RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“ठीक है । सुधीर ।”
“अब आगे बढ़ो ।”
“देख । बात यूं है कि मैं अपनी मौजूदा जिन्दगी से ही नहीं, इस शहर से, इस मुल्क से ही किनारा कर जाना चाहता हूं । इस सिलसिले में शशिकांत सिंगापुर हो भी आया है और नकली नाम और नकली कागजात के जरिए खुद को वहां स्थापित कर भी चुका है । बीमे की रकम हासिल हो जाने के बाद उसे सिंगापुर पहुंचाने का पुख्ता इन्तजाम भी मैं कर चुका हूं । पहले शशिकांत सिंगापुर चला जाएगा । फिर बीमे की रकम का क्लेम मिल जाने के बाद मैं भी मधु को लेकर उसके पीछे वहां पहुंच जाऊंगा । यूं यहां की तमाम कानूनी पेचीदगियां और गैरकानूनी बखेड़े यहीं रह जाएंगे । आज की तारीख में ये मेरा आखिरी मकसद है । जिनका मैं कर्जाई हूं मैं उन्हें ढूंढ़े नहीं मिलूंगा । यूं मेरी जान भी सांसत से निकल जाएगी और अपनी बाकी की जिन्दगी चैन से गुजारने के लिए मेरे पास पचास लाख रुपया भी होगा ।”
“एक करोड़ ।” मैंने याद दिलाया ।
“पचास लाख । शशिकांत कोई सच में ही थोड़े मर जाएगा । आधा वो भी तो लेगा !”
“वो मरेगा नहीं तो बीमे की रकम कैसे मिलेगी ? जब मुर्दा नहीं होगा तो मौत कैसे स्थापित होगी ? इतनी बड़ी रकम का मामला है । मुर्दा तो बड़े चौकस तरीके से ठोक-बजाकर देखा जाएगा । यहां मर गया होने का कोई पाखंड या कोई एक्टिंग काम नहीं आने वाली ।”
“मुझे मालूम है ! ये तो बच्चा भी समझ सकता है कि मुर्दा होना जरूरी है, तू तो सौ सयानों का सयाना है, कोल्ली !..मेरा मतलब है सुधीर ।”
“मुर्दा कहां से आएगा ?”
“मेरा पहलवान कल रात फेल न हो गया होता तो मुर्दा आ ही गया था ।”
“तुम्हारा इशारा मेरी तरफ है !”
“जाहिर है । लेकिन मैं फिर कहता हूं । मेरी कोई जाती अदावत नहीं तेरे से ।”
“लेकिन...”
“ठहर । सुन ।” उसने जेब से एक तस्वीर निकाल कर मेरी गोद में डाल दी, “देख !”
मैंने तस्वीर देखी ।
“ये” मैं बोला, “मेरी तस्वीर...”
“ये” वो धीरे से बोला, “शशिकांत की तस्वीर है ।”
“ओह ! ओह !”
मैंने फिर तस्वीर पर निगाह डाली । इस बार मुझे अपनी और तस्वीर की सूरत में दो फर्क दिखाई दिए ।
तस्वीर में चित्रित व्यक्ति के ऊपरले होंठ पर शत्रुघ्न सिन्हा स्टाइल मूंछें थीं और हेयर स्टाइल जुदा था ।
“हेयरस्टाइल बदला जा सकता है ।” वो जैसे मेरे मन की बात भांपकर बोला, “मूंछें साफ की जा सकती हैं । बाकी कद-काठ, हड गोडे सब तेरे जैसे ही हैं शशिकांत के ।”
मैं सन्नाटे में आ गया ।
“तो ये बात है ।” मैं बोला, “मौत मेरी होगी और मरा हुआ शशिकांत समझा जाएगा ।”
“जाती कुछ नहीं, कोल्ली । जाती कुछ नहीं । तेरी शक्ल शशिकांत से न मिलती होती तो मैंने क्या लेना-देना था तेरे से !”
“मेरी जान इतनी सस्ती नहीं, मदान दादा ।”
“किसने कहा तेरी जान सस्ती है ! तेरी जान तो एक करोड़ रुपए की है ।”
“वो शशिकांत की जान है ।”
“एक ही बात है ।”
“नहीं है एक ही बात । तुम क्या समझते हो कि मैं यूं एकाएक गायब हो जाता तो मेरी कोई पूछ नहीं होती ?”
