RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
वसीम छत के कोने की तरफ जाकर नीचें रोड की तरफ देखने लगा। शीतल भी हिम्मत करती हुई उसके बगल में आकर खड़ी हो गई। वहीं हल्की-हल्की लाइट आ रही थी और उस हल्की लाइट में शीतल का सुनहला बदन चमक रहा था। वसीम को भी लगा की कहीं कोई देख ना लें। वा पीछे आ गया और फिर अपने गम को खोलने लगा। शीतल भी उसके पीछे आने लगी तो उसने मना कर दिया। उसने अपने रूम को खोला और लाइट औज कर दिया। लाइट वसीम के रूम के अंदर ओन हई थी लेकिन उसकी चमक में शीतल अपने जिश्म को चमकता हुआ देख रही थी।
वसीम अंदर से दो चंपर बाहर निकाल लिया और लाइट आफ करके रूम को बंद कर दिया। उसने चंगर को छत के बीच में लगा लिया और बैठ गया। उसने शीतल को अपने पास बुलाया तो शीतल उसके पास आकर गोद में बैठ गईं। एक चंपर खाली ही रहा और शीतल वसीम की गोद में बैठी हुई थी। शीतल वसीम के कंधे पे सिर रख दी थी और वसीम से चिपक गई थी। वसीम का हाथ शीतल की कमर पे था।
शीतल ने वसीम के गर्दन पे किस की और मादक आवाज में बोली- "अब तो आप खुश हैं ना वसीम, अब तो
आपको कोई तकलीफ नहीं है ना?"
वसीम शीतल के नंगी कमर और पीठ का सहलाता हुआ बोला- "तुम्हें पाकर कौन खुश नहीं होगा। तुम तो ऊपर बाले की नियामत हो जो मुझे मिली। मैं ऊपर वाले का, विकास का और तुम्हारा बहुत-बहुत शुकरगुजार हैं."
शीतल वसीम के जिश्म में और चिपकने की कोशिश करने लगी, और बोली- "मैं तो बहुत डर रही थी की पता नहीं मैं कर पाऊँगी या नहीं ठीक से? मैं आपका साथ तो दे पाई जा वसीम? आपका संतुष्ट कर पाई ना?"
।
वसीम भी शीतल को अपने जिश्म पे दबाता हुआ बोला- "तुमनें तो मुझे खुश कर दिया। तुमने बहुत बड़ा काम किया है मेरे लिए। मैं बहुत खुश हैं। आज का दिन मेरी जिंदगी का सबसे हसीन दिन है। लेकिन मैं डर भी रहा हूँ की वक़्त धीरे-धीरे फिसलता जा रहा है। चंद घंटे हैं मेरे पास, फिर तुम मेरी बाहों से गायब हो जाओंगी। फिर तुम मेरे लिए सपना हो जाओगी। फिर आज के बिताए इस हसीन लम्हों को याद करते हुए मुझे बाकी दिन गज..... होंगे...' बोलते हये वसीम शीतल के होठों को चूमने लगा और कस के उसे अपने में चिपकाने लगा, जैसे कोशिश कर रहा हो की उसे खुद में समा लें, कोशिश कर रहा हो की ये लम्हा यहीं रुक जाए।
शीतल की चूचियों वसीम के सीने में दब गई थीं। शीतल भी उसका भरपूर साथ दे रही थी। वो क्या कहती भला। उसे कुछ समझ में नहीं आया।
वसीम फिर बोलना स्टार्ट किया- "तुम लोगों ने मेरे लिए इतना किया, ये बहुत है। सबसे बड़ी बात है की तुम लोग मेरी फीलिंग को, मेरे दर्द को समझ पाये। नहीं तो अभी तक या तो मैं जेल में या फिर पागलखाने में होता। तुमने मेरा पूरा साथ दिया। खुद को पूरी तरह समर्पित कर दी मुझे। मैं खुश किश्मत हूँ की तुम जैसी हूर
का पा सका...
