RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“तब सेठी की बीवी ने पहले से कई गुणा ज्यादा कोहराम मचाया । सेठी को बीवी से तलाक की और साले से कत्ल की धमकियां मिलने लगीं । सेठी ऐसा हत्थे से उखड़ा कि एक दिन उसने घबराकर आत्महत्या कर ली । ऑफिस में ही उसने अपने आपको गोली मारली ।”
“ओह !”
“नतीजतन सारा कारोबार मेरे हाथ में आ गया ।”
“ओह ! ओह !”
“तब कौशल्या उम्मीद से थी । वो सेठी के बच्चे की मां बनने वाली थी । सेठी की मौत के पांच महीने बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया । बावजूद इसके मैंने उससे शादी की पेशकश की जो उसने साफ ठुकरा दी ।”
“दिल से चाहती होगी वो सेठी को ।”
“ऐसा ही था कुछ ।”
“आगे ।”
“बच्चा होने के दो साल बाद वो मर गई । लेकिन मरने से पहले अपने वकील के पास एक सीलबंद लिफाफे में एक चिट्ठी लिख के छोड़ गई जो कि उसके बच्चे के बालिग हो जाने के बाद उसे सौंप दी जानी थी । ऐसा ही हुआ । वो चिट्ठी पढ़कर वो बच्चा मेरे पास पहुंच गया । उसने मुझे बताया कि वो कौशल्या का बेटा था और उसके पास इस बात के सिक्केबंद सबूत थे कि मैंने मुकंदलाल सेठी का खून किया था । मेरे छक्के छूट गए ।”
“तुमने किया था ?”
“हां । बुनियादी तौर पर तो उस खून ने ही मुझे दौलत की ड्योढ़ी पर लाकर खड़ा किया था ।”
“वो लड़का शशिकांत था ?”
“एकदम ठीक पहचाना । वो बाकायदा मुझे ब्लैकमेल करके मेरा छोटा भाई बना । मैंने हर किसी को ये ही बताया कि पहले वो देहात में मेरी मां के पास रहता था, एकाएक मेरी मां मर गई थी तो मैने उसे अपने पास बुला लिया था ताकि वो शहर में आकर तरक्की कर सके, जिन्दगी मे कुछ बन सके । देख, ब्लैकमेल से इस छोकरे ने कितना कुछ हासिल किया मेरे से ? नाइट क्लब की सूरत में मैने इसे कारोबार मुहैया कराया । रहने को यहां मैटकाफ रोड पर ये कोठी लेकर दी ओर इसी के कहने पर इसकी आइन्दा जिंदगी की खुशहाली की गारंटी के तौर पर मैंने इसका पचास लाख रुपए का बीमा कराया जिसकी किस्त मैं भरता था ।”
“तुम्हें अपना नामिनी बनाने को तैयार हो गया ये ?”
“किसी को तो नामिनी बनाना ही था इसने । दोनों मर चुके मां-बाप की नाजायज औलाद का और कौन था इस दुनिया में ! वैसे भी वो तो यही समझता था कि इंश्योरेंस तो उसने खुद ही कलेक्ट करनी थी, अर्जी में नामिनी भरना तो महज एक औपचारिकता थी ।”
“आई सी ।”
“अब सूरत अहवाल ये है, वीर मेरे, कि ये सिर्फ कत्ल का ही नहीं, एक करोड़ रुपए के इंश्योरेंस क्लेम का भी मामला है । इस केस की तफ्तीश में कातिल की तलाश पुलिस ही नहीं करेगी, बीमा कंपनी के बड़े-बड़े जासूस भी करेंगे । अब अगर ये बात खुल गई कि आजकल मेरी माली हालत पतली थी और मरने वाला, जिसके बीमे का मैं नामिनी था, मेरा कुछ नहीं लगता था तो मेरी तो वज्ज जाएगी ।”
“तुमने कत्ल किया है ?”
