RE: Antarvasnax शीतल का समर्पण
शीतल जब नाश्ता ले जाने लगी तो वो सोची की पैटी भी पहनें रहकर क्या कर लेना है। वो पैटी भी उतार दी और उसे किचन के फर्श पे ही छोड़ दी और सिर्फ नाइटी में नाश्ता लेकर वसीम के पास आ गईं। पायला और चूड़ियों की आवाज सुनकर वसीम में सामने देखा तो उसे लगा की काई रामन देवी सामने आ रही है।
गंजी कपड़ा वाले नाइटी में शीतल के जिएम के कटाव साफ-साफ झलक रहे थे। नाइटी सामने से डीप-कट तो थी हो लेकिन अभी बा नहीं होने की वजह से सिर्फ क्लीवेज की लाइन दिख रही थी। चूचियां अपनी पूरी गोलाई में अलग-अलग दिख रही थी और निपाल के दाने बाहर झाँक रहे थे। नाइटी फिर पेट में सट गई थी और चूत तक जिस्म से सटा हुआ था। कमर और दोनों जांचं चलने पर जिश्म को सेक्सी आकर दे रही थीं। और इन सबके ऊपर उसका मैकप- बिंदी, काजल, लिपस्टिक और सिंदूर। हर कदम के साथ चड़ी और पायल छन-छन खन-खन करते हुए अपना काम कर रहे थे तो चूचियां खुशी में झूम रही थीं।
वसीम शीतल को देखता ही रह गया। सोचने लगा- "इस रडी को तो जितनी बार देखता हैं उतनी बार नई लगती है। हर बार लगता है की इसे बाहों में भर लें और चोदने लगें। क्या जिश्म है साली का... होगा भी क्यों नहीं, अभी 23 साल की तो है ही। तभी तो इतनी गर्मी है चूत में की रात में तीन बार चुदवाने के बाद भी अभी इसकी चूत फड़फड़ा रही है। कोई बात नहीं रंडी, अभी तो एक ही रात बीती है और अभी तो सिर्फ तीन बार चुदी हो। बस एक बार विकास को लाइन पे ले आऊँ किसी तरह, फिर तो बस मेरे लण्ड की ही सवारी करती रहोगी."
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शीतल जाते की प्लेट का डाइनिंग टेबल पे रख दी और वसीम को टेबल पे आने बाली, और खद किचन में जाने लगी। वसीम पीछे से शीतल के हश्न का दीदार करने लगा। पतली कमर के बाद चौड़ी गाण्ड और उससे चिपक कर नीचे गिरती हुई नाइटी। हर कदम के साथ उसके कूल्हे मटक रहे थे। वसीम को दिख गया की अभी पेंटी भी जिस्म पे नहीं है। वो अपने लण्ड को अइजस्ट करता हुआ डाइनिंग टेबल में जा बैठा, जहाँ कल रात वो नंगा बैठा था।
शीतल अपनी चूचियां उछलते हर किचन से पानी लेकर आई और टेबल पे रख दी। शीतल का मन था की बो अभी भी वसीम की गोद में बैठे, पैटी इसीलिए उतारकर आई थी वो। लेकिन वसीम ने कोई इंटरेस्ट नहीं दिखाया और चुपचाप सिर झुकाए नाश्ता करने लगा। शीतल थोड़ी देर वहीं खड़ी रही। अभी भी वो इतनी बोल्ड और इतनी बेशर्म नहीं बनी थी की खुलकर बातें कर पाए या पहल कर पाए। फिर वो किचेन में चली गई और वसीम के लिए गरमा गरम कचौड़ियां लाने लगी। एक-दो कचौरी और लेने के बाद उसने मना कर दिया। उसका नाश्ता खतम हो गया तो वो हाथ धोने उठा।
वाशबेसिन किचेन के दरवाजे के पास ही था। हाथ धोते वसीम की नजर शीतल की पैंटी में पड़ी। शीतल नाश्ता की थाली उठा रही थी, वो वसीम को पैटी की तरफ देखती देखी तो शर्मा गई। ऐसें नंगी होकर चुदवाना अलग बात है, और इस तरह काई पैटी देखें और उसकी हालत का अंदाजा लगाए में अलग बात है। शीतल थाली लेकर किचेन में आ गई और अपनी पैंटी को पैरों से साइड करके छुपाने की कोशिश करने लगी।
वसीम को हँसी आ गई।
शीतल और ज्यादा शर्मा गई, बोली- "क्या हुआ हँस क्यों रहे हैं?"
वसीम- "कुछ नहीं.." बोला और वो मुश्कुराता हुआ वापस सोफे पे आकर बैठ गया।
शीतल अपनी पैंटी को हाथ में उठा ली और वसीम के पास आकर इठलाते हुए बोली- "मुझे लगा की फिर आप कुछ करेंगे इसलिए उत्तार दी थी। इसमें हँसने वाली कौन सी बात थी?"
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वसीम कुछ नहीं बोला लेकिन मुश्कुराता रहा।
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