.
शीतल वसीम के जिस्म को सहला रही थी। उसे लगा की उसकी साड़ी उसके और वसीम के बीच में आ रही है। शीतल अपनी नजर उठाई और इधर-उधर देखी। पूरा घना अंधेरा था और ऐसा कोई नहीं था जो उन्हें देख सकें। शीतल अपनी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा दी और फिर से वसीम के जिस्म से चिपक गई। उसकी नंगी चूचियां वसीम के जिश्म से दब रही थी। वो वसीम के होंठ चूमने लगी।
शीतल बोली- "मुझे खुशी है की मेरी मेहनत कम आई। मैं आपको पसंद आई और खुद को पूरी तरह आपको साँप पाई। आप खुश हुए संतुष्ट हए यही बड़ी बात है मेरे लिए की मेरा जिश्म किसी के काम आ सका.."
वसीम बोला- "मैं तो ऊपर वाले का शुकर गुजार हैं की उन्होंने मुझे तुम्हें दिया। लेकिन एक अफसोस है की मैं विकास नहीं। अफसोस है की मेरे पास बस एक ही रात है। अफसोस है की बस इसी एक रात के सहारे मुझे सारी जिंदगी गुजारनी है। तुम तो दरिया का वो मीठा पानी हो जिसे इंसान जितना पिता जाए प्यास उतनी बढ़ती जाती है। लेकिन ये भी कम नहीं जो तुमने मुझे दिया..' वसीम गहरी सांस लेता हुआ ये बात बोला था।
शीतल ने वसीम की ओर देखा। वसीम का चेहरा शांत और उदास हो गया था। शीतल उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में पकड़ी और होंठ को चूमते हुए बोली- "आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? आपको को और तरसने की जरूरत नहीं है। आपको उदास रहने की जरुरत नहीं है। आप जब चाहे मुझे पा सकते हैं। मैं आपकी है पूरी तरह। सिर्फ आज की रात के लिए नहीं बल्कि हर रात के लिए..."
वसीम ऐसे हँसा जैसे किसी बच्चे में उसे कोई पुराजा चुटकुला सुनकर हँसाने की कोशिश की हो। बोला- "नहीं शीतल, तुम्हारी रात विकास के लिए है, तुम उसकी हो। वो तो बहुत भला इसाज है की अपनी इतनी हसीन बीवी का मुझे सौंप दिया..."
शीतल बोली- "हाँ, लेकिन इसका मतलब ये नहीं की आपको तरसने की जरूरत है। आप जब चाहेंगे में आपके लिए हाजिर हैं। अगर आप तरसते ही रहे, उदास हो रहे तो फिर मेरे और विकास के इतना करने का क्या फायदा?"
वसीम- “नहीं, विकास ने मुझे एक रात के लिए तुम्हें दिया है। मैं उसके साथ गलत नहीं करना चाहता.."
शीतल- "वो मेरा कम है। मैं उसे समझा लेंगी। लेकिन आपको तड़पने तरसने की जरूरत नहीं है। मैं आपको अपने जिश्म पै पूरा अधिकार दे चुकी हूँ। आप जब चाहे मुझं पा सकते हैं..."
वसीम फिर हल्का सा मुस्करा दिया, और बोला- "अच्छा। मेरे लिए इतना सब करोगी..."
शीतल- "हाँ... करूँगी। आपकी उदासी दूर करने के लिए कुछ भी करूँगी। तभी यहाँ बीच छत पे ऐसे अधनंगी बैठी हूँ आपकी गोद में..."
वसीम- "इसमें कोई बड़ी बात नहीं है। यहाँ तो अंधेरा है। यहाँ किसी के देखने के रिस्क नहीं है..."
शीतल- "अगर उजाला होता और आप बैठने बोलते तो भी बैठती। अब मैं आपको तड़पने नहीं दगी.."
वसीम- "अच्छा, जरा उस कोने में जाकर दिखाओ तो.."
