने दिल से उसके लण्ड को नहीं निकाल पाएगी। उसकी चूत उसका तगड़ा मोटा लण्ड लेने के लिए तड़पेगी जरूर। बस एक मौका मिल जाए जब रूबी अकेली हो घर पे। उसे चाहे जोर जबरदस्ती करनी पड़े वो उसे भोग के ही रहेगा। वैसे भी अब तो रूबी भी खुल चुकी थी उसके साथ, और उसे भोगने में ज्यादा परेशानी नहीं होने वाली थी। बस जैसे तैसे करके उन दोनों को अकेलापन मिल जाए घर में।
इधर रूबी भी पूरा दिन रामू के बारे में सोचती रही। बार-बार उसकी आँखों के सामने रामू का मोटा लंबा लण्ड आ जाता था। जब भी वो राम के लण्ड के बारे में सोचती तो उसके शरीर में कंपकंपी सी छट जाती थी। राम के लण्ड ने उसपे जादू कर दिया था। क्या वो इतना मोटा और लंबा लण्ड झेल भी पाएगी? जब उसने पहली बार लखविंदर का लिया था तो उसे बहुत दर्द हुई थी। पर रामू का तो लखविंदर से तकरीबन दोगुना बड़ा और मोटाई में उसकी कलाई के बराबर था।
रूबी की चूत तो लण्ड लेने के लिए तड़प रही थी पर लण्ड का साइज सोचकर रूबी का दिल बैठा जा रहा था। ऊपर से रूबी यह सोचकर चकित थी की राम का लण्ड वो कितनी देर मसलती रही, पर फिर भी उसे शांत नहीं कर पाई। रामू को खुद कंट्रोल लेना पड़ा अपने हाथ में तब जाकर शांत हुआ। लखविंदर के लण्ड को जब भी । उसने मसला था तो एक मिनट के बाद ही लखविंदर उसके हाथ से लण्ड को छुड़ा लेता था की कही वो झड़ ना जाए। पर राम तो जैसे पक्का खिलाड़ी हो। रूबी चाह कर भी राम के लण्ड से अपना ध्यान हटा नहीं पा रही थी। इसी कशमकश में आज रूबी ने खुद ही रात को खाना खाने के बाद रामू को फोन लगा दिया।
उसे पता था की रूबी आज के बाद खुद को रोक नहीं पाएगी। उसके लण्ड की तो औरतें दीवानी थीं तो रूबी भी कहां रोक सकती थी अपने आपको।
रामू फोन उठकर कहता है- "हाय मेरी जान। आज खुद ही फोन कर लिया."
रूबी- बड़े मूड में हो।
रामू- अरे तुम्हारी आवाज सुनकर मूड खुद ही बन जाता है। और सुनाओ कैसे याद किया?
रूबी- बस वैसे ही। क्यों कर नहीं सकती?
राम- अरे क्यों नहीं मेरी परी। मैं भी तो तुम्हें ही याद कर रहा था की कब फोन आए और बात करें।
रूबी- तुम्हें क्यों लगा मैं फोन करूंगी?
रामू- बस आज दिल ने कहा के आप फोन करोगे।
रूबी- हाँ।
रामू- और सुनाओ दिन कैसा गुजरा?
रूबी- बस ठीक था... और तुम्हारा?
रामू- मेरा तो बहुत बुरा।
रूबी- क्यों?
राम- बस आपके बारे में हो सोचता रहा सारा दिन।
रूबी- अच्छा जी। क्या सोचते रहे?
राम- बस आपकी आँखें, आपका चेहरा, आपके होंठ और आपकी चूत।
रूबी- धत्... बेशर्म।
रामू- अरे मेरी जान अभी भी शर्मा रही हो। चूत में उंगली डलवाकर पानी भी निकाल दिया, अब काहे की शर्म?
वो तो तुम जबरदस्ती करते हो। वर्ना ऐसी थोड़ी कोई हमें वहां पे छू सकता है।
राम- हाँ यह बात तो माननी पड़ेगी की मेरी जान की इजाजत के बिना कोई उसको छु भी नहीं सकता।
रूबी- हाँ।
रामू- कैसा लगा आज? मजा आया ना?
रूबी- हाँ।
रामू- आपने भी मुझे बहुत मजा दिया। आपके हाथों में तो जादू है।
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