RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
जतिन ने उसके होठों पर अपने होंठ रख दिये। संजना की खिलखिलाहट उसके होठों के बीच दबकर शहीद हो गई। कितनी ही देर वह संजना के होठों का रस चूसता रहा।
संजना कसमसाई तो उसने उसे आजाद कर दिया। संजना हांफती हुई उससे अलग हो गई। महज इतने से ही उसकी सांसें भारी हो गई थीं। रेशमी गाउन में उभरे वक्ष तेजी से उठने-गिरने लगे थे। जबकि जतिन के चेहरे पर ऐसे भाव आ गए कि जैसे कि मलाई का कटोरा उसके मुंह से लगाकर छीन लिया गया हो।
संजना चिकनी मछली की तरह उसकी गोद से फिसल गई और उठकर अपने पैरों पर खड़ी हो गई।
जतिन ने शिकायती नजरों से उसे देखा।
"इतने बेसब्रे पहले तो तुम नहीं थे।” जतिन को तिरछी नजरों से घूरती हुई गहरी-गहरी सांसों के बीच बोली।
“पहले कभी तुम्हें इस तरह रेशमी गाउन में जो नहीं देखा था।” जतिन बोला।
“ओहो।"
"इस हालत में किसी के सामने जाओगी और उसे तुम्हारे इतना करीब जाने की इजाजत होगी तो भला वह कैसे खुद पर काबू रख पाएगा?"
“ओहो, तो आज से पहले जनाब ने मुझे कभी गाउन में नहीं देखा था?" संजना शोखी से बोली।
“कसम उठवा लो। देखा होता तो आज तक यह गोरा बदन कुंवारा न पड़ा होता।"
"त...तो फिर?”
“इसका कुंवारापन तो मैं कब का लूट चुका होता।"
"तब तो बड़ी गड़बड़ हो गई।”
"कैसी गड़बड़?"
“आज तो बुरे ने घर देख लिया।” संजना ड्रामेटिक अंदाज में बोली “अब तो मेरा कुंआरापन खतरे में पड़ गया लगता है।"
“इसमें क्या तुम्हें अब भी कोई शक है।"
“तौबा। अब मैं क्या करूं?"
“तुम्हें कुछ करने की भला क्या जरूरत है, जो कुछ भी करूंगा मैं ही करूंगा।"
“अब बस भी करो जतिन।”
"अरे, अभी मैंने किया ही क्या है जो बस करूं।"
“ओह नो।”
“क्या ओह नो। आज मैं पक्का इरादा बनाकर आया हूं और किसी के भी रोके नहीं रुकने वाला।”
"हे भगवान ।” संजना घबराकर बोली या फिर शायद उसने घबराने का अभिनय किया था “क्या पक्का इरादा बनाकर आये हो तुम?”
“घबराओ मत।” जतिन ने उसे आश्वस्त किया “तुम्हारा कुंआरापन लूटने का नहीं, आज मैं यह प्यार का दिन सेलिब्रेट करने का पक्का इरादा बनाकर आया हूं और पूरा दिन सेलिब्रेट करने वाला हूं। आज का मैं एक भी लम्हा तुम्हारे बिना नहीं गुजारना चाहता हूं।"
“ओह तो यह बात है।"
"हां, यही बात है। अब तुम फौरन यहां से अंतर्धान हो जाओ, और जल्दी से बिजली गिराने का इरादा लेकर, म..मेरा मतलब है कि तैयार होकर वापस प्रकट हो जाओ।"
“स...समझ गई।” संजना ने फिर सच्चे मोतियों से दांत चमकाए थे “मगर तब तुम क्या करोगे?"
“वही जिसका फल कहते है कि शहद से भी ज्यादा मीठा होता है।”
“मतलब?"
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“इंतजार-तुम्हारे वापस प्रकट होने का इंतजार, और क्या?"
“ओह समझी।"
"फिर भी अभी तक खम्भे की तरह मेरे सामने खड़ी हो। अंतर्धान नहीं हुई अभी तक तुम?"
“मैं सोच रही थी तब तक तुम्हारे लिए कोइ चाय-बाय बना दूं।”
“फौरन दफा हो जाओ।" जतिन कड़ककर बोला।
संजना ने निःश्वास छोड़ी और फिर अपने जिस्म को रिलेक्स की मुद्रा में ढीला छोड़ दिया। फिर वह इठलाती-बल खाती मादक मुस्कान बिखेरती वहां से चली गई।
जतिन सोफे पर इत्मिनान से पसरकर बैठ गया और उसकी पुश्त से सिर लगाकर उसने अपनी आंखें मूंद लीं।
कुछ पल यूं ही गुजरे।
फिर जैसे ही बाथरूम का दरवाजा बंद होने और अंदर से उसकी चिटकनी चढ़ाने की आवाज आई, उसने ‘पट' से अपनी दोनों आंखें खोल दी और उछलकर सोफे से खड़ा हो गया। उसके चेहरे के भाव एकदम से चेंज हो गए थे। उसकी सारी आशिक मिजाजी और उतावलापन एकदम से गायब हो गया था। अब उसके चेहरे के जर्रे-जर्रे पर संजना के लिए नफरत और हिकारत के भाव उभर आए थे।
हालांकि उसे बखूबी मालूम था कि संजना उस फ्लैट में अकेली रहती थी, उसके अलावा वहां और कोई नहीं रहता था। फिर भी उसने ऐहतियातन खोजपूर्ण निगाहों से वहां के हर कोने खुदरे का मुआयना किया। वस्तुस्थिति को पूरी तरह अनुकूल पाकर उसने संतुष्टिपूर्ण ढंग से सहमति में सिर हिलाया, फिर एकाएक वह हरकत में आ गया। उसने बेहद फुर्ती से अपना काम शुरू कर दिया।
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