शीतल एक पल का भी देर नहीं लगाई और वसीम की गोद से उठ गईं। वो अपने आँचल को ठीक करते हए अपने जिएम को टकी और छत्त के उस कोने में पहुँच गई जहाँ लाइट आ रही थी। शीतल इसलिए कान्फिडेंट थी की छत पे सीधी लाइट नहीं थी और कोई बाहर नहीं था। अगर कोई देखता भी तो उसे यही पता चलता की कोई छत में है, ये पता नहीं चलता की वो सिर्फ साड़ी में है या नंगी है।
शीतल बौड़ी के किनारे खड़े होकर बिंदास नीचे गोड पे और दूसरी तरफ देखने लगी। लाइट में उसका जिस्म साड़ी के अंदर से चमक रहा था। वा वसीम की तरफ वापस पलटी और फिर अपने आँचल का लहराती हुई इधर-उधर करने लगी। कभी वो आँचल को पूरा टक लेती तो कभी पूरा नीचे कर देती। फिर वो अपने आँचल को नीचे गिरा दी और नंगी चचियों को सहलाने दबाने लगी।
वसीम अपनी रंडी की रडी वाली हरकतें देख रहा था और मुश्कुरा रहा था। शीतल उसी तरह इशारे से वसीम को अपने पास बुलाई। जब तक वसीम उसके पास आया वो अपनी साड़ी की गौंठ खोल दी। साड़ी नीचे गिर पड़ी और शीतल छत पे नंगी खड़ी थी। क्तीम शीतल के नजदीक आया और उसका हाथ पकड़कर पीछे खींचने लगा। लेकिन शीतल वसीम से हाथ छुड़ाई और उसके सीने से लगती हुई उसके होंठ चूमने लगी। वसीम कुछ कहता या करता, शीतल वसीम के जिश्म से पूरी तरह चिपक गई थी और उसकी लगी को भी नीचे गिरा दी थी।
वसीम भी जज्बात में बहता हुआ शीतल को चूमने लगा, लेकिन तुरंत ही वो अलग हो गया। वसीम में शीतल को अंदर की तरफ खींचा और बोला- "हो गया, मैं समझ गया। अब चलो नीचे.."
शीतल ने अपनी साड़ी और लुंगी उठाई। वसीम अपनी लुंगी माँगने लगा की दो, चेपर अंदर करना है तो शीतल ने नहीं दी। वसीम ने बिना लाइट ओन किए दरवाजा खोला और चैयर अंदर रखकर दरवाजा बंद कर दिया। शीतल हँसने लगी की आप तो डरपोक हैं। वसीम नीचे चलने लगा और शीतल भी वसीम के साथ नंगी नीचे आ गई।
वसीम बेडरूम में आ गया और बैंड में लेट गया। शीतल भी आकर उसके बगल में लेट गई। वसीम सीधा लेंटा हुआ था और शीतल अपना एक पैर उसके पैर में रख दी, और उसकी तरफ करवट लेकर वसीम से सटकर सो गई और अपना हाथ उसकी छाती पे रख दी। शीतल की मुलायम चूचियां वसीम के जिश्म से चिपक रही थी। फिर शीतल हाथ नीचे लेजाकर वसीम के लण्ड को सहलाने लगी। लेकिन वसीम के लण्ड में जरा सी हरकत नहीं हुई। लण्ड अभी टाइट नहीं था तो पूरी तरह से ढीला भी नहीं था। शीतल उसमें चुदने की आस लगाये थी, लेकिन वसीम शीतल की प्यास एक ही रात में नहीं मिटाना चाहता था। वसीम शीतल को इस हालत में ला देना चाहता था जहाँ वो बीच बाजार में नंगी होने से भी मना ना करें और इसके लिए जरूरी था की उसकी प्यास बनी रहें। हालौकी शीतल इस हालत में आ चुकी थी लेकिन फिर भी अभी खेल पूरी तरह नहीं जीता था वसीम।
|