RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल की जान में जान आई वसीम के जाने के बाद। लेकिन उसके मन उदास हो गया की अंदर आकर बैठकर कुछ बात तो करतें कम से कम। बैंकार में कपड़े पहनी। नंगी ही दरवाजा खोल देती, नहीं तो कम से कम कपड़े तो टीले रखती। पूरा टक ली। बेचारे एक तो कभी आते नहीं और आए भी तो मुझे कुछ तो दिखा ही देना चाहिए था। मैं इतनी हड़बड़ा गईं थी की दिमाग ही काम नहीं किया? और शीतल वसीम के ख्यालों में फिर से खो गईं।
बाहर जाते हए वसीम का लण्ड टाइट हो चुका था। शीतल अपने हिसाब से वसीम को कुछ नहीं दिखा पाई थी, लेकिन वसीम को हरामी नजर एक झटके में ये ताड़ गया था की रंडी ने अंदर कुछ नहीं पहना था। चूचियों की गोलाई में सटी नाइट गाउन को देखकर हो वा समझ गया की अंदर ब्रा नहीं था और इसलिए वसीम का लण्ड और टाइट हो गया था। रोड पे आने से पहले उसने अपने लण्ड को पायजामा में अइजस्ट किया और दुकान की तरफ चल पड़ा।
वसीम सोचने लगा- "रडी पक्का अंदर नगी होगी। चुदवाने के लिए मरी तो जा रही है लेकिन हाए रे संस्कारी नारी, कुछ बोल नहीं पा रही। बाकी कपड़े छोड़कर सिर्फ पैंटी बा इसलिए ले गई ताकी मैं जान स. की वो जानती है और मेरी हिम्मत बढ़ जाए। लेकिन मेरी रांड़, इतनी आसानी से तुझं थोड़ी मेरा लण्ड दें दंगा। जब तक तू पूरी मेरी रोड़ नहीं बन जाती तब तक तू तड़पेगी। तड़प तो मैं तुझसे ज्यादा रहा है गड़। तुझं घोड़ी जल्दी करनी चाहिए थी, तरी स्पीड बढ़ानी पड़ेगी?"
सोचता हआ वसीम दुकान चल पड़ा और अपने प्लान को माडिफाई करने लगा। वो प्लान जिसमें एक सीधी सादी शरीफ पवित्र टाइप की लड़की को उसे अपनी रंडी बनाना था। उसके तन मन को अपने सामने समर्पित करवाना था। शीतल का समर्पण चाहिए था उसे।
रात में फिर शीतल विकास से वसीम के बारे में ही बात कर रही थी। शीतल ने कहा- "आज वसीम चाचा लेंट में आएंगे। दरवाजा बंद कर लेने बोले हैं। जब वो आएंगे तो काल कर लेंगे तब दरवाजा खोल देने बोले हैं..."
विकास- "ठीक है। ज्यादा रात होगी बन्या उन्हें?"
शीतल- "ये तो पूरी नहीं। बस इतना बोलें और चले गये। मैं तो अंदर आने बोली भी लेकिन आए नहीं.."
विकास मुश्कुरा दिया, और बोला- "अरे बाह... आकर बोल गये। कल देखकर गये तुम्हें तो आज फिर से देखने का मन किया होगा। क्या पहनी हुई थी तुम आज?"
शीतल बनावटी गुस्से में बोली- "नंगी थी... तुम्हें और कुछ तो सूझता है नहीं। तुमने देखा था ना उस दिन वा देखते भी नहीं मेरी तरफ..."
विकास- "तुम्हें दिखाकर थाई ना देखते होंगे। तुम्हारी जैसी हर को कोई बिना देखें रह ही नहीं सकता। लेकिन उसे शर्म आती होगी की वो उतना उम्रदराज होकर भी तुम्हें देख रहा है। लेकिन एक बात तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ की लार तो जरगर टपकती होगी उनकी। मर्द जात ऐसे ही होते हैं। तुम्ही खोल देना दर बाजा, एक बार और देख लेंगे तुम्हें...
