RE: Desi Chudai Kahani मकसद
लंबा कद । छरहरा बदन । तनी हुई सुडौल भूरपूर छातियां जो अंगिया के सहारे की कतई मोहताज नहीं थीं और अगर खाकसार की निगाहबीनी गलत नहीं थी तो अपने रेशमी गाउन के नीचे अंगिया वो पहने भी नहीं हुई थी । गोरे चिट्टे हाथ-पांव । खूबसूरत नयन-नक्श । पतली कमर । भारी नितंब । सरू सा लंबा कद । सुराहीदार गर्दन । रेशम से मुलायम सुनहरी रंगत लिये भूरे बाल। हुस्न की दौलत से मालामाल होने के अभिमान से दमकता चेहरा । कोई खराबी थी तो वो ये कि वो इतने शानदार जिस्म को लिबास से ढके हुए थी ।
उस घड़ी मैं फैसला नहीं कर पा रहा था कि उस मुजस्सम हुस्न की शान में मेरे मुंह से आह निकलनी चाहिये थी या वाह !
या शायद कराह !
“हो गया ?” वो अपने सुडौल मोतियों जैसे दांत चमकाती हुई उसी खनकती आवाज में बोली जो कुछ क्षण पहले मैंने बंद दरवाजे के पार से सुनी थी ।”
“क्या ?” मैं हड़बड़ाकर बोला ।
“ब्रेकफास्ट ।”
“जी !”
“आंखों ही आंखों में हज्म तो कर रहे हो मुझे ।”
“ओह ! खाकसार आपकी पैनी निगाह की दाद देता है और कबूल करता है कि ये गुनहगार आंखें उसी काम को अंजाम दे रही थीं जिसका कि आपने जिक्र किया ।”
“ब्रेकफास्ट का !” वो अपने दांतों से अपना निचला होंठ चुभलाती हुई तनिक कुटिल स्वर में बोली ।
“जी हां ।”
“पेट भर गया ?”
“पेट तो भर गया लेकिन नीयत नहीं भरी । अब बंदा ब्रेकफास्ट के फौरन बाद, हाथ के हाथ लंच और डिनर का भी तमन्नाई है ।”
“इतना खाना इकट्ठा खाओगे तो बदहजमी हो जाएगी ।”
“तो क्या होगा ?”
“मर जाओगे ।”
“तो क्या बुरा होगा ! खाली पेट मरने से तो ऐसी मौत बेहतर ही होगी ।”
“खुशबू का लुत्फ उठाओ और जायके के ख्वाब लो ।” वो अपना एक नाजुक हाथ चौखट से हटाकर अपने कूल्हे के खम पर टिकाती हुई बोली, “तुम्हारी किस्मत में बस इतना ही लिखा है ।”
“हू नोज, मैडम ! मर्द की किस्मत को तो देवता नहीं जान पाते ।”
वो हंसी और फिर बोली, “नाम क्या बताया था तुमने अपना ?”
“सुधीर कोहली” मैं तनिक सिर नवाकर बोला, “दि ओनली वन ।”
“कोई टॉप के हरामी मालूम होते हो ।”
“दोनों बातें दुरुस्त । हरामी भी हूं और टॉप का भी । आम, मामूली हरामियों से तो यह शहर भरा पड़ा है । टॉप का हरामी एक ही है राजधानी में और आसपास चालीस कोस तक । सुधीर कोहली । दि ओनली वन ।”
“बातें बढिया करते हो ।”
“और भी कई काम बढ़िया करता हूं । कभी आजमाकर देखिए ।”
“देखेंगे” एकाएक वह चौखट पर से हटी, “कम इन एंड सिट डाउन । साहब आते हैं ।”
“थैंक्यू ।” मैंने भीतर कदम रखा तो उसने मेरे पीछे अपार्टमेंटं के इकलौते प्रवेशद्वार को मजबूती से बंद कर दिया । बड़े ऐश्वर्यशाली ढंग से सुसज्जित ड्राइंगरूम की ओर मेरे लिए हाथ लहराती हुई वो पिछवाड़े का एक दरवाजा खोलकर मेरी निगाहों से ओझल हो गई ।
मैंने बैठने का उपक्रम न किया मैंने डनहिल का एक सिगरेट सुलगा लिया और मन ही मन उसके नंगे जिस्म की कल्पना करते हुए मदान की प्रतीक्षा करने लगा ।
मैं नया सिगरेट सुलगा रहा था जबकि मदान ने वहां कदम रखा ।
मदान एक लाल भभूका चेहरे वाला विशालकाय व्यक्ति था । उसके तीन-चौथाई बाल सफेद थे, कनपटी पर लंबी सफेद कलमें थीं लेकिन दाढ़ी-मूंछ सफाचट थीं । उसकी आंखों के लाल डोरे, आंखो के नीचे थैलियों की तरह लटकती खाल और खमीरे की तरह फूला हुआ अति विशाल पेट उसके दारू-कुकड़ी का भारी रसिया होने की चुगली कर रहा था । वो एक तम्बू जैसा महरून कलर का ड्रेसिंग गाउन पहने था ।
उस घड़ी में उस पहाड़ जैसे जिस्म के नीचे उस नाजुक बदन हसीना की कल्पना - बदमजा कल्पना किये बिना न रह सका जो अभी-अभी वहां बिजली की तरह चमक के गई थी ।
मैंने कभी एक मेंढक की कहानी पढ़ी थी जो शहजादी द्वारा चूमे जाने पर खूबसूरत नौजवान बन गया था । मदान उस घड़ी मुझे एक ऐसे विशालकाय मेंढक जैसा लगा जिस पर शहजादी के चुंबन का भी कोई असर नहीं हुआ था ।
वो मेरे से बगलगीर होकर मिला ।
मुझे बहुत हैरानी हुई ।
|