RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल सोचने लगी "मैं एक शादीशुदा औरत हैं और किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है और मैं तो दूसरे मर्द के बारे में सोचकर अपनी चूत से पानी निकल रही थी." उसे अपने आप में बहुत गुस्सा और घिन आने लगी।
उसे वसीम पे भी जारों से गुस्सा आने लगा की कैसा घटिया नीच गिरा हआ इंसान है, जो अपने से आधी उम्र की औरत के बड़े में ऐसी घटिया बात सोचता है और ऐसी घटिया हरकत करता है। उसने फैसला कर लिया की ये बात विकास का बताएगी और अब हम इस घर को खाली करके कहीं और किराये पे रहेंगे। शीतल एक घंटे तक वसीम के बारे में ही सोचती रही- "मच में में लोग ऐसे ही होते हैं। क्या जरूरत थी विकास को यहाँ घर लेने की। एक सप्ताह और दर रहते हम तो क्या हो जाता? लेकिन कम से कम घर तो हिंदू कम्यूनिटी में मिल जाता। कुछ पैसे और लगत तो क्या हुआ??
सोचते-सोचतें उसके अंदर से शैतान की आवाज आई- "तो क्या हिंदू कम्यूनिटी में लोग उसे अच्छी नजरों से देखते? क्या वो लोग मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचते? वो भी सोचते। ये मर्द जात होती ही ऐसी है की जहाँ हसीन औरत दिखी नहीं की उनके लण्ड टाइट हो जाते हैं। विकास ही शरीफ है क्या? उस दिन उस दुकान में उस लड़की को कैसी ललचाई नजरों से देख रहा था। सारे मर्द एक जैसे होते हैं। और कम से कम जो भी है वो वसीम चाचा के मन में है। उन्होंने कभी मेरी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखा?"
शीतल की सोच फिर से आगे बढ़ी- "वसीम नजर उठाकर कहाँ देखते हैं, लण्ड उठाकर देखते हैं। वो तो मजबूर हैं, अगर बस चले तो नंगी ही रखें मुझे और दिन रात चोदता रहे। घटिया इंसान उसे ऐसा सोचते हए भी शर्म नहीं आई। उसकी बेटी की उम्र की है मैं?"
फिर से शैतान ने शीतल को आवाज लगाई- "बेटी की उम्र का लिहाज है इसलिए तो नजर उठाकर नहीं देखते।
एक इंसान जो बहुत लंबे वक़्त में अकेला तन्हा है, उसके सामने अगर मेरी जैसी हसीन कमसिन औरत ऐसे रहेंगी तो भला बो इंसान खुद को कैसे रोके? मेरे लिए ये कपड़े नार्मल और जेन्यूबन हैं, लेकिन उनके हिसाब से तो सलवार सूट में भी मैं आग लगाती होऊँगी। सच में उन्होंने खुद पे बड़ा काबू किया हुआ है?
शीतल का जवाब आया- "तो क्या बुक़ां पहनकर रह" फिर शीतल खुद ही सोचने लगी- "नहीं। लेकिन मैं अब उनके सामने भी नहीं जाऊँगी और हम जल्द से जल्द ये घर खाली कर देंगे। सही है की मैं कुछ भी पहन उनके अरमानों में तो हलचल होगी ही। विकास एक सप्ताह में मेरे बिना पागल हो रहा था और ये तो सालों से अकेले है."
शीतल एक घंटे तक वसीम के बारे में ही सोचती रही। उसके दिमाग में उथल-पुथल मची हई थी। वो उसी तरह सोफे में लेटी हुई थी और उसका ट्राउजर और पैटी नीचे पैर की एड़ी के पास थी। शीतल को वसीम खान के अपने काम पे चले जाने की आहट हई। शीतल उठकर बैठी और अपने कपड़े ठीक की। फिर वो छत पे आ गई और अपने कपड़े ले आई। पैंटी गीली ही थी और बा भी। शीतल सोच ली थी की कल से पैंटी बा को छत में सूखने ही नहीं देगी।
शीतल उसे धोने जा रही थी, लेकिन वो बाकी के कपड़े रखकर पेंटी को देखने लगी। बाउन कलर की पैटी पे सद वीर्य अब तक हल्का-हल्का दिख रहा था। उसकी आँखों के सामने वो दृश्य घम गया। कैसे उसके इतने सामने वसीम का इतना बड़ा मोटा काला लण्ड टैर सारा वीर्य उसकी पेंटी में गिरा रहा था। वो ब्रा भी उठाकर देखने लगी। उसकी चूत में फिर सं हलचल मचने लगी। फिर से उसे एक बार उस वीर्य को सूंघने का मन हुआ और वो पैटी को नाक के पास ले आई।
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उफफ्फ.. अजीब सी मदहोश कर देने वाली खुश्बू उसके नथुने से टकराई, जिसे वो अपने सीने में भरती चली गई। उसने अपनी पैंटी में लगे वीर्य मे जीभ को सटाया तो उसे ऐसा एहसास हुआ की वो वसीम खान के लण्ड के टोपे को अपनी जीभ से चाट रही है। शीतल की चूत अब हलचल करने लगी। उसका बदन हिलने लगा।
शीतल पैंटी बा को सोफे पे रख दी और पहले अपनी ट्राउजर और पैंटी को उतार दी। इतने में भी उसका मन नहीं भरा तो उसने टाप और बा को भी उतार दिया और पूरी नंगी हो गई। उसका बदन आग में तप रहा था। वो फिर से पैंटी और ब्रा को उठा ली और नंगी चलती हुई सोफे पे जा बैठी। उसने पैटी को चाटते हुए कल्पना में वसीम के लण्ड को चाटना स्टार्ट कर दिया।
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