RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
रात में वसीम ने दरवाजा में नाक किया। शीतल अभी खाना बना हो रही थी। विकास और शीतल दोनों चकित हो गये की कौन आया, क्योंकी उनके यहाँ बहुत कम लोग आते जाते थे और जो आते भी थे उनके बारे में इन लोगों के पास पहले से खबर होती थी। विकास ने दरवाजा खोला तो सामने वसीम खड़ा था।
दरवाजा खुलते ही वसीम ने कहा- "आदाब विकास जी, पता नहीं कहाँ आज मेरे घर की चाभी खो गई है."
विकास हँसने लगा और बोला- "अरे वसीम चाचा, तो इसमें इतना घबराने वाली कौन सी बात है? आप ही का घर है ये। हम सिर्फ किराया देते हैं। आइए अंदर, यही रहिए। सुबह देखेंगे की चाभी का क्या करना है?"
तब तक शीतल भी दरवाजा पे आ गई थी। उसके मन में तो लड्डू फूटने लगे की वसीम चाचा आए हैं और रात में यहीं रहेंगे। इससे पहले की वसीम विकास की बात में कुछ बोलता, शीतल चहकते हुए बोल पड़ी- "और नहीं
तो क्या, आपका ही घर है। बिंदास आइए.."
वसीम "शुकिया..' बोलता हुआ अंदर आ गया और सोफे पे बैठ गया।
शीतल नाइट सूट वाले टाप और ट्राउजर में थी। शीतल वसीम के लिए भी खाना बना ली। वसीम आज भी शीतल को नहीं देख रहा था। वसीम विकास में बातें कर रहा था। शीतल अभी तक बसौम के वीर्य लगी पैटी को ही पहनी हुई थी। वसीम को सामने देखकर शीतल की चूत गीली हो गई। उसे लगा की वसीम अपना वीर्य उसकी चूत में भरा है और वही उसकी पेंटी में लगा है। वो बसीम की तरफ देखी जो आज भी उसे नहीं देख रहा था। उसे अपना दोपहर में लिया हुआ प्रण याद आ गया की उसे वसीम को मनाना है।
शीतल ने अपने टाप को ऊपर की एक बटन खोल दी। खाना तैयार हो चुका था तो बोने विकास और वसीम का खाना सर्व करने लगी। जब वो झुकी तो वसीम की नजरों के सामने दो पके आम लटक रहे थे।
बसीम की नजर शीतल की झूलती चूची पे पड़ ही गई और उसका लण्ड एक झटके से टाइट हो गया। उसका मन हआ की अभी दोनों हाथ बढ़ाए और रंडी के टाप के बटन को फाड़कर इसकी चूचियों को मसल दें। उसने बड़ी मुश्किल से ये सोचकर खुद पे काबू किया की बस, कुछ दिन और, फिर बताऊँगा तुझे की मैं क्या चीज हैं।
इस चीज को विकास भी देख रहा था की उसकी बीवी कैसे उस बटू मुस्लिम मर्द के लिए पागल हैं। उसे अपनी बीवी पे पहले गुस्सा आया, फिर मजा आया। उसने सोचा की आज रात तो मेरी बीवी मेरे ही घर में इस टे से चुदवाकर ही मानेंगी। ये सोचकर उसका लण्ड टाइट हो गया की वो आज ही अपनी बीवी को एक बूढ़े मुसलमान मर्द से चुदवाते देखेंगा।
खाना खाने के बाद वसीम बाश बेसिन के पास हाथ धो रहा था। शीतल के किचेन में जाने के लिए वहाँ में जगह कम थी। विकास टेंबल में ही बैठा हुआ था। शीतल के मन में शैतानी ख्याल आया। शीतल बसीम की पीठ में अपनी चूचियां रगड़ती हुई किचन में चली गई।
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