RE: Desi Chudai Kahani मकसद
उसने चाय हम दोनों को सर्व की और फिर ट्रे में रखी एक डिबिया उठाकर अपने पति को सौंपी ।
“क्या है ?” मदान बोला ।
“देखो ।” वो बोली ।
उसने डिबिया को खोला । भीतर मेरी भी निगाह पड़ी । भीतर हीरों से जड़े दो टोप्स जगमगा रहे थे । सात-सात हीरे । एक मिडल में और छ: उसके गिर्द दायरे की शक्ल में । लेकिन एक में से एक हीरे की जगह खाली थी । जहां हीरा होना चाहिए था वहां खाली छेद दिखाई दे रहा था ।
“एक हीरा निकल के गिर गया है ।” वो बड़े अधिकारपूर्ण स्वर में बोली, “लगवा के दो ।”
“कैसे गिर गया ?” मदान बोला ।
“क्या पता कैसे गिर गया !” वो झुंझलाई, “ढीला पड़ गया होगा ।”
“ढूंढ ले । यहीं कहीं होगा ।”
“ढूंढ लिया । नहीं है । नया लगवा के दो ।”
“आज ही ?”
“अभी । मैंने पहनने हैं । आज नहीं लगता तो नए टोप्स ला के दो ।”
“ठीक है, ठीक है । आज ही लग जाएगा हीरा लेकिन दोनों क्यों दे रही है ? वो ही दे जिसमें हीरा लगना है ।”
“सारे चेक करने हैं । कोई और भी लूज हो सकता है ।”
“अच्छा !”
वो उठकर चला गई ।
“चा पी, कोल्ली ।” मदान फिर मेरी तरफ आकर्षित हुआ ।
मैंने चाय की एक चुस्की ली और बोला, “तुम्हारा भाई मेरा इंतजार कर रहा होगा ।”
“क्या ?” वह सकपकाया ।
“ग्यारह बजे । अपनी कोठी पर । मैटकाफ रोड । दस नम्बर । भूल गए !”
“ओह ! तो सब कुछ बक दिया हमारे पहलवान ने ।”
“सिवाए इसके कि असल किस्सा क्या है । असल किस्सा, मदान दादा, जिसको सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं ।”
“यार, तू मुझे दादा क्यों कहता है मैं तेरे से इतना बड़ा थोड़े ही हूं ! कुछ कहना ही है कोई चाचा, ताया, मामा कह ले ।”
“मैंने तुम्हें दादा अपने से तुम्हारी कोई रिश्तेदारी जोड़ने के लिए नहीं कहा, बल्कि तुम्हारा दर्जा, तुम्हारा समाजी रुतबा बयान करने लिए कहा ।”
“एक बात माननी पड़ेगी, कोल्ली । एक नम्बर का हरामी है तू ।”
“शक्रिया ।” मैं तनिक सिर नवाकर बोला, “अब मेरी तारीफ के साथ-साथ अगर असली किस्से का भी जिक्र हो जाए तो...”
“मैं कपडे बदल के आता हूं ।” एकाएक वह उठ खड़ा हुआ, “वो जिक्र मेटकाफ रोड के रास्ते में करेंगे ।”
“मेरा वहां क्या काम ?”
“है काम । चलेगा तो पता चल जाएगा ।”
फिर मेरे और कुछ कह पाने से पहले ही वो वहां से उठकर चल दिया ।
मैंने एक नया सिगरेट सुलगा लिया और सिगरेट और चाय चुसकते हुए उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा ।
***
मैं मदान के साथ उसकी मर्सिडीज में सवार था जिसे कि वो खुद ड्राइव कर रहा था । मर्सिडीज पुरानी थी लेकिन थी तो मर्सिडीज ही । हाथी बूढा भी हो तो कुत्ते बिल्लियों से कमजोर नहीं हो जाता ।
उस वक्त वो सूट रहने हुए था और आकार में और भी पसरा हुआ लग रहा था । सच पूछिए तो ऐसा विशालकाय आदमी किसी मर्सिडीज जैसी कार में ही समा सकता था ।
अपने घर से निकलते ही पहले वो कनाट प्लेस मेहरासंस की दुकान पर गया था जोकि उस वक्त अभी खुल ही रही थी और जहां उसने बीवी के टॉप्स जमा कराये थे ।
उस वक्त कार सिकंदरा रोड पर दौड़ी जा रही थी ।
तिलक ब्रिज के नीचे से से गुजरकर कार आई टी ओ के चौराहे पर पहुंची । वहां से वह दाएं घूमी और पुलिस हैडक्वार्टर के जेरेसाया आगे बढ़ी ।
“कोल्ली” एकाएक वह बड़ी संजीदगी से बोला, “अजीब निजाम है इस मुल्क का । यहां अंडरवर्ल्ड के बॉस लोगों से भिड़ना आसान है, यहां कायदे कानून की मुहाफिज पुलिस से निपटना तो भौत ही आसान है लेकिन सरकारो बाउ से निपटना बड़ा मुश्किल है । ये इनकम टैक्स और कमेटी के महकमें के बाउ लोग हैं जिन्होंने आजकल मेरी बजाई हुई है । कमेटी वालों ने लाखों रुपयों की मेरे से रिश्वत खाई, फिर भी मेरी आठमंजिला इमारत गिरवा दी, हाईकोर्ट के स्टे तक की परवाह नहीं की । स्टे दिखाया तो उसे देखने की जगह मुझे पकड़कर हवालात में बंद कर दिया और तभी छोड़ा जबकि आठ मंजिला इमारत मलबे का ढेर बन गई । एक करोड़ रूपये का नुकसान हो गया । पूरा-पूरा हफ्ता चुकाते रहने के बावजूद एक महीने में चार बार बाडर पर शराब पकड़ी गई । कैब्रे हाउस पर ताले लग गए । इनकम टैक्स वाले अलग आंख में डंडा किये हैं और इतना ज्यादा जुर्माना करने पर आमादा हैं कि सब कुछ बेचकर भी शायद ही चुकता कर पाऊंगा । कुछ महीनों में ही ये सब कुछ हो गया । माईंयेवां रब्ब ही रूठ गया एकाएक लेखराज मदान का ।”
“तभी तो कहते हैं कि मुसीबत आती है तो अकेले नहीं आती है ।”
“लक्ख रुपए की बात कही,कोल्ली । इकट्ठी आई तमाम मुसीबतें । पता नहीं किस कलमुहें की नजर लग गई लेखराज मदान को । सब चौपट हो गया । आज ये हालत है कोल्ली कि होटल वाला फ्लैट तक गिरवी पड़ा है और किसी भी रोज ये मर्सरी भी बेचने की नौबत आ सकती है । अभी गनीमत है कि मधु को इन बातों की भनक नहीं ।”
“उसको भनक लगने से क्या फर्क पड़ता है ?”
