RE: Thriller Sex Kahani - कांटा
“ए...एक और का क्या मतलब? क्या तू पहले कोई खून कर चुका है?"
“पहले कब?"
“म...मेरा मतलब जेल से छूटने के बाद से था?"
उसके होठों पर जहर बुझी मुस्कराहट उभरी।
दास विचलित हो उठा। उसका हौसला जवाब देने लगा था।
"त...तू यहां क्यों आया है गोपाल ?" उसने किसी तरह हौसला जुटाकर पूछा।
“काफी ठाट हैं तेरे तंदूरी मुर्गे?" गोपाल ने फिर उसका सवाल घोंट दिया था “करता क्या है? पुराने धंधों को छोड़े तो तुझे शायद जमाना हो गया?"
“म...मेरा धंधा आज बहुत स्ट्रेट है?"
“जरा बता तो सही कि आज तेरा वह स्ट्रेट धंधा क्या है और हां, विश्वास कर, मैं तेरे उस स्ट्रेट धंधे को नजर नहीं लगाऊंगा?"
“य...यह मेरा अपना घर है और दिल्ली के ऐसे इलाके में जिसके पास खुद की इतनी बड़ी बिल्डिंग हो, उसे कुछ करने की जरूरत नहीं होती। एक-एक कमरे का पांच-पांच हजार रुपया महीना किराया आता है। महीने का टोटल सत्तर हजार से ऊपर बैठता है।”
"बल्ले भई। क्या किस्मत पाई है तूने भी। बैठकर खा रहा है।”
“ऐसा ही समझ लो।”
“अ...और मैं वहां जेल में सड़ रहा था। पिछले पन्द्रह सालों से ऐड़ियां रगड़ रहा था।” उसने दांत किटकिटाए “सच-सच बताना देशी सुअर, बीते पन्द्रह सालों में क्या एक बार भी तुझे मेरी याद नहीं आई?"
"क...कौन कहता है कि मुझे तेरी याद नहीं आई?"
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“यानि कि आई। फिर भी एक बार भी जेल में आकर मुझसे मिलना गंवारा नहीं किया। मेरे बार-बार खबर भेजने के बाद भी तू मुझसे मिलने नहीं आया। सोचा होगा कि मैं अब कहां जेल से बाहर आने वाला था। पन्द्रह साल जैसे कभी खत्म ही नहीं होने वाले थे और मैं वहीं आंखें मूंद लेने वाला था।"
“म...मैं..."
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“लक्की, तू मेरे गैंग का आदमी था मेरा सबसे ज्यादा खास था। हम दोनों ने साथ मिलकर बहुत गुल खिलाए थे। याद है तुझे या फिर भूल गया?"
“ह..हां। मैं इससे कहां इंकार कर रहा हूं लेकिन तुम्हारे जेल जाने के बाद सारा गैंग बिखर गया था। हम सब पुलिस के खौफ से अंडरग्राउंड हो गए थे, फिर सबने अपना-अपना रास्ता ढूंढ लिया था। ऐसे में मैं क्या करता?"
“बहुत कुछ कर सकता था। ऐसे में अगर उस वक्त तुम सारे के सारे हरामखोर खौफजदा न हुए होते और तुम सारे कमीने, कुत्ते, हरामियों ने थोड़ा सा हिम्मत से काम लिया होता तो मैं इतनी लम्बी सजा से बच सकता था और दो-चार साल की जेल काटकर बाहर आ जाता।"
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“य...यह नामुमकिन था गोपाल ।” दास के लहजे में दृढ़ता उभरी “तुम्हारा केस बहुत मजबूत था।"
“केस को मजबूत और कमजोर पुलिस बनाती है। वह अगर चाहे तो मजबूत से मजबूत केस भी पलक झपकते अदालत में ढेर हो सकता है और कमजोर केस मील का पत्थर बन सकता है। मैं क्या कह रहा हूं कुछ समझ में आया विलायती गधे।"
“फि...फिर भी मदद तो तुम्हें आखिरकार हासिल हो गई थी।" “ठहर जा... हरामी...।” गोपाल एकाएक लाल कपड़ा दिखाए सांड की तरह भड़का “जो मदद हासिल हुई थी, वह क्या मुझे तेरे किए हासिल हुई थी?"
