RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल- "में कपड़े सूखने हमेशा छत पे देती थी। एक दिन मुझे लगा की मेरी पेंटी कुछ टाइट जैसी हैं। देखी तो उसपे कुछ दाग जैसा भी था। कुछ समझ में नहीं आया और बात को इग्नोर कर दी। अगले दिन भी ऐसा ही था। अगले दिन थोड़ा जल्दी कपड़े ले आई तो पैंटी गीली थी और उसपे कुछ लगा था। मैं अच्छे से देखी तो लगा की कुछ है। अगले दिन और जल्दी ले आई। आज पैटी और गीली थी और उसमें सफेद जैसा कुछ दाग भी था। अगले दिन मैं छत पे स्टोररूम में जाकर छिप गई तो देखती क्या हैं की वसीम चाचा आए, रूम में जाकर कपड़े चेंज किए और बाहर आकर मेरी पेंटी में अपना वीर्य गिरा दिया.." कहकर शीतल एक सांस में बोलती जा रही थी।
विकास का लण्ड टाइट हो रहा था, बोला. "तुम उसे अपनी पैटी में वीर्य गिराते देखा?"
शीतल शर्मा गई और उसकी आँखों के सामने वो दृश्य घूम गया, जिसमें वसीम अपने मोर्ट कालें लण्ड से शीतल की पैंटी और ब्रा को बीर्य से भर रहा था।
शीतल बोलना स्टार्ट की- "हाँ, मुझे बहुत गम्सा आया। इस बढ़े इंसान को लाज शर्म नहीं है की अपने से आधे से भी कम उम्र की औरत की पैंटी ब्रा के साथ ऐसा कर रहा है। मैं नीचे आ गई और सोची की तुम्हें बताऊँगी लेकिन फिर तुरंत सीधे-सीधे नहीं बताई की पता नहीं तुम क्या सोचा और क्या करो? इसलिए तुमसे वसीम चाचा के बारे में पूछी तो तुमने बताया की वो यहाँ बहुत साल से अकेले रहते हैं और उनकी वाइफ नहीं है। मुझे तो ये सब कुछ पता था नहीं तो मैं जैसे हमेशा रहती थी उसी तरह रहती रही और इन्हें पागल बनाती रही। मुझे उनसे हमदर्दी हो गई। फिर मैं नोटिस की की वो मुझे देखतें भी नहीं, मरे से बात भी नहीं करते। दो-चार बार ऐसा हुआ की मुझे किसी कम से बात करना पड़ा तो मैं देखी की वो मुझसे बात करने से बचते हैं। फिर मैं सोची तो मुझे लगा की मैंने इनके दिल की घंटी बजा दी है...
विकास- "फिर?"
शीतल आगे बोलना स्टार्ट की- "जब में मैं बड़ी हुई है तब से मैं यही देखतं और महसूस करती आई हूँ की हर कोई मुझसे बात करना चाहता था, और मेरे नजदीक आना चाहता था। मुझे लगा की इन्हें बुरा लगता होगा और अगर मैं उनसे बात करेंग, हँसी मजाक करी तो इन्हें राहत मिलेगी। लेकिन ये मेरे से दूर ही रहते और अंदर ही अंदर तड़पते रहते। तब मैं सोची की मैं इनसे फाइनल बात कर लें, और उन्हें बोल दं की मुझसे शर्माने की जरूरत नहीं है और आप मुझसे बात कर सकते हैं।
लेकिन कमीम ने मना कर दिया और बोले की- "तब तो मैं खुद को और रोक नहीं पाऊँगा और हो सकता है की तुझे पकड़ ही लें..."
विकास- "हौँ। ये तो सही बात है। फिर क्या हुआ?"
शीतल- "देखो प्लीज... मुझे गलत मत समझना। मेरी नजर में सारी गलती मेरी थी और मुझे उनपे बहुत दया आ रही थी। तो मैं बोल दी की तो पकड़ क्यों नहीं लेते? मुझे लगा की उन्हें खुलकर बातें करने की छूट दूँगी तो बो फ्रेश हो जाएंगे। वो कुछ नहीं बोले तो मैं ही आगे बढ़कर उनके गले लग गई। वो पीछे हटने लगे। मैं उन्हें पकड़े रही और बोली की आप मुझसे खुलकर बातें करिए। आप शाइए मत..."
वसीम चाचा बोले- "कैसे तुमसे खुलकर बातें करें? तुम किसी और की हो.."
में भी पता नहीं किस रो में थी की बोली- "आपके लिए मैं और किसी की बीवी नहीं हैं। आप बिंदास मेरे से बात करिए... और फिर से उनके गले लग गई।
शीतल सांस लेने के लिए रुकी। वा सोच रही थी की विकास का ये बताया है या नहीं लेकिन फिर वो सोची की अगर इन्हें बाद में पता चला तो तकलीफ होगी। बैंसें भी अब तो मैं वसीम चाचा के पास जा नहीं बही और विकास तो मुझे उनसे चुदने की पमिशन तक दे चुके हैं।
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