RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल बोली- "देख लीजिए वसीम चाचा, ये सब मेरी सुहागन होने की निशानियां हैं और सब आपके वीर्य से सनी हुई हैं। मेरी माँग में आपका वीर्य है। मैंने आपका वीर्य लगा मंगलसूत्र पहना हआ है। तो अब आप भी मेरे पति हए। सुबह जब आपने बाथरूम के पास अपना वीर्य गिराया था, तब अंजाने में मेरा मंगलसूत्र उसमें भीग गया था। अभी में जानबूझ कर आपके वीर्य को हर जगह लगा ली। अब आप मुझे रंडी समझकर चादिए या बीवी समझकर या रखेल समझकर। लेकिन अब मैं आपको ऐसे नहीं छोड़ सकती। अब मैं आपको तड़पने नहीं दूँगी."
शीतल खड़ी हो गई और अपने पैटी बा ब्लाउज़ पेटीकोट को हाथ में ले ली और साड़ी को बस एक बार लपेट कर तेजी से चलती हुई सीढ़ी से नीचे उतर गई और अपने गम में आ गई। उसने दरवाजा बंद कर लिया और साड़ी को उतारकर फेंक दी और सोफे पे निढाल होकर लेट गई।
शीतल सोच रही थी- "अब तो मैं आपसे चुदवाकर ही रहंगी वसीम चाचा। मैं किसी और की हैं, इसलिए आपको गुनाह लगा ना। अब आपकी तड़प और बढ़ जाएगी और अब आप खुद का और रोकगे और अंदर ही अंदर तड़पेंगे। लेकिन मेरी भी जिद है की मैं आपका और नहीं तड़पने दूँगी। जब मैं इतना कुछ की तो और भी बहुत कुछ करेंगी।
शीतल बहुत गुस्से में भी थी और चिड़चिड़ाहट में भी थी। उसे ये उम्मीद नहीं थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था की ऐसा होगा। कहीं तो वो सोची थी की धीरे-धीरे बात करके वसीम को हल्का करने की कोशिश करेंगी, जिष्म दिखाना और फिर खुद को पेश करना तो आखिरी हथियार होगा, और शीतल इसके लिए भी तैयार होकर गई थी। लेकिन उसका ये बम्हास्त्र भी बैंकार हो गया वसीम प? अजीब पागल इंसान हैं। अपनी ही घुटन में मार जाएगा ये। क्या-क्या नहीं की मैं? खुद अपने कपड़े खोली, खुद को पेश कर दी, खुद को रंडी भी बोली। फिर भी असर नहीं हुआ उनपे। यहाँ तो लोग मौका टूटते हैं बात करने का और ये इंसान महानता की मूर्ति बना बैठा है?
शीतल बहुत बुरा महसूस कर रही थी। उसे लग रहा था की जिसके लिए मैं इतना कुछ कर दी, वो मेरे बारे में क्या सोच रहा होगा। में खुद को रंडी बना ली। वसीम चाचा का लग रहा होगा की में सच में रंडी टाइप की गिरी हुई औरत हैं जो उनपे डोरे डाल रही है। ये शीतल का अपमान था। उसके रूप का उसके हश्न का अपमान था। शीतल ऐसी औरत थी जो अगर किसी को देखकर अच्छे से मुश्का दे तो उसका लण्ड पानी छोड़ दें, और यहाँ नंगी होने के बाद भी किसी ने उसे ठुकरा दिया था। अब शीतल को जिंद हो गई थी वसीम की। अब उसे वसीम से चुदवाना ही था।
शीतल के जाने के बाद वसीम ने दरवाजा बंद कर लिया और बैंड पर लेटकर आराम करने लगा। अभी बहुत तकलीफ में था वो। शीतल जैसी अप्सरा को बिना चोदे वापस भेजना बहुत दिलेरी का कम था। उसे अफसोस भी हो रहा था की चोदता नहीं मैं, लेकिन कुछ देर और तो मजे लेता उसके हश्न का। फिर उसके दिमाग में उसे समझाया की फिर खुद को रोक नहीं पता मैं। और मजा तो मुझे उसकी पूरी जवानी का लेना है। दो दिन भी नहीं रह पाएगी और फिर आएगी अपना नशीला बदन लेकर। अब वो मन से मेरी रांड हैं। मेरे लिए वो कुछ भी कर सकती है। सिर्फ मझें पं ध्यान रखना है की वो लोग घर खाली ना करें। हालौकी जाते वक़्त जो शीतल बोलकर गई तो अब तो नहीं हो जाएगी। आह्ह.... क्या रसीली चूत है साली की। कितना मजा आएगा उसे चोदने में? उम्म्म्म ।
शीतल अपने ख्यालों में खोई थी की उसका फोन बजा। उसकी बहन संजना का काल था की वो कल आ रही है एक हफ्ते के लिए। शीतल चिड़चिड़ाई हई थी तो वो ठीक से बात भी नहीं की और उसे आने से मना भी कर दी। वो नहीं चाहती थी की अभी कोई भी उसे वसीम से चुदवाने में डिस्टर्ब करे।
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थोड़ी देर बाद वसीम के जाने की आहट हुई। शीतल भी अपने ख्यालों से बाहर निकली और रूम में जाकर खुद को आईने में देखने लगी। उसके बाल बिखरे हुए थे और माँग में लगे वीर्य की वजह से सिंदूर पूरा फैला हुआ था। शीतल बाथरूम में जाकर नहा ली और फ्रेश हो ली। उसे अब आगे की तैयारी करनी थी। नहाने के बाद शीतल टाप और शार्टस में थी। वो कोई पैंटी बा नहीं पहनी थी।
विकास आया तो पूछा भी, तो वो बोली "गर्मी की वजह से नहीं पहनी हैं.."
शीतल की हिलती चूची को टाप के ऊपर से देखकर विकास का लण्ड टाइट हो गया था। उसे लगा था की शीतल वसीम के लिए ही बिना ब्रा के होगी और आज दोपहर में शीतल वसीम से चुदवा चुकी है, और तभी इस तरह रंडी बनी घूम रही है। शीतल की वसीम के साथ चुदाई की बात सोचकर ही विकास टाइट हो जाता था।
रात में सोते वक़्त विकास शीतल को सहलाने लगा और पहले टाप के ऊपर से उसकी चूचियों को मसला और फिर टाप को उठाकर चचियों को मसलने चूसने लगा। शीतल उसे बिल्कुल मना नहीं की। विकास ने शीतल के टाप को उतार दिया और फिर शार्टस को भी उतारकर शीतल के चमकते जिश्म को चमने सहलाने लगा। विकास ने अपने कपड़े भी उतार दिए और नंगा होकर शीतल के बदन से चिपक गया।
शीतल विकास का साथ नहीं दे रही थी लेकिन उसे मना भी नहीं कर रही थी। विकास परा मह में था। उसने शीतल की चुदाई स्टार्ट कर दी और दो-तीन मिनट में अपने वीर्य को शीतल की चूत में डालकर हॉफने लगा। वो शीतल के ऊपर ही लेटा हुआ था। अब विकास बगल में लेट गया। दोनों नंगे ही थे।
शीतल अब विकास की तरफ घूम गई। उसे विकास से बड़ी बात करनी थी तो उसके पहले उसे खुश करना जरूरी था। विकास जब चोद रहा था तो शीतल को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वो बस ऐसे लेटी थी की विकास अपना काम कर ले फिर वो अपना काम करेंगी।
शीतल बड़े प्यार से विकास के गाल पे हाथ रखकर बोली- "एक बात पुछु विकास?"
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