RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
विकास उसे देखकर मश्करा रहा था। उसे दिन में क्या हुआ ये पता तो था नहीं। उसे लग रहा था की शीतल अभी तक अपनी बात पे कायम है और वसीम से दर रही है। वो शीतल के पास आया और यसए पीछे से पकड़कर कंधे में किस लेता हा बोला- "मेरी जान, इतना मत सोचो। मैंने कहा ना की सब ऊपर वाले में छोड़ दो। वसीम चाचा से ज्यादा तकलीफ में तो तुम हो। मैं अपने आफिस में मकसूद को और बाकी लोगों को दूसरे घर के लिए बोल दंगा कल। तभी तम खुश रह पाओगी और वसीम चाचा भी रिलैक्स हो पाएंगे..."
अब भला शीतल क्या बोलती की घर चेंज मत कीजिए, मैं बिना चर्दै वसीम को सर्विस दे रही है? वो सिर्फ हाँ में सिर हिलाई।
शीतल भी सोचने लगी की- "ये भी ठीक है। ना बो चोदना चाहते हैं ना मैं चुदवाना चाहती हैं। तो जब तक यहाँ हैं तब तक आज की तरह ही चलने देती हैं। फिर जाने के बाद मैं भी रिलैक्स महंगी और बो भी। पता नहीं वसीम चाचा रिलॅक्स हो पाएंगे या नहीं? जाने से पहले तो एक बार उनसे चुदवा ही लेंगी। जब मैं जिद करके बीर्य गिरवा सकती हैं तो चुद भी सकती हैं। यहाँ से जाने से पहले अगर वसीम चाचा ने मुझे चोद लिया तो फिर वो रिलैक्स रह पाएंगे।
अगले दिन शीतल नहाने में थोड़ा ज्यादा टाइम लगाई। उसने अपनी चूत में उग आए हल्के बालों को भी साफ कर लिया और अपनी पैटी ब्रा को गम में ही सूखने दी। विकास को लगा की शीतल अपनी बात में कायम है लेकिन शीतल को अब इसकी जरूरत ही नहीं थी। क्योंकी वसीम का वीर्य अब उसके पैटी बा में नहीं सीधा उसके मह में गिरजा था- उम्म्म्म ... क्या यम्मी टेस्ट था उसका आहह..."
शीतल एक बजने का इंतजार कर रही थी। आज वो शार्टस और टाप पहन हई थी। शीतल पेंटी और ब्रा उत्तार दी थी। वो जानती थी की उसे नहीं जाना है और नंगी हो जाना है तो पैटी ब्रा की क्या जरूरत थी? और कौन सा उसे रोड में जाना है। बीच में कोई उसे देंखेंगा नहीं और जो देखेंगा उसके सामने तो नंगी ही होना है। वसीम के साथ पल बिताने की चाहत में उसके निपल टाइट हो गये थे और टाप के ऊपर से झौंक रहे थे। उसकी चूत तो वसीम के बारे में सोचते ही गीली हो जाती थी।
वसीम के आने की आहट हुई और शीतल का मन हआ की दौड़कर बाहर चली जाए। लेकिन फिर उसे लगा की पहले उन्हें ऊपर जाकर फ्रेश ता हाने देती हैं। बड़ी मुश्किल से शीतल ने 5-7 मिनट गुजारे और फिर ऊपर चल दी। वसीम के घर का दरवाजा बंद देखकर उसे बुरा भी लगा। वो दरवाजा पे नाक की।
वसीम सोचने लगा- "आ गई रंडी.. उसने दरवाजा खोला और शीतल अंदर आ गई और बैंड के पास खड़ी हो गई। वसीम कुछ नहीं बोला और यूँ ही खड़ा रहा। शीतल को लगा था की वसीम उसे इस तरह देखकर खुश होगा
और बाहों में भर लेगा, लेकिन वो तो ऐसे खड़ा था जैसे वो यहाँ क्यों आ गई?
शीतल आगे बढ़ी और वसीम के गलें लग गई और उसे लिप-किस करने लगी।
वसीम में किस में शीतल का साथ नहीं दिया और छूटते ही बोला- "तुम क्यों आ गई यहाँ?"
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शीतल तुरंत बोली- "आपका वीर्य गिरवानें। आप रोज पहा करते थे ना। आप मुझे सोच करके वीर्य गिराते थे तो अब मेरे साथ करते हुए गिराए.."
वसीम - "प्लीज शीतल, तुम समझो मेरी बात। ये ठीक नहीं है। ये गुनाह है, पाप है...' बोलता हा वसीम चयर पे
जा बैठा।
शीतल झट से उसकी गोद में जा बैठी- "क्या पाप है? ना तो आप मुझे चोद रहे हैं और ना मैं चुदवा रही हैं। मेरे जिएम में मेरे पति का ही हक है और वो तो आप लें नहीं रहे हैं। तो फिर इतना करके तो मैं आपकी मदद कर हो सकती हैं। आप भी बिना मुझे चोदे रिलैंक्स रहेंगे और मैं भी."
वसीम मन ही मन सोचने लगा की. "अगर इतने ही से मन भरना होता तो इतना इंतजार नहीं करता। ना खुद इतना तरसता तरै जिस्म के लिए, ना तुझे तड़पने देता अपने लण्ड के लिए? अब तक तो कई दफा तेरी चूत को अपने वीर्य से भर चुका होता। मुझे तुझे पालतू कुतिया बनाना है। अकेले में नहीं, तेरे पति के सामने। ताकी जब मैं तुझे चोदं तो मेरे या तेरे मन में कोई डर नहीं रहे। मुझे कंडोम पहनने के लिए या चूत में वीर्य ना भरने के लिए ना बोल पाए त..."
वसीम बोला- "अगर तुम इस तरह मेरे साथ करोगी तो फिर मैं खुद को नहीं रोक पाऊँगा शीतल..."
शीतल तुरंत जवाब दी "तो आप रोकतें क्यों हैं? मुझे तो यही समझ में नहीं आता। मैं तो बो की मत राकिए। तभी ना ऐसे आपके पास आती हैं। आप पता नहीं मुझे किस टाइप की औरत समझने लगे होंगे?" शीतल वसीम की छाती को सहलाती हुई उसके जाँघों को सहलाने लगी थी।
वसीम- "क्योंकी तुम किसी और की हो, मेरी नहीं। नाजायज रिस्ते नहीं बनाना चाहता में.."
शीतल वसीम का हाथ पकड़कर टाप के ऊपर से अपने चूची पे रख ली। वसीम ने उसे कस के मसल दिया।
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