RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“और तुम यहा भाई की मौत पर रो-रो के जान देने को आमादा उसकी - यानी कि मेरी - चिता की राख भी ठंडी होने से पहले इन्श्योरेंस क्लेम भर रहे होते ।”
“जाहिर है । लेकिन सब गुड़-गोबर हो गया । एक लल्लू पहलवान की लापरवाही से इतनी उम्दा स्कीम का कचरा बन गया ।”
“उसकी लापरवाही से या मेरी होशियारी से ?”
“इक्को गल ए । खेल तो चौपट हो गया । सुधीर, वैसे तू अभी भी मान जाए तो बिगड़ी बात बन सकती है ।”
“मान जाऊं ! क्या मान जाऊं ?”
“लाश की जगह लेने के लिए । मैं तेरी कोई भी फीस भरने के लिए तैयार हूं ।”
“क्या कहने ! अरे, जब मैं ही नहीं रहूंगा तो फीस मेरे किस काम आएगी ?”
“कोल्ली, तू इतना बड़ा जसूस है, कोई ऐसी तरकीब सोच न जिससे लाश भी रहे, तू भी रहे और फीस भी तेरे काम आए ।”
“कहीं इसी चक्कर में तो तुम मुझे मेटकाफ रोड नहीं ले जा रहे कि मैं ऐसी कोई तरकीब सोचूं ?”
“इसी चक्कर में ले जा रहा हूं ।”
“ये काम तुम्हारे फ्लैट में ही नहीं हो सकता था ?”
“कैसे होता ? वहां शशिकांत जो नहीं था ।”
“बुलवा लेते उसे ।”
वो खामोश रहा ।
“लगता है” मैं बोला, “अपनी खूबसूरत बीवी के मामले में तुम्हे किसी का भरोसा नहीं । अपने भाई का भी नहीं ।”
उसके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव आए ।
“तुम्हारा पहलवान ठीक कहता था ।”
“क्या?” वो उखड़े स्वर में बोला, “क्या कैत्ता था ?”
“यही कि मदान साहब बैठा है सांप की तरह कुंडली मारकर हुस्नो-शबाब की दौलत पर ।”
“लनतरानियां छोड़ कोल्ली, मतलब की बात कर । सोच कोई तरकीब जिससे लाश भी रहे, तू भी रहे और फीस भी तेरे काम आए ।”
“ऐसी कोई तरकीब मुमकिन नहीं ।”
“कोई तो होगी । अकल लड़ा । जोर दे दिमाग पर । निकाल कोई तरकीब । मैं तेरी कोई भी फीस भरने को तैयार हूं । और..”
वो ठिठका ।
“और क्या?” मैं तनिक उत्सुक भाव से बोला ।
“पहलवान को छोड़ ।”
“क्या कहने ! पहलवान छूट गया तो मेरे पास क्या रह गया तुम्हारे खिलाफ ?”
“ओए वीर मेरे, तू मेरे खिलाफ होना क्यों चात्ता है ? अब तो हम तीनों इकट्ठे हैं ।”
“तीनों ! कौन तीनों ?”
“मैं, शशिकांत और तू ।”
“मैं, शशिकांत और मधु कहा होता तो कोई बात भी होती ।”
“मैं, शशिकांत और” वो सख्ती से बोला, “तू ।”
“अफसोस । अफसोस ।”
“कोल्ली, मैंने क्या कहा था ?”
“क्या कहा था ?”
“नीयत मैली नहीं करनी । भूल गया ?”
“पहले भूल गया था । अब फिर याद आ गया है ।”
“वदिया । तो समझ गया ? अब तो हम तीनों - मैं, शशिकात और तू - इकट्ठे हैं ।”
“किसने कहा ?”
“क्या ?”
“कि हम तीनों इकट्ठे हैं ?”
“नहीं हैं ?”
“बिल्कुल भी नहीं हैं । जो शख्स मेरी जान लेने पर आमादा हो, वो तो मेरा घोर शत्रु हुआ ।”
“यार, अब तो वो कहानी खत्म हो गई ।”
“तुम्हारी तरफ से खत्म हो गई । मेरी तरफ से तो..”
“तू भी खत्म कर न, वीर मेरे । तू ऐसा कर, तू बीमे की रकम हथियाने की कोई कारआमद तरकीब सुझा और अपनी फीस खुद मुकर्रर कर ले ।”
“कोई भी फीस ?”
“कोई भी वाजिब फीस ।”
मैं सोचने लगा ।
“मेटकाफ रोड आ गई है । तीनों मिल के सोचते है कोई तरकीब ।”
मैने बेध्यानी में सहमति में सिर हिला दिया ।
मर्सिडीज एक कोठी के सामने पहुंची । कोठी एक मंजिली थी, पुराने स्टाइल की थी और बहुत बड़े प्लाट के बीच मे बनी हुई थी । कोठी के सामने एक विशाल लॉन था जिस के बीच में से गुजरता ड्राइव-वे कोठी तक पहुंचता था । ड्राइव-वे के दोनों ओर ऊचे पेड़ थे और उसके सड़क की ओर वाले सिरे पर एक आयरन गेट था जो कि उस वक्त पूरा खुला हुआ था ।
“फाटक खुला है ।” मैं बोला ।
“तो क्या हुआ ?” वो अनमने स्वर में बोला ।
“क्यों ?”
“क्यों क्या ? ये तो खुला ही रहता है । कोई खराबी है इसमें । झूल के अपने आप पूरा खुल जाता है । ताला लगा हो तो ही अपनी जगह टिकता है ।”
“ठीक क्यों नहीं कराता तुम्हारा भाई ?”
“क्या जरूरत है ? तूने सब घपला न कर दिया होता तो आज के बाद किसने रहना था यहां ।”
मैं खामोश हो गया ।
मदान ने कार को फाटक के भीतर डाला और कोठी के सामने पोर्टिको में ले जाकर रोका । हम दोनों कार से बाहर निकलकर कोठी के मुख्यद्वार पर पहुचे । मदान ने कॉलबैल बजाई ।
कोई प्रतिक्रिया सामने न आई ।
उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर निगाह डाली ।
“हम जल्दी आ गए ।” वो बोला, “कहीं अभी तक सो ही न रहा हो । आलसी बहुत है शशिकांत ।”
मै खामोश रहा ।
उसने फिर कॉलबैल बजाई और दरवाजे को धक्का दिया ।
दरवाजा निशब्द खुल गया ।
मदान तनिक सकपकाया और फिर भीतर दाखिल हुआ । मैं उसके पीछे हो लिया ।
वो हमें स्टडी की तरह सुसज्जित एक कमरे में मिला । वहां एक विशाल मेज लगी हुई थी जिसके पीछे लगी एक एग्जीक्यूटिव चेयर पर वो बैठा हुआ था । उसका सिर उसकी छाती पर झुका हुआ था और लगता था कि वो कुर्सी पर बैठा बैठा ऊंघ गया था और फिर सो गया था ।
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