RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
वसीम ने उसके फैलते पैर और ऊपर उठती कमर को देख लिया। उसने मन ही मन सोचा. "अभी नहीं रंडी, अभी तुझं और तड़पना है मेरे लण्ड के लिए। अभी मेरे लण्ड और तेरी चूत के बीच तेरा पति खड़ा हैं। तुझं मुझसे चुदवाने के लिए गिड़गिड़ाना होगा रांड़, अपने पति से बगावत करना होगा..' साँचकर वसीम उठा और खड़ा होकर लण्ड पे हाथ आगे-पीछे चलाने लगा।
शीतल ये देखकर चकित हो गई- "आहह... नहीं वसीम चाचा आह्ह... ये क्या कर रहे हैं आप आअहह... नहीं ऐसा मत करिए प्लीज... ओहह... इसे मेरी चूत में डालिए आहह... नही..." शीतल हड़बड़ा कर उठी और वसीम का हाथ पकड़ने की कोशिश की। वो चुदने के लिए खुद को मेंटली तैयार कर चुकी थी और फिजिकली तो वो तैयार थी ही। लेकिन वसीम ने ऐसा करके जैसे उसे आसमान से जमीन में ला पटका हो।
वसीम का लण्ड झटके खाने लगा और गाढ़ा सफेद वीर्य हवा में उछलता हुआ इधर-उधर गिरने लगा।
शीतल को समझ में नहीं आया की क्या करें? वो वसीम के लण्ड को हाथ में पकड़ ली और वीर्य उसके सामने जमीन पे गिरने लगा। ताजा वीर्य सामने बह रहा था। शीतल तुरंत ही अपना मुह खोली और लण्ड को मुह में ले ली। वसीम का मोटा लण्ड अब शीतल के मुँह में झटके मार रहा था और गरमा गरम बीर्य शीतल की जीभ को अपना टेस्ट दे गया। लण्ड वीर्य उगले जा रहा था और शीतल उसे अपने मुँह में भरती हुई जीभ से होकर गले में उतारती जा रही थी। लण्ड थक गया और उसने वीर्य गिराना बंद कर दिया लेकिन इससे शीतल के प्यासे जिएम की प्यास और बढ़ गई थी। वो चूस-चसकर वीर्य को निकालने लगी और पीने लगी।
वसीम हॉफ्ता हा चैयर पे जा बैठा और शीतल अपने सिर को बेड पे टिकाए नीचे ही बैठी रही। शीतल खुद के लिए बहुत बुरा महसूस कर रही थी की आज भी इतना कुछ होने के बाद भी वो बिना चुदे रह गईं। वो उठी और वसीम की चेपर के सामने जा बैठी।
शीतल- "ऐसा क्यों किया आपने वसीम चाचा? मुझे चोदा बन्यों नहीं: लण्ड को मेरी चूत में क्यों नहीं डाला? वीर्य को मेरी चूत में बन्यों नहीं गिराए? ये क्या पागलपन है बोलिए?"
वसीम आँखें बंद किए हए ही बोला- "क्योंकी मेरे नशीब में यही लिखा है..."
शीतल- "प्लीज... वसीम चाचा ऐसा ऐसा मत बोलिए। आपके नशीब में मेरी चूत है। मैं नंगी बैठी हैं आपके सामने। आप क्यों ऐसा करके खुद को तकलीफ दे रहे और मुझे भी?"
वसीम- "तुम किसी और के नशीब में हो शीतल। तुम जितना मेरे लिए कर रही हो उतना कोई नहीं करेगा। इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। लेकिन मुझे इससे आगे के लिए मजबूर मत करो। किसी के चाहने में कुछ नहीं होता...'
शीतल- "सारी चाहत भले किसी की पूरी ना हो पाई हो। लेकिन समय और हालत के मुताबिक इंसान को जो मिलता है उसी में टलकर खुश होने की कोशिश करता है। मैं मनती हैं की तन्हाई आपकी तकदीर में थी। लेकिन जब मैं यहाँ आई तो आपकी तन्हाई कुछ हद तक तो दूर कर हो सकती थी। लेकिन आपने इसे भी एक मर्ज़ बना लिया..."