“व...वह...।” उसका दिल जोर से लरजा। वह अपनी बात पूरी न कर सका और होंठों पर जुबान फिराने लगा।
“वह मदद मुझे मेरे गैंग से हासिल नहीं हुई थी।” गोपाल अपने एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला “वह कहीं और से ही हासिल हुई थी। हासिल क्या हुई थी, मैंने जबरदस्ती गला दबाकर वह मदद हासिल की थी ब्लैकमेल करके हासिल की थी। क्योंकि इसके अलावा उस वक्त मेरे पास और कोई रास्ता नहीं बचा था।"
“कि...किसको ब्लैकमेल किया था तु..तुमने?”
" जानकी लाल को।" उसने एक क्षण उसे घूरा फिर बोला “याद आया कुछ?"
“ह..हां।” उसने फंसे कंठ से स्वीकार किया “याद आया।"
“असल में जानकी लाल मेरा क्लाइंट था।" वह जरा ठहरकर बोला “एक काम किया था मैंने उसके लिए। यह अलग बात है कि उस काम की मैं उससे भरपूर कीमत ले चुका था। और अपने क्लाइंट से दगा करना मेरा उसूल नहीं, फिर भी मैंने उस वक्त जो कुछ भी किया, मरता क्या न करता वाली हालत में किया था।"
“तुम्हें अ..अफसोस हो रहा है?"
“ काहे का अफसोस। अफसोस तो तब होता जबकि मैंने उसे ब्लैकमेल न किया होता। मेरा वह क्लाइंट तो मुझे खूब फला। मैंने तो जेल में भी उसका पीछा नहीं छोड़ा। जेल के अंदर रहकर भी उसे ब्लैकमेल करता रहा हूं।"
“ज..जेल में रहकर भी तुम उसे ब्लैकमेल कर रहे हो?" वह आश्चर्य से बोला
“और क्या? वहीं तो मुझे ज्यादा रुपयों की जरूरत थी। छप्परफाड़ रोकड़े की जरूरत थी?"
“ज..जेल में?"
“और क्या रस्साले जंगली भैंसे, वरना जेल की चक्की पीसना किसे मंजूर होने वाला था। वहां का जानवरों वाला खाना किसके हलक में उतरने वाला था। वहां का...।"
“म...मैं समझ गया। लेकिन तुम्हारे पास भी तो बहुत पैसा था लाखों रुपया था, उसका क्या हुआ?"
तब पहली बार उसके चेहरे पर बेचैनी के भाव आए थे।
“व..वह सारा रुपया कहां गया?" दास ने अपना सवाल दोहराया। “बेईमानी हो गया।"
“क...क्या?” किसने बेईमानी किया?"
“और कौन करेगा?" उसके जबड़े कस गए। वह अपने होंठ चबाता हुआ बोला “उसी हरामजादे ने किया, जो अपने गैंग का खजाना संभालता था उसका हिसाब-किताब रखता था?"
“वही कुत्ता।” उसने नफरत से दिया “हरामी के बीज ने पासा पलटा देख ऐसा फटका मारा कि आज तक हाथ ही नहीं
आया। आना-पाई भी नहीं छोड़ा कमीने ने। सब झाडू फेर गया। कोई खबर है तुझे उसकी?”
“स..साबिर की? नहीं।”
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“सच कह रहा है न? झूठ तो नहीं बोल रहा मुझसे?"
“न...नहीं। एक बार उस दुनिया से किनारा करने के बाद मैंने फिर पलटकर उस तरफ नहीं देखा। तुम्हें भी तो मैं लगभग
भूल ही गया था।"
“मेरे साथ मारी गई भांजी में उसके साथ तूने अपना हिस्सा तो नहीं बंटा लिया?"