शीतल को विकास की बात में दम नजर आया- "उन्हें उम्र की वजह से शर्म आती होगी। हैं भी तो वो मेरे से गर्ने उम्र के। उफफ्फ... इसीलिए वो इंसान अंदर ही अंदर तड़प रहा होगा। मुझे ही कुछ करना होगा उनके लिए? सोचती हुई फिर वो विकास को बोली- "मुझे तो उन पर दया आती है। मुझे देखतें तक नहीं, बात करना तो दूर की बात हैं। लेकिन इतने सालों में अकेले ही अंदर-अंदर घट रहे हैं। मेरी छोड़ो, तुमसे भी तो बात करके मन का बोझ हल्का कर सकते हैं.."
विकास हम्म्म... बोलता हुआ करवट बदलकर सोने लगा और शीतल अभी का प्लान बनाने लगी- "दोपहर में तो वा हड़बड़ी में थी लेकिन अभी उसके पास पूरा टाइम था। विकास अब सुबह ही जागने वाला था। शीतल का मन हआ की सच में नंगी ही जाकर दरवाजा खोल दूं। देखती ह बूढ़े मियां फिर देखते हैं की नहीं?" सोचकर वो खिलखिला दी।
शीतल वही नाइटगाउन पहनी हुई थी। विकास के सो जाने के बाद वो उठी और ब्रा उतार दी। फिर वा बाडी लोशन लेकर अपने सीने पे और चूचियों पे अच्छे से लगा ली। उसकी चूचियां तो ऐसे ही गोरी थीं, अब और चमक उठी। फिर उसने चेहरे को साफ किया और कीम और डी.ओ. लगा ली। अब शीतल ने नाइटगाउन के सामने के हिस्से को थोड़ा नीचे खीच लिया और कालर को थोड़ा फैलाली। अब उसकी दोना गोलाइयां गहराईके साथ दिख रही थीं। शीतल अब दरवाजा खोलने के लिए तैयार थी। शीतल को नींद ही नहीं आ रही थी।
सीतल मन ही मन सोच रही थी की कैसे दरवाजा खोलेंगी और क्या करेंगी? लेकिन शीतल की इतनी हिम्मत नहीं हई की बसीम से काई भी बात सीधी कर पाए। बा अपने नाइटी का ठीक कर ली और ब्रा पहनने लगी। उसे लगा की अगर मैं ऐसे गई तो कहीं वो मुझे गलत टाइप की ना समझ लें। फिर शीतल को खपाल आया की मैं तो सज संवर कर बैठी हैं, तो उन्हें लगेगा की मैं तो जाग कर उनका इंतजार कर रही थी। अगर मैं नींद में बही की किसी तरह की गलती हो सकती है। उसने फिर से बा को उतार दिया और नाइटगाउन को टोली कर ली। अब चलने पे उसकी चूचियां आराम से गोल-गोल घूम रही थी और क्लीवेज खुले होने से चूचितों में हो रही शिरकन साफ-साफ दिख रही थी। शीतल अपने बाल बिखरा दी और चेहरे को भी पानी से धोकर उनींदा टाइप का चेहरा बनाने लगी। रात के 11:00 बज गये थे और वसीम का अब तक काल नहीं आया था। शीतल अपनी पेंटी भी उतार दी थी। वो दो-तीन बार बाहर झांक कर भी आ गईथी वसीम आए या नहीं।
उसने सोचा की में ही पूछ लेती हैं लेकिन फिर उसने ये इरादा त्याग दिया। थोड़ी देर बाद विकास के मोबाइल में काल आया। शीतल दौड़कर फोन उठाई तो वसीम चाचा लिखा हआ था। शीतल अपनी साँसों को कंट्रोल की और उनींदी आवाज में "हेला" बोली।
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