“पूरा-पूरा फर्क पड़ता है वीर मेरे । तू क्या समझता है, मैं खूबसूरत बहुत हूं या नौजवान बहुत हूं जो उसने मेरे से शादी करना मंजूर किया ?”
“यानी कि दौलत की दीवानी है ?”
“हर औरत होती है ।”
“फिर तुम्हारी शादी थोड़े ही हुई ! वो तो एक समझौता हुआ, करार हुआ जो तुमने एक नौजवान लड़की से किया । वो कपड़े उतारकर तुम्हारे साथ लेटेगी और तुम्हारे दो क्विंटल के जिस्म के नीचे पिसेगी, और तुम उसे दौलत से मालामाल करोगे, सोने-चांदी से निहाल करोगे ।”
उसने अनमने मन से हुंकार भरी ।
“अब जबकि तुम्हें लग रहा है कि करार के अपने हिस्से की शर्त पूरी करने की सलाहियात तुम्हारे हाथों से निकली जा रही तो ये सोच के तुम्हारा कलेजा कांप रहा है कि कहीं इतनी हसीन औरत भी तुम्हारे हाथों से न निकल जाए ।”
वो अप्रसन्न दिखाई देने लगा । प्रत्यक्षत: मेरा बात को यूं दो टूक कहना उसे रास नहीं आया था ।
“बहरहाल” मैं बोला, “हालात का खुलासा ये है कि रूपए-पैसे के मामले में तुम्हारी दुक्की पूरी तरह से पिटने वाली है ।”
“पिट चुकी है ।”
“लेकिन अपनी मौजूदा दुश्वारियों का कोई हल है तुम्हारे जेहन में ।”
“एकदम ठीक पहचाना ।”
”कहां है हल ?”
”मेरी बगल में बैठा है ।”
“यानी कि मैं ?”
“यानी कि तू ।”
“मैं कुछ समझा नहीं ।”
“कोई बड़ी बात नहीं । अभी कुछ समझाया ही कहां है मैंने ?”
“उम्मीद रखूं कि इसी हफ्ते में समझा लोगे ?”
“मैं अभी समझाता हूं । मैं बात को दूसरी ओर का सिर पकड़कर समझाता हूं ।”
“मैं सुन रहा हूं ।”
“शशिकांत का बीमा है । जीवन बीमा ।”
“जरूर होगा । सबका होता है ।”
“पचास लाख का ।”
“ये सबका नहीं होता ।” मैं नेत्र फैलाकर बोला, “रकम फ्यूज उड़ा देने वाली है ।”
“मेरे हक में ।”
“ठहरो, ठहरो । जरा मुझे बात को तरीके से समझने दो । तुम ये कह रहे हो कि तुम्हारे छोटे भाई की पचास लाख रुपए की लाइफ-इंश्योरेंस पॉलिसी है जिसके नामिनी तुम हो ।”
“हां ।”
“यानी कि अगर तुम्हारा भाई शशिकांत मर जाए तो तुम्हें पचास लाख रुपए का क्लेम बीमा कंपनी से मिलेगा ।”
“किसी हादसे का शिकार होकर मरे तो एक करोड़ ।”
“तुम” मैं सख्त हैरानी से उसे घूरता हुआ बोला, “अपने भाई की मौत चाहते हो ?”
“हरगिज भी नहीं ।”
“फिर क्या बात बनी ?”
“बनी ।”
“कहीं तुम ये तो नहीं कहना चाहते कि तुमने ऐसी तरकीब सोच निकाली है जिससे तुम्हारा भाई तो नहीं मरेगा लेकिन बीमे की रकम फिर भी तुम्हें मिल जाती ।”
“काबिल आदमी है तू कोल्ली । आखिर समझ गया ।”
“मैं काफी देर से एक बात कहना चाहता था । मेरा नाम कोल्ली नहीं । कोहली है !”
“वही तो मैंने कहा । कोल्ली ।”
“ये कोल्ली वाला है पंजाबी में मेरा नाम कोहली है । कोहली । को.. ह.. ली । जैसे हल से हली और शुरू में को ।”
“की फर्क पैंदा ए ।”
“मेरे को फर्क पैंदा है । मैं नहीं चाहता कि कोई मेरे नाम की दुर्गत करके मेरे से मुखातिब हो ।”
“यार” वो झल्लाया “ये इतनी गंभीर बातचीत में तेरा नाम कहां से आ घुसा ?”
“मैंने घुसाया । कोहली नहीं कह सकते हो तो सुधीर कहो ।”
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