"खामखाह।" उसने विरोध जताया।
“यह इतनी ऊंची बिल्डिंग तेरा बाबा वसीयत करके मरा था क्या तेरे नाम? यह करोड़ से ऊपर की जगह क्या हराम में हासिल हो गई थी?"
“करोड़ की तो यह आज है। पन्द्रह बरस पहले तो कौड़ियों के मोल भी कोई नहीं पूछता था।"
"अच्छा ।"
“और पन्द्रह बरस पहले मैंने इसे बस दो फ्लोर ही बनवाया था जो कि केवल दो लाख में बन गया था। और इतना रुपया तो मेरे पास वैसे ही था। आगे की बिल्डिंग इससे हासिल होने वाली किराये की रकम से ही बनी है।"
“यानि कि तूने भांजी में हिस्सा नहीं बंटाया? फिर भी जुर्म तो तूने किया है गुनाहगार तो तू मेरा बराबर है।” वह एकाएक ठिठका। उसने अपनी जेब से एक रिवॉल्वर सामने सेंटर टेबल पर रखा कि दास को उसका बखूबी दीदार हो पाता, फिर वह अर्थपूर्ण स्वर में बोला “इसे पहचानता है या इसे भूल गया।"
दास का चेहरा पीला पड़ गया।
“इ...इसे अंदर रख लो.।” वह घिघियाया सा बोला “प्लीज।"
“अरे, तू भी हद कर रहा है।” वह खासे नाटकीय स्वर में बोला “इसे अंदर ही रखना होता तो फिर मैंने बाहर ही क्यों निकाला होता। और अगर मैंने इसे तेरी फरियाद पर अंदर रख लिया तो फिर गुनाहगार को सजा कैसे दूंगा।”
"त...तुम्हारा गुनाहगार तो साबिर है, जिसने तुम्हें धोखा दिया तुमसे दगाबाजी की। तुम्हारा सारा रुपया हड़प कर गया। म..मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया। मैं तुम्हारा गुनाहगार नहीं हूं।"
“साबिर ने जो किया उसकी सजा बहुत भयानक होगी इतनी ज्यादा भयानक कि शायद तुझे यकीन नहीं आएगा। तेरी सजा इतनी भयानक नहीं होगी क्यों कि तेरा गुनाह छोटा है।"
“न...नहीं... गोपाल तुम ऐसा नहीं करोगे।"
“करूंगा नहीं क्या? बस समझ ले कि हो ही गया।” उसने रिवॉल्वर उठाकर उसकी ओर तान दिया, जिसकी नाल पर
साइलेंसर लगा था “एक दिन, दो कत्ल ।"
उसका हलक सूख गया। उसने इस तरह गोपाल को देखा जैसे कि हलाल होने को तैयार बकरा कसाई को देखता है।
“अभी मैंने तुझे बताया था कि एक कल मैं करके आया हूं।" सहसा गोपाल बोला “जानता है, वह बदनसीब कौन था जो मेरे हाथों कत्ल हुआ।”
"क...कौन, कौन था वह?"
“मेरा शुभचिंतक, मेरा मददगार, मेरा मोहसिन ।”
"ज.. जानकी लाल ।"
“वही। बहुत बड़ा आदमी बन गया है कमबख्त । आज वह...”
“बड़ा आदमी तो वह पहले भी था। नहीं तो तुम्हारी मदद कैसे करता? तुम्हें इतना रुपया कैसे देता?" ।
“स्साले मुर्ग मुसल्लम, आज वह अरबपति बन गया है। सारी दिल्ली उसका नाम जानती है। तूने भी जरूर सुना होगा?"
“क...कहीं तुम...।” दास एकदम से चिहुंककर बोला
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“जानकी लाल बिल्डर की बात तो नहीं कर रहे?"
"देखा।” वह विजयी भाव से बोला “मैंने कहा था न कि तूने भी उसका नाम जरूर सुना होगा। देख, कितना सही कहा था मैंने।"
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