RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“ये बढ़िया है । जो मैं कहूं उसी को तू तोते की तरह रट दे । यूं ही रात बीत जाएगी, फिर दिन में कोई नया खेल खेलेंगे । ठीक है !”
वो खामोश रहा ।
“साले मैं अगवा की कहानी पूछ रहा हूं । क्यों किया मेरा अगवा । क्यों जरूरी है मेरा मदान के छोटे भाई के घर ग्यारह वजे पहुंचाया जाना? ये कहानी बोल । समझा ?”
“मुझे कुछ नहीं मालूम ।”
“क्या !” मैं आंखें निकालकर वोला ।
“भैय्ये मैं सच कह रहा हूं । पचास हजार की फीस के बदले में मुझे एक काम सौंपा गया था जो कि मैं कर रहा था ।”
“मुझे अगवा करके आगे डिलीवर करने का काम ?”
“हां ।”
“इतने से काम की फीस पचास हजार रुपए ?”
“ज्यादा नहीं है । इस फीस में एक कत्ल भी शामिल था ।”
“हामिद का ?”
“हां ।”
“तू अपने शागिर्द का कत्ल करता!”
“वो मेरा कुछ नहीं । वो महज भाड़े का टट्टू था जो इस उम्मीद में उछल-उछलकर मेरा साथ दे रहा था कि फीस में उसकी पचास फीसदी की शिरकत थी ।”
“जबकि ऐसी फीस उसे देने का तेरा कोई इरादा नहीं था ।”
“मुर्दे” उसके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कराहट आई, “कहीं फीस वसूल करते हैं !”
“मदान ने भी ऐन यही सोचा होगा पचास हजार रुपए की फीस मुकर्रर करते हुए ।”
“क्या ?”
“यही मुर्दे कहीं फीस वसूल करते हैं !”
वो चौंका । उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव आए ।
“मदान साहब” फिर वह धीरे-से बोला, “मेरे साथ यूं पेश नहीं आ सकते ।”
“क्यों? तू आसमान से उतरा है ? तू उसका सगेवाला है ?”
“मैंने उनकी बहुत खिदमत की है ।”
“फीस लेकर । फोकट में भी की हो तो बोल ।”
वो खामोश रहा । उसके चेहरे पर चिंता के भाव गहराने लगे ।
“अब अगवा की कहानी बोल ।”
“मुझे कुछ नहीं मालूम ।”
“अपने अंजाम से बेखबर तो होगा नहीं तू !”
“तू मेरा भी खून करेगा ?”
“खून खराबा मेरा काम नहीं ।”
“ये तब कह रहा है जबकि अभी पांच मिनट पहले एक खून करके हटा है ।”
“बक मत । मैंने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई थी ।”
“वो क्या होता है ?”
“आत्मरक्षा । अपनी जान बचाने के लिए गोली चलाई थी मैंने हामिद पर । विल्कुल अनपढ़ है ?”
“खून नहीं करेगा तो क्या करेगा मेरा ?”
“मैं तुझे पुलिस के हवाले करूंगा ।”
“क्यों ? मैंने क्या किया है ! खून-खच्चर तो तूने फैलाया है ।”
“साले ! मेरा अगवा नहीं किया ? जानता नहीं आई पी सी में कितनी सजा है अगवा की ?”
”हें.. हें .. हें । तू कोई औरत है ! तुझे कोई जबर-जिना का खतरा था ! तेरी कोई इज्जत लुट रही थी !”
“साले, मसखरी करता है !”
“मौजूदा हालात में पुलिस को यकीन दिला लेगा कि तेरा अगवा हुआ है ।”
“क्या हुआ है हालात को ?”
“तुझे नहीं पता ? भीतर एक लाश पड़ी है जिसे लाश तूने बनाया है । मैं बंधा हुआ हूं । तू आजाद है । फिर भी तेरा अगवा हुआ है । हा हा हा ।”
मेरा खून खौल उठा । रिवॉल्वर की नाल की एक भरपूर दस्तक मैंने उसके नाक पर दी । वो पीड़ा से बिलबिला उठा । वैसे ही मैंने उसके कत्थई दांत खटखटाए, उसकी खोपड़ी ठकठकाई ।
“अल्लाह !” वो कराहता हुआ बोला, “अल्लाह !”
“मार के आगे भूत भागते हैं ।” मैं क्रूर स्वर में बोला, “पलस्तर उधेड़ दूंगा मार-मार के ।”
“भैय्ये तू नाहक मेरे पर जुल्म ढा रहा है । अल्लाह कसम, मुझे कुछ नहीं मालूम । मैंने लेना क्या था मालूम करके ! एक काम मिला । मैंने कर दिया । उसकी गहराई में जाने की मुझे क्या जरूरत है ?”
“हां । अब सुर में बोला है ।”
वो खामोश रहा ।
“सिगरेट पिएगा ?”
“फंकी लगाऊंगा ।”
मैंने उसकी जेब से तंबाकू की पुड़िया बरामद की और उसमें से कुछ तंबाकू उसके खुले मुंह में टपकाया । खुद मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“तो वाकई तुझे नहीं मालूम” मैं बोला “कि मेरे अगवा की क्या जरूरत आन पड़ी थी ?”
“नहीं मालूम ।” वो पुरजोर ढंग से इनकार में सिर हिलाता हुआ वोला, “कसम उठवा लो ।”
“हाल कैसा है आजकल तेरे बाप का ? कारोबार कैसा चल रहा है ?”
“हाल खराब है । कारोबार मंदा है ।”
“अच्छा ! ऐसा क्यों ?”
“कई पंगों में फंसा हुआ है, मदान साहब ! मुख्तलिफ किस्म के दबाव हैं उस पर जिन्हें वो झेल नहीं पा रहा ।”
“इतने बड़े दादा की बाबत ये बात कह रहा है ?”
वो खामोश रहा ।
“जवाब दे !”
उसने तंबाकू में रची-बसी थूक की एक पिचकारी परे दीवार की ओर फेंकी और फिर धीरे-से बोला, “मदान के वारे में क्या जानता है ?”
“खास कुछ नहीं ।”
“तभी तो । खास कुछ जानता होता तो मुझे मालूम होता कि वो बड़ा दादा नहीं खुशकिस्मत दादा है ! उसकी ताकत, मेहनत या सूझ ने नहीं, उसकी तकदीर ने उसे कुछ खास बुलंदियों तक पहुंचाया था और अब उसकी तकदीर ही उसको दगा दे रही है । और तकदीर पर भैय्ये कहां जोर चलता है किसी का वो सिर्फ दिल्ली का दादा है, उन बड़े दादाओं के सामने उसकी क्या औकात है जो सारे हिन्दोस्तान पर बल्कि सारे एशिया पर छाए हुए हैं ।”
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