Antarvasnax शीतल का समर्पण
07-19-2021, 12:24 PM,
#53
RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल भी अंदर आ गईं। वो भी विकास पे गुस्सा थी। पहले तो वो गुस्से में ही सोचती रही की खुद बोले की मदद करने के लिए जिश्म दे रही हो तो अच्छी बात है, मैं तुम्हारे साथ है, और अभी जब बोली तो भाव खा रहा है। एक मिनट लगता सिर्फ। तुम्हें क्या है, तुम परेशान नहीं हो ना। दिन भर की अहमियत तुम्हारे लिए कुछ नहीं है। अगर दिन भर में ही वसीम चाचा ने कुछ कर लिया तो?

धीरे-धीरे शीतल का गुस्सा शांत होने लगा और फिर वो सोचने लगी। छिमैं कितनी गंदी है, पागल ह में। क्या क्या बोल दी उन्हें। सुबह-सुबह हड़बड़ी में मीटिंग में जा रहे हैं और मैं उन्हें वसीम चाचा को बोलने के लिये कह रही हैं। एकदम चुदवाने के लिए पागल हो गई हैं मैं। सच की रंडी बन गई हैं मैं। मैं वसीम चाचा की मदद क्या करेगी? मैं खुद चुदवाने के लिए मरी जा रही हैं।

शीतल को अब बुरा लगने लगा था। वा विकास को काल की और उसके काल रिसीव करते ही- "सारी जान, वेरी बेरी सारी। आईलव म। पता नहीं कैसे बोल रही थी मैं और क्या-क्या बोल गई? आई आम रियली बेरी सारी...'

विकास मुश्करा उठा। वो भी अपनी बीवी में बहुत चाहता था, बोला- "इट्स ओके बाबू। ना नोड फार सारी... मैं

समझ सकता हूँ की तुम्हें वसीम चाचा की हालत पे तरस आ रहा होगा, और इसलिए तुम खुद को रोक नहीं पा रही थी। तुम जा सकती हो उनके पास। अगर वो रेकार्डिग से ना माने तो मुझे काल कर लेना। मैं उन्हें फोन पे बोल दूँगा। खुश?"

शीतल- "थैक्स जान, मुझे पता था तुम मुझे समझते हो। तुम मुझसे गुस्सा नहीं हो ना?"

विकास- "नहीं जान, मैं तुमसे गुस्सा हो ही नहीं सकता। आई लव यू। जाओ और उन्हें जो चाहिए वो दो। शर्मा ना मत, उन्हें ये ना लगे की वो किसी और की कोई चीज इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हें ये एहसास हो की वो अपनी चीज को इस्तेमाल कर रहे हैं। तभी उन्हें राहत मिलेगी..."

शीतल- "आहह... विकास यू आर सच आ डार्लिंग। आई लव यू."

विकास- "आई लव यू टू। अभी ही चली जाओ उनके पास तो ठीक रहेगा, क्योंकी कुछ देर बाद में काल रिसीव नहीं कर पाऊँगा..."

शीतल अब खुद को रिलॅक्स महसूस कर रही थी। काल डिसकनेक्ट करते ही ये सोचकर की अभी ही वसीम चाचा के पास जाना है और उनसे चुदवाना है, शीतल के पेट में गुदगुदी होने लगी। उसकी धड़कन तेज हो गई। वो सोच रही थी कैसे जाए उनके पास? वो चाय बनाने लगी वसीम के लिए। वो सिर पे आँचल रखकर नई नवेली दुल्हन की तरह शर्माते हए वसीम के दरवाजा के पास पहुँची। बो उस नई दुल्हन की तरह ही शर्मा रही थी जो दूध का ग्लास लेकर सुहागरात वाले कमरे में अपने पति के पास जाती है।

शीतल वसीम के दरवाजा तक तो पहुँच गई थी। लेकिन तब तक उसकी धड़कन और सांसें बहुत तेज हो गई थी। बो अभी चुदने वाली है वसीम से, ये सोचकर डर शर्म उत्तेजना की बजह से वो बहुत घबरा गई। वो दरवाजा में नाक नहीं की और वापस नीचं आ गईं।
……………………..

शीतल सोचती है- "आह्ह... अभी मैं चुदवाने वाली हूँ.. कैसे चोदेंगे वो? मैं उनका लण्ड सह तो पाऊँगी ना? कितना बड़ा है उनका? मुह में तो आता नहीं, कितना फैलाना पड़ता है। पता नहीं चूत में कैसे जाएगा? होगा... विकास का लण्ड अंदर जाता है तो अभी तक दर्द होता है। इनका तो पता नहीं क्या करेगा? कहीं अगर मैं दर्द नहीं सह पाई तो? नहीं फिर तो उन्हें बुरा लगेगा की में जानबूझ कर ऐसा कर रही हैं। नहीं नहीं, मुझे दर्द तो सहना ही होगा। पैर पूरी तरह से फैला लेंगी..."

