RE: Desi Chudai Kahani मकसद
मुझे इस खौफ ने फौरन अलग हो जाने के लिए प्रेरित किया कि कहीं मैं उसकी बगल में ही न समा जाऊं ।
“कोल्ली !” वो फटे बांस जैसी आवाज में बोला, “तेरा इस घड़ी यहां मेरे सामने मौजूद होना ही साबित करता है कि मेरे पहलवान और उसके शागिर्द की सीटी वज्ज गई ।”
“दुरुस्त ।” मैं सरल स्वर में बोला ।
“कैसा है अपना हबीब बकरा ?”
“जिन्दा है ।”
“शागिर्द ?”
“मर गया ।”
“कहां ?”
“मोतीबाग वाली इमारत में ।”
“पहलवान भी वहीं है ?”
“नहीं ।”
“वो कहां है ?”
“मेरे कब्जे में ।”
मैंनै सिगरेट का लंबा कश लगाया ।
“यानी कि बताना नहीं चात्ता ।”
“जाहिर है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो अगवा का अपराधी है । अगबा एक संगीन जुर्म है । उस संगीन जुर्म की गंभीरता को कम करने के लिए और हो सके तो सजा से बचने के लिए उसे बताना होगा कि ऐसा उसने किसके कहने पर किया था ।”
“वो मेरा नाम लेगा ?”
“यकीनन लेगा । नहीं लेगा तो मैं उसकी ऐसी दुक्की पीपीटूंगा कि उसकी आत्मा त्राहि-त्राहि कर उठेगी । सारी पहलवानी भूल जाएगा ।”
“कोल्ली ! तू मुझे फंसायेगा ?”
“जिसकी करतूत होगी, वो ही भुगतेगा ।”
“कोल्ली ! तू मेरा पंजाबी भ्रा...”
“अच्छा ।”
“मेरा पंजाबी भ्रा हो के तू मेरे साथ ऐसा..”
“कुत्ते का कुत्ता बैरी ।”
“तभी इतना भौंक रहा है !”
“अभी तो काटूंगा भी ।”
“तू मुझे काटेगा !”
“जब चलकर यहां आया हूं तो कुछ तो करूंगा ही ।”
“वहम है तेरा, कोल्ली पुत्तर ।”
“क्या ?”
“कि तू यहां आ के कुछ कर लेगा । गलती की तूने यहां आ के ।”
“अच्छा !”
“हां आ तो गया । अब जाएगा कैसे ?”
“'वैसे ही जैसे आ गया हूं ।क्या मुश्किल है ?”
उसके चेहरे पर उलझन के भाव आए । उसने घूरकर मुझे देखा ।
“मदान दादा, मैंने एक पूर्वनिर्धारित वक्त पर कहीं वापस पहुंचना है । जीता-जागता । सही-सलामत न पहुंचा तो मेरे साथी तुम्हारे पहलवान को सीधे पुलिस कमिश्नर के पास ले के जाएंगे जहां वो गा गाकर बता रहा होगा कि कैसे उसने तुम्हारे हुक्म पर मेरा अगवा किया था । पुलिस बहुत खुश होगी तुम्हारी गर्दन नापने का मौका पाकर ।”
“यार, तू तो खफा हो रहा है ।”
“नहीं मैं तो खुशी से पागल हुआ जा रहा हूं । मेरी नन्हीं सी जान इतने बड़े दादा के किसी काम आए, इससे ज्यादा खुशी की बात और मेरे लिए क्या हो सकती है !”
”विल्कुल ।”
मैंनै हकबका कर उसकी तरफ देखा ।
“क्या बिल्कुल ?” मैं बोला ।
“तेरी जान मेरे कम्म आए । इसीलिए तो पहलवान को तेरे पास भेजा था ।”
“क्या किस्सा है, मदान दादा ? “
“किस्सा जानना चात्ता है ?”
“तड़प रहा हूं जानने के लिए तभी तो सुबह-सवेरे यहां आया हूं ।”
|