“कोल्ली । सुधीर । तेरे में ये भी एक खूबी हैं कि इस शहर में तेरा कोई सगेवाला नहीं ।”
“तो क्या हुआ ? यार-दोस्त तो हैं ।”
“लेकिन जिगरी कोई नहीं । मैंने पड़ताल की है । ऐसे यार-दोस्त किसी के एकाएक गायब हो जाने पर थोड़ा-बौत हैरान तो होते है, हलकान नहीं होते ।”
“मेरी सेक्रेट्री रजनी है जो मेरे पर जान छिड़कती है ।”
“गलत । वो तेरे पर नहीं, तू उस पर जान छिड़कता है ।”
“वहम है तुम्हारा । वो तो..”
“वहम है तो उसका भी जवाब है मेरे पास ।”
“क्या ?”
“ये चिट्ठी देख ।” जेब से एक लिफाफा निकालकर उसने मेरी गोद मे डाल दिया ।
मैंने देखा, लिफाफा बन्द था और उस पर रजनी का नाम और मेरी डिटेक्टिव एजेंसी, यूनिवर्सल इन्वेस्टिगेशंस का नाम और नेहरू प्लेस का पता लिखा हुआ था ।
“खोल ले ।” वो बोला, “इसकी जरूरत तभी थी जब पहलवान तुझे डिलीवर कर पाता, जब तू मेरे काबू में होता । अब तो ये बेकार है ।”
मैंने लिफाफा खोला ।
भीतर पाच-पाच सौ के नोटों की एक गड्डी थी और एक चिट्ठी थी । चिट्ठी टाइपशुदा थी, जिसमें लिखा था..
डियर रजनी,
एकाएक एक बहुत ही महत्वपूर्ण और पेचीदा केस हाथ लग गया है । जान जोखम का काम है लेकिन फीस लाखों में है । उस केस के सिलसिले में मैं तत्काल नेपाल जा रहा हूं । वहां से आगे बर्मा, थाईलैंड और फिर सिंगापुर जाऊंगा । कम से कम एक साल सारे योरोप के धक्के खाने का सिलसिला है । साल सुरक्षित गुजरा तो एक ही केस मुझे मालामाल कर देगा । आइंदा एक साल के दौरान तुमसे संपर्क का मौका मुझे शायद ही मिले इसलिए एक स्पेशल मैसेंजर के हाथ ये चिट्ठी भेज रहा हूं । चिट्ठी के साथ पचास हजार रुपए हैं जो एक साल तक ऑफिस का किराया और तुम्हारी तनखाह के खर्चे निकालने के लिए काफी होंगे । मेरी असाइनमेंट बहुत गोपनीय है, इसलिए इस बाबत किसी से कोई विस्तृत वार्तालाप न करना ।
शुभकामनाओं सहित ।
तुम्हारा एम्प्लायर
सुधीर कोहली ।
अपने हस्ताक्षर देख कर मेरे छक्के छूट गए ।
वो सौ फीसदी मेरे हस्ताक्षर थे ।
“अपने दस्तखत देखकर हैरान हो रहा है ?” वह बोला ।
“हो तो रहा हूं ।” मैं बोला ।
“मत हो । अरे जो जाली पासपोर्ट तैयार कर सकता हो, और सौ तरह के जाली कागजात तैयार कर सकता हो, उसके लिए तेरे दस्तखतों की नकल मार लेना क्या मुश्किल काम रहा होगा ।”
मैं खामोश रहा । मैने चिट्ठी तह कर के चिट्ठी और नोट लिफाफे में रखे । उसने बड़ी सफाई से लिफाफा मेरी गिरफ्त से निकाल लिया और वापस अपनी जेब में डाल लिया ।
“दस्तखतों का नमूना कैसे हासिल किया ?” मैं बोला ।
“क्या मुश्किल काम था ?” वह बोला, “सुधीर, कोई चिट्ठी लिखकर अगर तेरे से पूछे कि तू बतौर प्राइवेट जसूस क्या फीस ले के काम करता था तो उसे जवाब में चिट्ठी लिखेगा कि नहीं ?”