नीचे आते हुए शीतल बहुत कुछ सोच चुकी थी। वो किचेन में जाकर पानी पी और सोफे पे थोड़ी देर बैठ रही। उसका ध्यान बस वसीम के लण्ड और अपनी चुदाई में ही अटका था। वो खुद को मेंटली तैयार कर रही थी। बो अपने रूम में गई और अपने कपड़े चेंज कर ली।

शीतल सिपल ब्रा पहनी थी जिसे उतारकर डिजाइनर ब्रा पेंटी पहन ली। वसीम चाचा इसमें वीर्य गिरा चुके हैं, आज फाइनली बो इसे पहनने वाली की चूत में वीर्य गिराएंगे। आह्ह.. कितना मजा आएगा। विकास का वीर्य अंदर गिरता है तो मैं झड़ जाती हैं। वसीम चाचा का वीर्य तो बहुत सारा होता है और ये तो एकदम अंदर गिरेगा। आह्ह.. शीतल खुद को आईने में देखी। लाल साड़ी में बा जंच रही थी। साड़ी वो हमेशा नाभि से नीचे ही पहनती थी, आज थोड़ा ज्यादा नीचे पहनी थी। लेकिन आईने में देखकर उसे लगा की साड़ी और नीचे होनी चाहिए, तो वो साड़ी को और नीचे कर ली। वो अपने हाथ से चचियों को ब्लाउज़ से थोड़ा बाहर करते हए क्लीवेज को फैलाई। वो एक साइड आँचल ली जिससे उसकी एक चूची दिख रही थी। वो फिर से मेकप को रीटच की। बिंदी हटाकर बड़ा सा टीका लगा ली कुमकुम से। होठों पे डार्क रेड लिपस्टिक। कांखों पे पफ्यूँम।

आखीर कार, बड़े इंतजार के बाद वसीम चाचा अपनी रंडी को चोदने वाले हैं। सजना तो पड़ेगा ही। सुबह के बारे में तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। चल शीतल अब देर मत कर, चल चुदवाने।

विकास का काल आया, और पूछा- "कहाँ हो?"

शीतल बोली- "घर में, क्या?"

विकास बोला- "वसीम चाचा के पास चली गई या जाओगी?"

शीतल बोली- "अभी नहीं गई हैं, थोड़ी देर में जाऊँगी..."

विकास ने उसे फिर से समझाने लगा- "इस पल को यादगार बनाना उनके लिए। तुम अपना सब कुछ दे रही हो तो ख्याल रहे की उन्हें भी लगना चाहिए की उन्हें बहुत कुछ मिल गया। वो पूरी तरह संतष्ट होंगे तभी रिलैंक्स हो पाएंगे, नहीं तो फिर ये प्यास खतम नहीं होगी..."

शीतल चुपचाप सुनती रही और हाँ हूँ करती रही। फिर बाइ और लव यू बोलते हुये उसने काल काट दिया। शीतल में फिर से चाय बनाई और चल दी। उसने अपनी साँसों को सम्हाला और दरवाजे पे नाक करती हुई आवाज लगाई- "वसीम चाचा... वसीम चाचा.."

वसीम जाग चुका था। रात में कई बार बो शीतल की पिक्स देखा था। जो उसने लिया था, वो भी और जो शीतल अपने मोबाइल से लेकर दी थी वो भी। रात में उसने मूठ भी मारा था। वसीम को लगा की शीतल या तो उसे बुलाने आई होगी, या फिर विकास को लेकर आई होगी। वसीम ने अपने कपड़े ठीक किए। वो अपनी लूँगी गंजी में ही था। दरवाजा खोलते ही जैसे उसका दिन बन गया। शीतल सिर पे आँचल लिए मुश्कुराती खड़ी थी।

शीतल "गुड मार्निंग' बाली और चाय का प्याला वसीम की तरफ बढ़ा दी। अनायास ही वसीम के मुंह से "सुभान अल्लाह' निकल पड़ा। वसीम नेचाय का कप ले लिया और शीतल रास्ता बनाती हई अंदर आ गई। शीतल के अंदर आने के बाद वसीम को एहसास हुआ की वो दरवाजे पे ही खड़ा है। वसीम ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके सामने शीतल की पीठ थी। उफफ्फ... वसीम का लण्ड थोड़ा सा मह में आ रहा था, और शीतल की पीठ देखते ही एक झटके में टाइट हो गया।

शीतल की पीठ पूरी नंगी थी। साड़ी गाण्ड की लाइन के पास बंधी हुई थी। उसके चूतड़ और उभरे हए लग रहे थे। गर्दन से लेकर गाण्ड तक के बीच में बस ब्लाउज़ की 2" इंच की पट्टी थी और बाकी का पूरा हिस्सा चमक रहा था।

शीतल वसीम की तरफ पलटी और बोली- "मेरा गिफ्ट कैसा लगा कल?"