“खोत्ता ! ओए ! अगर मैंने इसका कत्ल करना होता तो फिर तेरा अगवा करने के लिए इतने पापड़ बेलने की क्या जरूरत थी ? अगर मैने इसका कत्ल करना होता तो मैं यूं खामखाह अपनी जान सांसत में डाल बैठता ?”
“तुम क्या करते ?”
“मैं कत्ल कराता हबीब बकरे से और खुद कत्ल के वक्त थाने में ए सी पी के पास बैठा होता ।”
“असल में कत्ल के वक्त कहां थे तुम ?”
“कत्ल के वक्त ?”
“साढ़े आठ के आसपास । कल शाम । और तसदीक पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से हो जाएगी । फिलहाल टूटी घड़ी यही साबित कर रही है कि कत्ल कल शाम आठ अट्ठाइस पर हुआ था ।”
“तब मैं अपने फ्लैट में था ।
“और कौन था वहां ?”
“कोई नहीं ।”
“कोई नौकर-चाकर तो होगा ।”
“कोई नहीं । कभी होता भी नहीं । नौकर-चाकर न रखने पड़ें तभी तो होटल के फ्लैट में रहता हूं ।”
“तुम्हारी बीवी ?”
“वो अपनी बहन से मिलने गई थी ।”
“कब ?”
“घर से छ: बजे निकली थी, लेकिन पहले उसने करोल बाग अपने दर्जी के पास भी जाना था । ऐसा बोल के गई थी वो ।”
“यूं बीवी को अकेले जाने देते हो ?”
“हमेशा नहीं । हर जगह नहीं ।”
“बहन कौन है ?”
“सुधा नाम है उसका । सुधा माथुर ।”
“शादीशुदा है ?”
“हां । मधु से बहुत पहले से ।”
“बड़ी बहन है ?”
“हां । चार साल बड़ी ।”
“कहां रहती है ?”
”फ्लैग स्टाफ रोड पर ।”
“बाराखम्भा से फ्लैग स्टाफ रोड जाने के लिए तो यहीं से गुजरना पड़ता है ।”
“तो क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं । लौटी कब थी ?”
“साढ़े नौ बजे ।”
“इस बात की गारंटी है कि वो बहन के घर ही थी ?”
वो खामोश रहा ।
“क्या हुआ ?”
“आगे-पीछे ऐसी गारंटी होती थी । कल नहीं थी ।”
“क्या ?”
“ज्यादा पी गया था । तेरे अगवा की तरफ दिमाग लगा हुआ था न ! उसकी टेंशन में । फोन करने का ख्याल ही न आया ।”
“फोन ?”
“मधु जब बहन के घर जाती है तो मैं वहां फोन करके इस बात की तसदीक कर लेता हूं कि वो वहां पहुंच गई थी ।”
“कल ऐसा नहीं कर सके थे । क्योंकि ज्यादा पी गए थे !”
“हां ।”
“मैं तुम्हारे साथ शरीक था ।”
“किस काम में ?” वो सकपकाकर बोला ।
“ज्यादा पी जाने में । कल मैं तुम्हारा मेहमान था । कत्ल के वक्त, यानी कि कल शाम साढ़े आठ बजे, मैं तुम्हारे फ्लैट में तुम्हारे साथ बैठा दारू पी रहा था ।”
उसने इनकार में सिर हिलाया ।
“क्या हुआ ?” मैं बोला ।
“कोल्ली, इतने बड़े केस में तेरी झूठी गवाही नहीं चलने वाली । पुलिस यूं” उसने चुटकी बजाई, “पता लगा लेगी कि तू मेरा दोस्त नहीं, जोड़ीदार नहीं ।”
“तो क्या हुआ ! हर काम की कभी तो पहल होनी ही होती है । समझ लो कल शाम की बैठक दोस्ती की शुरुआत थी ।”
“नहीं चलेगा ।”
“क्यों ?”
“दारू के लिये यूं किसी को घर नहीं बुलाता मैं । सबको मालूम है ।”
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