RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल भी और आगे आ गई और फिर से वसीम से चिपक गई. "कोई पाप नहीं कर रहे आप वसीम चाचा। मैं अपनी मर्जी से आपके पास आई हूँ। मेरी वजह से आपकी ये हालत हुई तो मेरा फर्ज बनता है आपकी मदद करने का। मुझे अपना फर्ज पूरा करने दीजिए वसीम चाचा..' कहकर शीतल वसीम से कसकर चिपक गई और उसकी छाती को चूमने लगी।
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वसीम अभी भी पीछे हटना चाह रहा था, लेकिन अब उससे ऐसा हो ना सका। वो बस खड़ा रहा।
शीतल अब पागल हो रही थी। उसे वसीम से ये उम्मीद नहीं थी। उसने सोचा था की वो वसीम को खुद को आफर करेंगी तो वा मना नहीं कर पाएगा और फिर धीरे-धीरे उससे बात करके उसकी फीलिंग्स को हल्का करेंगी। अपनें जिश्म को पूरी तरह पेश करना तो आखिरी हथियार होता। लेकिन वसीम में अभी तक बाकी अस्त्र-शस्त्र का असर तो हआ ही नहीं था। लेकिन शीतल आज फैसला करके आई थी की वो कुछ भी करेंगी लेकिन वसीम को अब और नहीं तड़पने देगी। उसने फिर से सोच लिया की कुछ भी करना पड़े तो वो करेंगी। कुछ भी मतलब कुछ भी।
शीतल- "मुझे देखिए वसीम चाचा, मुझसे बातें कीजिए, जैसी चाहे वैसी बातें कीजिए, जो भी सोचते हैं वो बोलिए। अपने आपको रोकिए मत, अपनी भड़ास बाहर निकालिए। तभी आप खुद को हल्का कर पाएंगे..."
वसीम के लिए बड़ा मुश्किल वक़्त था।
शीतल अपनी पकड़ को थोड़ा ढीला की और अपने आँचल को हटाकर जमीन पे गिरा दी- "आप मेरे जिएम को देखना चाहते हैं तो देखिए। आप मुझसे गंदी बातें करना चाहते हैं तो करिए। बाहर निकालिए अपनी भड़ास। अंदर ही अंदर मत घुटिए वसीम चाचा। मुझसे आपका तड़पना नहीं देखा जाता..."
वसीम को अब खुद को रोकना जरूरी नहीं था। अब उसे शीतल की प्यास बढ़ानी थी। उसने शीतल को अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसकी नंगी पीठ को सहलाने लगा। वसीम में शीतल के चेहरे को ऊपर उठाया और उसके रसीले होठों को चूमने लगा। वो पागलों की तरह शीतल को चूम रहा था और उसके बदन को सहला रहा था जैसे नदी का बाँध टूट गया हो आज।
शीतल अपनी जीत मानकर वसीम का पूरी तरह साथ दे रही थी। शीतल भी वसीम की गंजी को ऊपर कर दी और उसकी लुंगी को खोलकर गिरा दी। वसीम जीचं से नंगा था। शीतल भी उसकी पीठ और गाण्ड को सहला रही थी।
वसीम ने एक पल के लिए शीतल के होठों को छोड़ा और फिर से चूसने लगा। वो शीतल की जीभ को चूस रहा था। ये सब नया अनुभव था शीतल के लिए और उसका जिम पिघलता जा रहा था।
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