वसीम- "शीतल तुम किसी और की अमानत हो। बस यही मेरी मर्ज़ का कारण है। तुम भले ही मुझे अपना जिश्म दे देना चाहती हो, लेकिन वो किसी और की अमानत है। तुम्हारे पति की है। तुम्हारे चूत में उसका वीर्य गिरेगा, तुम उसके वीर्य में माँ बनोगी, तो मैं कैसे अपने वीर्य को तुम्हारे चूत में गिरा द" ।
शीतल इस बात का ता मानती ही थी की उसके बदन पर केवल उसके पति का हक है। लेकिन वा अजीब पेशोपेश में फंसी है। वो वसीम से दूर रहती है तो लगता है की वसीम से चुदवाएगी नहीं, लेकिन वसीम के बारे में सोचती है तो उसका जिस्म वसीम के लिए पेश कर देती है। उसे विकास की बात याद आ गई की सब कुछ ऊपर वाले के हाथ में छोड़ दो और निशचित होकर रहो।
शीतल भला वसीम को अपनी हालत क्या बताती की वो खुद किस मजधार में है? वो उठी और अपने कपड़े देंटने लगी। उसकी नाइटी पे भी वसीम का वीर्य गिर गया था। शीतल ने सिर्फ नाइटी पहन ली और पैंटी ब्रा को हाथ में लेकर नीचे चल दी।
शीतल- "आपको जो समझ में आता है वो करिए, मुझे जो समझ में आता है में कर रही हैं। आपसे बस इतना ही कहूँगी की परेशान मत रहा करिए, और सब ऊपर वाले पे छोड़ दीजिए.. बोलती हुई शीतल नीचे चल दी और वसीम उस हसीन अप्सरा को गाण्ड हिलाकर जाते देखता रहा।
शीतल नीचे आकर सोफे पे लेट गई। उसे अपनी जीभ में अभी भी वसीम के वीर्य का टेस्ट महसूस हो रहा था। बो मदहोश होने लगी। सोचने लगी की- "ठीक ही है, शायद यही सही हैं। वो मुझे चोदना नहीं चाहते और मैं भी उनसे चुदवाना नहीं चाहती। लेकिन बाकी चीज करने में मुझे काई दिक्कत नहीं है, और अब उन्हें भी नहीं होगी।
और अगर कभी ऐसा हुआ की उन्होंने मुझे बोला तो मैं चुदवा लेंगी। विकास बोल हो चुका है और तब मुझे भी कोई ऐतराज नहीं.."
शीतल आज खुद को संतुष्ट महसूस कर रही थी की बिना चुद भी वो वसीम की मदद कर पा रही है। उसकी पतिव्रता धर्म भी निभ रही थी और वसीम की मदद भी हो रही थी। शाम होते-हाते वो परेशान हो गई की आज की बात वो विकास को बताए या नहीं? विकास ने मुझे चुदवाने की पमिशन भी दे दी और जब में मना की की में वसीम चाचा से नहीं चुदवाऊँगी तो उन्होंने मुझे समझाया भी। लेकिन फिर वो कहेंगे की कभी बोलती हो की नहीं चुदवाऊँगी तो कभी चुदवाने पहुँच जाती हो?
बहुत सोचने के बाद शीतल इस नतीजे पे पहुँची की जब वसीम उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएंगे तब बता दंगी। लेकिन अगर ऐसा हआ की वसीम चाचा दिन में चोद दिए तो, क्या मैं उन्हें उस वक़्त मना करुंगी। नहीं नहीं, मैं उन्हें मना नहीं कर सकती। चुदवा तो लेंगी ही उस वक्त और शाम में बोल दूँगी की मुझे वसीम चाचा से चुदबाना है और फिर अगले दिन बोल दूँगी की चुदवा ली। शीतल के दिमाग में ये सारा हिसाब किताब चल रहा था।
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