RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मैं मांगता हूं । सालो, एक तो जबरन मेरे घर में घुस आये हो और ऊपर से...”
“उस्ताद जी” - नौजवान आशापूर्ण स्वर में बोला - “एकाध इसके थोबड़े पर ही जमा दूं ? कम-से-कम इसकी कतरनी तो बंद हो जाएगी ।”
“कतरनी का क्या है, लमड़े ।” पहलवान दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला, “चलने दे ।”
“मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं” मैं बोला, “और तुम दोनों को गिरफ्तार कराता हूं ।”
“लो !” नौजवान बोला, “सुन लो ।”
“अगर” मैं बोला, तुम दोनों अपनी खैरियत चाहते हो तो...”
“'यानी कि” पहलवान ने मेरी वात काटी और बिना उत्तेजित पूर्ववत् सहज स्वर में बोला “अभी जहन्नुम रसीद होना चाहता है कुछ देर बाद भी नहीं ।”
फिर उसका रिवॉल्वर वाला हाथ सीधा हुआ और उसने बड़े निर्विकार भाव से रिवॉल्वर का कुत्ता खींचा ।
कुत्ता खींचा जाने की मामूली-सी आवाज गोली चलने से भी तीखी आवाज की तरह मेरे कानों में गूंजी ।
मेरे कस-बल निकल गये ।
मेरे मिजाज में आई वो तब्दीली पहलवान से छुपी न रही । “शाबाश ।” वो बोला ।
“क्या चाहते हो ?” मैं धीरे से बोला ।
“देखा !” पहलवान अपने नौजवान साथी से बोला, “खामखाह गले पड़ रहा था तू इसके, सब कुछ राजी-राजी तो कर रहा है । बेचारा खुद ही पूछ रहा है कि हम क्या चाहते हैं ?”
नौजवान कुछ न बोला ।
अब क्या हुआ, दही जम गई तेरे मुह में ! अबे, बता इसे हम क्या चाहते हैं ?”
“बिस्तर से निकल ।” नौजवान ने मुझे आदेश दिया - “कपड़े बदल । हमारे साथ चलने के लिए तैयार हो ।”
“कहां चलने के लिए तैयार होऊं ?” मैं सशंक स्वर में वोला ।
“उस्ताद जी, देख लो, ये फिर फालतू सवाल कर रहा है ।”
साफ जाहिर हो रहा था कि वह नौजवान मवाली मेरे से उलझने के लिए तड़प रहा था ।
“कहां फालतू सवाल कर रहा है !” पहलवान ने उसे मीठी झिड़की दी - “इतना वाजिब सवाल तो पूछ रहा है । आखिर इतना जानने का हक तो इसे पहुंचता ही है कि इसने कहां चलने के लिए तैयार होना है ।”
“लेकिन...”
“मैं बताता हूं इसे ।” पहलवान फिर मेरे से सम्बोधित हुआ- “भैय्ये, तू सीधे-सीधे कपड़े पहन ले । तूने किसी पार्टी या किसी जश्न के लिए तैयार नहीं होना इसलिए सज-धज की जरूरत नहीं । समझा !”
मैंने जवाब नहीं दिया ।
“तुझे हमने किसी के पास पहुंचाना है । जीता-जागता । सही-सलामत । बिना टूट-फूट के । सालम । तू हमारा साथ दे, भैय्ये । ज्यादा पसरेगा या हामिद को हड़कायेगा तो फिर तेरी सलामती और टूट-फूट की कोई गारंटी नहीं होगी ।जो कि मैं नहीं चाहता ।”
“क्यों नहीं चाहते ?”
“क्योंकि ठेके की एक अहम शर्त माल को ग्राहक के पास सही-सलामत पहुंचाना भी है ।”
“मैं माल हूं ?”
“हो । पचास हजार रूपये का । तुझे कुछ हो गया तो हमारा तो रोकड़ा निकल गया न अंटी से !”
“मैं पचास हजार रुपए का माल हूं ?”
“नकद ! चौकस ! सी.ओ.डी. ।”
“सी.ओ.डी. (कैश ऑन डिलीवरी)! ओहो ! तो पहलवान जी अंग्रेजी भी जानते हैं !”
“मैं नहीं जानता । वो आदमी जानता है जिसने तेरी डिलीवरी लेनी है । वो बार-बार सी.ओ.डी.-सी.ओ.डी. बोलता था, सो मैंने बोल दिया ।”
“हूं तो बात का हिन्दोस्तानी में तजुर्मा ये हुआ कि पचास हजार रुपये की कीमत की एवज में मुझे अगवा करके किसी तक सही-सलामत पहुंचाने के लिए किसी ने तुम्हारी खिदमत हासिल की है ।”
“वाह ! मरहबा ! तजुर्मा हिन्दोस्तानी में हो तो बात कितनी जल्दी और कितनी आसानी से समझ में आती है ।”
“है कौन वो आदमी ?”
“है कोई ग्राहक ।”
“वो ग्राहक मेरा करेगा क्या ?”
“करेगा तो वही जो हामिद करना चाहता है लेकिन वक्त आने पर करेगा ।”
“मुझे जहन्नुम रसीद !”
“हां ।”
“यानी कि मेरी मौत महज वक्त की बात है ।”
“हां । लेकिन वक्त का वक्फा मुख़्तसर करने की कोशिश न कर, भैव्ये । तू बाज न आया और यहीं मर गया तो हमारे तो पचास हजार रुपए तो गए न महंगाई के जमाने में ! इसलिए नेकबख्त बनकर हमारे काम आ और तैयार होकर हमारे साथ चल । अल्लाह तुझे इसका अज्र देगा । चल खड़ा हो । शाबाश !”
मैं बिस्तर से निकला और बैडरूम से सम्बद्ध बाथरूम के दरवाजे की ओर बढ़ा ।
“कहां जा रहा है ? “ पहलवान तीखे स्वर में बोला ।
“बाथरूम ।” मैं बोला, “नहाने ।”
“पागल हुआ है ये कोई वक्त है नहाने का ! सीधे-सीधे कपड़े बदल और चल ।”
“कम से कम मुंह तो धो लूं ।”
“अरे, शेरों के मुंह किसने धोए हैं ! “
“ये अंग्रेज की औलाद” नौजवान हामिद भुनभुनाया, “समझ रहा है कि जहां इसे ले जाया जा रहा है, वहां मेमें इसका मुंह चाटने वाली हैं ।”
“हामिद !” पहलवान ने मीठी झिड़की दी, “चुप रह । नहीं तो पिट जाएगा ।”
हामिद ने यूं होंठ भींचे जैसे संदूक का ढक्कन वन्द किया हो ।
“अरे, खड़ा है अभी तक !” पहलवान हैरानी जताता हुआ मेरे से संबोधित हुआ, “बदल नहीं चुका अभी तक कपड़े ! तैयार नहीं हुआ अभी !”
मेरी राय में आदमी की जैसी जात औकात हो, वैसा ही उसका मिजाज होना चाहिए । पहलवान की शहद में लिपटी जुबान मुझे बहुत विचलित कर रही थी । वो गब्बर सिंह की तरह गरज बरस रहा होता तो आपके खादिम ने उससे कम खौफ खाया होता लेकिन वहां तो शहद मुझे घातक विष का गिलास मालूम हो रहा था इसलिए अपिका खादिम मन ही मन कहीं ज्यादा भयभीत था ।
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