“लिखूंगा ।” मैं बोला ।
“और उस जवाबी चिट्ठी पर तेरे दस्तखत होंगे कि नहीं ?”
“होंगे ।”
“बस । मिल गया तेरे दस्तखतों का नमूना ।”
“तैयारियां, लगता है, काफी अरसे से चल रही हैं ।”
“चार महीने से । सब कुछ वाह-वाह चल रहा था । एक उस पहलवान के बच्चे की नालायकी ने सब गुड़ गोबर कर दिया । तुझे काबू में न रख सका ।”
“ये इकलौती चिट्ठी मेरे गायब हो जाने की मिस्ट्री पर लगे सब सवालिया निशान मिटा देती ?”
“इकलौती किसलिए, वीर मेरे । ऐसी एक चिट्ठी लगभग हर महीने कभी सिंगापुर से तो कभी हांगकांग से तो कभी लंदन से तेरी सैक्रेट्री के पास पहुंचती जिसमें तूने उसे ये खबर की होती कि तू कामयाबी की मंजिलें तो तय करता जा रहा था लेकिन जान-जोखम बढ़ता जा रहा था । फिर एकाएक चिट्ठियां आनी बंद हो जाती, कोल्ली... ”
“कोहली ।” मैं चिढकर बोला ।
“फिर इससे तेरी सेक्रेट्री क्या नतीजा निकालती ? वो यही सोचती न कि जोखम ने तेरी जान ले ली थी ? आखिरकार तेरी किस्मत तुझे दगा दे गई थी और तू परदेस में कहीं मर-खप गया था । कैसी रही ?”
मैं खामोश रहा ।
“आखिर वो तेरी सेक्रेट्री ही तो है, कोई ब्याहता बीवी तो नहीं जो तेरी लाश की बरामदी के अरमान के साथ महकमा-दर-महकमा टक्करें मारती फिरती ।”
रजनी से मेरी उम्मीदें बीवी से कहीं बढ़कर थीं, लेकिन फिर भी मेरा सिर सहमति में हिला ।
“तुम्हारा भाई” फिर मैंने पूछा, “मेरा मतलब है तुम्हारे भाई की जगह मैं, मरता कैसे ?”
“गोली खा के ।” वह बड़े इत्मीनान से बोला, “पहलवान तुझे शशिकांत की कोठी में ले जाता, तुझे वहां शशिकांत की जगह स्थापित करता और तुझे शूट कर देता ।”
“स्थापित करता क्या मतलब ?”
“तुझे जबरन तैयार कर के वो पहले सारी कोठी में तेरी उंगलियों के निशान फैलाता, फिर तुझे शशिकांत की कोई पोशाक पहनने को मजबूर करता, पोशाक की जेबों में शशिकांत के जाती इस्तेमाल की चीजे रखता, तुझे उसकी चेन पहनाता अंगूठी पहनाता, शशिकांत के नाम वाला ब्रेसलेट पहनाता और फिर तुझे यूं कत्ल कर देता जैसे वो काम कोठी में जबरन घुस आए किसी मवाली का था ।”
“पुलिस को ये बात हजम हो जाती ?”
“क्यो न होती ? मेरी तरह ही शशिकांत भी कई लोगों का कर्जाई है । राजेंद्रा प्लेस में हमारी जो नाईट क्लब वो चलाता था, वो भी सिंडीकेट के दबाव की वजह से बंद पड़ी है । पुलिस जरा-सी तफ्तीश करती तो उन्हें मालूम हो जाता कि पिछले कुछ अरसे से कत्ल कर दिए जाने की धमकियां उसे मुतवातर मिल रही थी । पुलिस यही समझती कि किसी ने अपनी धमकी पर खरा उतरकर दिखा दिया था ।”
“मेरे कत्ल के दौरान शशिकांत कहां होता ?”
“वो एयरपोर्ट की तरफ दौड़ा जा रहा होता जहां से उसने काठमांडू की दोपहरबाद की फ्लाइट पकड़नी थी । वो दो दिन नेपाल ठहरता और फिर अपने जाली पासपोर्ट के सदके सिंगापुर उड़ जाता ।”
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