RE: Desi Chudai Kahani मकसद
लेखराज मदान खुद कभी एक निहायत मामूली आदमी था, जो पांच रुपए रोजाना की दिहाड़ी के बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन वर्कर की हकीर औकात से उठकर बिल्डिंग कांट्रेक्टर और प्रोपर्टी डीलर बना था लेकिन इस हकीकत से दिल्ली शहर में हर कोई वाकिफ था कि उसका असली धंधा शराब की स्मगलिंग और प्रोस्टीच्युशन था । अपने स्याह सफेद धंधों से उसने बेशुमार दौलत पीटी थी, लेकिन पिछले दिनों वो खामख्वाह ही सरकारी कोप का भाजन बन गया था जिसकी वजह से उसका सितारा एकाएक गर्दिश में आ गया था । इनकम टैक्स डिपार्टमंट की, पुलिस के एन्टी करप्शन स्क्वाड की और दिल्ली की म्यूनिसिपल काँरपोरेशन की उस पर कुछ ऐसी सामूहिक नजरेइनायत हुई थी कि उसके जरायमपेशा निजाम की बुनियादें हिल गई थीं । उसी संदर्भ में उसका नाम अखबार वालों ने खूब उछाला था और तभी मैंने हबीब बकरे की बाबत जाना था जो कि गैर कानूनी तामीर के एक केस के सिलसिले में लेखराज मदान के साथ गिरफ्तार हुआ था और साथ जमानत पर छूटा था ।
अखबारों से ही मैंने जाना था कि लेखराज मदान का उससे उम्र में कोई बीस-बाइस साल छोटा एक भाई था जो वैसे तो मदान के हर स्याह धधे में शरीक था लेकिन प्रत्यक्षत राजेंद्रा प्लेस में एक नाइट क्लब चलाता था ।उस छोटे भाई का नाम मैंने अखबारों में अक्सर पढ़ा था लेकिन भूल गया था और उसकी तस्वीर कभी किसी खबर के साथ छपी नहीं थी । बड़े खलीफा के दर्शन का इत्तफाक तो एक-दो बार यूअर्स-ट्रूली को हो चुका था, लेकिन छोटे खलीफा की सूरत मैंने कभी नहीं देखी थी ।
कार एकाएक मोतीबाग की एक सुनसान अंधेरी इमारत के सामने पहुंचकर रुकी ।
हामिद ने कार से उतरकर उस अंधेरी इमारत का फाटक खोला और फिर भीतर दाखिल होकर फाटक के एन सामने मौजूद गैरेज का दरवाजा खोला !
और एक मिनट बाद कार गैरेज में थी और गैरेज का दरवाजा और बाहरी फाटक दोनों बंद हो चुके थे ।
हम तीनों कार से बाहर निकले । हामिद ने एक विजली का स्विच ऑन किया तो वहां छत में लगा एक बीमार सा धुंधलाया सा, बल्ब जल उठा । उसकी रोशनी में मुझे गैरेज की पिछली दीवार में बना एक बंद दरवाजा दिखाई दिया । हामिद ने वो दरवाजा खोला और फिर हम तीनों ने उसके भीतर कदम रखा । बाहर से ही प्रतिबिंबित होती निहायत नाकाफी रोशनी में मैंने स्वयं को एक बैडरूम की तरह सजे कमरे में पाया । बैडरूम की एक दीवार में दो बड़ी-बड़ी खिड़कियां थीं जो बाहर सड़क की ओर खुलती थीं । हामिद ने पहले गैरेज की ओर का दरवाजा बन्द किया और फिर उस दरवाजे पर और दोनों खिड़कियों पर बड़े यत्न से मोटे-मोटे पर्दे खींचे । तब कहीं जाकर उसने वहां की ट्यूब जलाई तो कमरे में जगमग हुई ।
हबीब बकरा एक कुर्सी में ढेर हो गया । अपनी रिवॉल्वर निकालकर उसने अपनी गोद में रख ली और फिर जेब से एक तंबाकू की पुड़िया निकाली । पुड़िया में से कुछ तंबाकू उसने अपने मुंह में ट्रांसफर किया और फिर चेहरे पर एक अजीब-सी तृप्ति के भाव लिए गाय की तरह जुगाली-सी करने लगा ।
फिर उसने हामिद को कोई गुप्त इशारा किया जिसके जवाब में हामिद ने वहीं से एक नायलॉन की डोरी बरामद की और उसकी सहायता से मेरे हाथ-पांव बांध दिये । अन्त में उसने मुझे पलंग पर धकेल दिया ।
“भैय्ये” हबीब बकरा मीठे स्वर में बोला, “बस थोड़ी देर की ही तकलीफ समझना ।”
“बड़ा ख्याल है तुम्हें मेरा !” मैं व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला ।
“तू तो खफा हो रहा है ।”
“बिल्कुल भी नहीं । मैं तो खुशी से फूला नहीं समा रहा । दिल कथकली नाचने को कर रहा है । झूम-झूमकर गाने की ख्वाइश हो रही है ।”
“दूसरा काम न करना । वरना तेरा मुंह भी बन्द करना पड़ेगा ।”
मैं खामोश रहा ।
बकरा कुछ क्षण मशीनी अंदाज से जबड़ा चलाता रहा । फिर उसने हामिद को टेलीफोन करीब लाने का इशारा किया । हामिद ने फोन को मेज पर से उठाकर उसके करीब एक स्टूल पर रख दिया ।
“चाय बना ला ।” हबीब बकरा बोला ।
हामिद सहमति में सिर हिलाता हुआ वहां से बाहर निकल गया ।
हबीब बकरे ने एक नंबर मिलाया और फिर दूसरी ओर से जवाब मिलने की प्रतीक्षा करूने लगा । वो इयरपीस को पूरा तरह से अपने कान के साथ जोडे हुए नहीं था । इसलिए जब दूसरी ओर से कोई बोला तो कमरे के स्तब्ध वातावरण में उसकी आवाज मुझे साफ सुनाई दी ।
“हां । कौन है भई !”
लेखराज मदान की आवाज मैंने साफ पहचानी ।
|