RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“सिगरेट कौनसी पीता है ?”
मैंने उसे डनहिल का पैकेट दिखाया ।
“एक मुझे दे ।”
मैंने उसे सिगरेट दिया और लाइटर से उसे सुलगाया ।
उसने बड़े तजुर्बेकार अंदाज से सिगरेट का लंबा कश लगाया और नथुनी से धुंए की दोनाली छोड़ी ।
“बैठ ।” वो बोला ।
“ऐसे ही ठीक है ।” मैं शुष्क स्वर में बोला ।
“ओए, बै जा मा सदके । क्यों इतना खफा हो रहा है ?” उसने बांह पकडकर जबरन मुझे एक सोफे पर बिठाया और स्वयं भी मेरे सामने बैठ गया ।
“थुक दे गुस्सा ।” वह बोला ।
“क्या कहने । तुम मेरी जान के पीछे पड़े हो और मैं एतराज भी न करूं ।”
“ओए कोल्ली पुत्तर । ओए मा सदके, मेरी तेरे से कोई जाती अदावत थोड़े ही है ।”
“जाती अदावत नहीं है” मैंने व्यंगपूर्ण स्वर में दोहराया, “फिर भी मेरी जान के पीछे पड़े हो क्योकि गाहे-बगाहे अपने किसी पंजाबी भाई की जान न लो तो तुम्हारी जान में जान नहीं आती ।”
“यारा, तू तो फिर खफा हो रहा है ।”
मैंने भुनभुनाते हुए सिगरेट का लंबा कश लगाया ।
“देख ।” उसने मुझे समझाया, “सुन । ईद पर बकरा काटते हैं कि कि नहीं ? काटते हैं न ? क्यों काटते हैं ? कुर्बान करना होता है उसे । ऐसा करने वाले की बकरे से कोई जाती अदावत होती है ? बोल होती है ?”
“मैं कुर्बानी का बकरा नहीं ।”
“नहीं है l मुझे मालूम है । तू तो मेरा पंजाबी भ्रा है । अब फिर मत कह देना कुत्ते का कुत्ता बैरी ।” वो हा हा करके हंसा, “वीर मेरे मैने तो एक मिसाल दी थी ।”
“मिसाल छोड़ो । मिसालें सुबह-सवेरे मेरी समझ में नहीं आतीं । असली बात कर ।”
“वो भी करते हैं । चा पिएगा ?” फिर मेरे हां या न करने से पहले ही उसने उच्च स्वर में आवाज लगाई, “मधु ।”
वही परीचेहरा हसीना वहां प्रकट हुई ।
“ये मेरी बीवी है । मधु ।”
मैंने सिर नवाकर शहद से कहीं मीठी मधु का अभिवादन किया ।
वो बड़े मशीनीअंदाज से मुस्कराई ।
“ये अपना कोल्ली है ।” वो मधु से बोला, “सुधीर कोल्ली । जसूस है । प्राइवट किस्म का बहुत बड़ी-बड़ी जसुसियां कर चुका है । सारी दिल्ली में मशहूर है । अपना पंजाबी भ्रा है । चा पिला इसे ।”
मधु सहमति में सिर हिलाती हुई वहां से चली गई ।
“कैसी है ?” मदान ने सगर्व पूछा ।
“शानदार ।” मेरे मुंह से अपने आप निकल गया, “तौबाशिकन ।”
“मेरा माल है । सालम । कोल्ली” उसके स्वर में चेतावनी का पुट आ गया, “नीयत मैली नहीं करनी ।”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । मुझे क्या दिखाई नहीं देता कि हूर की रखवाली के लिए कितना बड़ा लंगूर बैठा है ।”
“क्या !”
“कुछ नहीं ।” मैं एक क्षण ठिठका और बोला, “वैसे एक बात मैं फिर भी कहना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“मेरी राय में खूबसूरत औरत का दर्जा ताजमहल जैसा होता है । उसकी खूबसूरती का आनन्द लेने का हक हर किसी को होना चाहिए । पति नाम का कोई सांप उसका मालिक बनकर उसकी छाती पर जमकर बैठ जाए, यह मुनासिब बात नहीं ।”
“पागल हुआ है ?” उसने तत्काल एतराज किया, “बेवकूफ बनाता है ! गुमराह करता है । अरे, मेरा माल, मेरा माल है । मेरे माल पर कोई दूसरा कैसे काबिज हो सकता है ?”
“सोशलिज्म में मेरा-मेरा नहीं किया जाता ।”
“बातें जितनी मर्जी बना ले । आखिर पढ़ा-लिखा है लेकिन याद रखना । नीयत मैली नहीं करनी ।”
“बिल्कुल नहीं करनी ।”
कहना आसान था । हकीकतन इतनी शानदार औरत को देखकर जिसकी नीयत मैली न ही वो या हिजड़ा होगा या नपुंसक ।
अप्सरा चाय की ट्रे के साथ वहां पहुंची और हमारे सामने बैठकर चाय बनाने लगी । जितनी देर वो वहां रुकी, उतनी देर मैं अपलक उसे देखता रहा और मदान अपलक मुझे देखता रहा ।
तभी तो कहते हैं कि खूबसूरत औरत के पति की एक जोड़ी आंखें पीठ पीछे भी होनी चाहिए ।
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