शीतल सामने से तो किसी को भी अपनी तरफ देखने के लिए मजबूर कर सकती थी। अभी शीतल को देखकर शरीफ से शरीफ आदमी का लण्ड टाइट हो जाता। ब्लाउज़ पूरी गोलाई में सम्हाले था चूचियों को लकिन चूचियां फिर भी बाहर आने को बेताब थी। चिकना सपाट पेंट चूत की लाइन तक चमक रहा था।

शीतल दुबारा बोली- "बोलिए ना कसा लगा मेरा गिफ्ट आपको?"

वसीम तब अपनी दनियां में लौट पाया। उसे शीतल की पिक्स याद आ गई और वो वालपेपर भी। वसीम बोला
"लाजवाब..."

शीतल- "थैक्स। जल्दी चाय पीजिए, ठंडी हो जाएगी.."

वसीम चाय के घुट मारने लगा। तुरंत ही चाय खत्म हो गई। शीतल तब तक वसीम के मोबाइल की वालपेपर देख रही थी। शीतल वसीम का मोबाइल रख दी और चलती हुई वसीम के सामने आई और उसके गले लग गई

और उसके होठों को चूमने लग गई। वो अपने हाथ के मोबाइल में विकास का का मेसेज़ प्ले कर दी। वसीम समझ गया की अब उसके और शीतल के बीच में कुछ भी नहीं है। फाइनली रंडी उसकी हई। उसका जी चाहा की अपने स्टाइल में शुरू हो जाए लेकिन वो शीतल के आक्सन का इंतजार करने लगा।

शीतल वसीम के होठ को चूमना छोड़ दी और उसके सीने में अपने सिर को रखकर बडे अपनेपन से बोली- "बस तड़पना खत्म, आपके मन में मुझे लेकर जितने भी अरमान हैं सबको पूरे करने का वक़्त आ गया है। अब कहीं कोई रोक-टोक नहीं है। अब सब कुछ सही है। मैं पूरी तरह से आपको समर्पित है अब। अपनी इच्छा से और अपने पति के पमिशन से। अब आप निश्चित होकर खुले मन से मुझे चोद सकते हैं। अब मत रोकिए वसीम चाचा खुद को और जो जी में आए को करिए, जैसे चाहे वैसे करिए। मैं पूरी तरह आपका साथ दूँगी...'

वसीम ने भी शीतल की पीठ पे हाथ रखकर उसे गले लगा लिया। उसनें शीतल के माथे में किस किया तो शीतल ऊपर वसीम के चेहरा की तरफ देखने लगी। शीतल के रसीले होंठ देखकर वसीम खुद को रोक नहीं पाया लेकिन फिर भी बस छोटा सा किस किया और बोला।
वसीम- "तुम लोगों का बहुत बहुत शुक्रिया शीतल। ये बहुत बड़ी बात है की मुझे समझकर और मेरी मदद करने के लिए तुम इतना बड़ा फैसला ली और विकास ने इसमें तुम्हारा साथ दिया। ऊपर वाले की बहुत मेहरबानी है। मेरे ऊपर। मैं बहुत खुशनशीब है की तुम मेरी जिंदगी में आई। लेकिन फिर भी मैं तुमसे कहना चाहूँगा की एक बार फिर से सोच ला शीतल। किसी गैर-मर्द को अपना जिक्ष्म देना आसान बात नहीं है। तुम एक बार फिर से अपने फैसले में सोच सकती हो..'

शीतल- "जितना सोचना था सब सोच चुकी हूँ वसीम चाचा। अब मेरा जिस्म आपका है। आज मेरा तन और मन दोनों आपका है। मैं पूरी तरह से अपने आपको आपके हवाले करती हूँ । आप जो कछ भी करेंगे में आपका साथ हूँ

वसीम- "फिर भी एक बार सोच लो शीतला कहीं ऐसा ना हो की बीच में या बाद में तुम्हें लगे की तुम गलत की
या तुम्हें अफसोस हो? क्योंकी फिर मैं खुद को माफ नहीं कर पाऊँगा। मेरे लिए जीना मुश्किल हो जाएगा.."

शीतल- "बहुत बार सोच ली वसीम चाचा। हर तरह से सोच ली। में अब पूरी तरह से आपको समर्पित हूँ। में अपने आपको आपजे हवाले करती हूँ और मैं विकास की कसम खाकर कहती हूँ की आप मेरे साथ जो भी करेंगे उसमें मेरी और मेरे पति की मंजूरी है, और मैं हर तरह से आपका साथ दूँगी.. शीतल वसीम से अलग होकर दो कदम पीछे और अपने पल्लू को जमीन में गिरा दी, और बोली- "अब आप मेरे साथ जो चाहें कर सकते हैं, में शीतल शर्मा आपका परा साथ देगी..."
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RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण - by desiaks - 07-19-2021, 12:24 PM

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