RE: Desi Chudai Kahani मकसद
मेरी इस मोटी लेकिन वक्ती कमाई का रोब खाकर जो कोई साहब प्राइवेट डिटेक्टिव का धंधा अख्तियार करने का इरादा कर रहे हों तो उनसे मेरी दरख्वास्त है कि वे गरीब रिश्तेदार की तरह फौरन इस इरादे से किनारा कर लें । मोटी रकम मुझे कभी-कभार ही हासिल होती है । अमूमन तो मुझे अपने ऑफिस में बैठकर किसी क्लायंट के इंतजार में मक्खियां मारनी पड़ती हैं । और अगर क्लायंट आ भी जाए तो मुझे क्या हासिल होता है । पांच सौ रुपये जमा खर्चे । मेरी मौजूदा फीस । जो कि मेरे तकरीबन क्लायंट को ज्यादा लगती है जबकि इससे ज्यादा पैसे तो मैंने सुना है कि लोग-बाग करोल बाग या चांदनी चौक में गोलगप्पे बेचकर कमा लेते हैं ।
और इस रकम का ख्याल करते हुए साहबान उस जान को न भूलें जो कि आपके खादिम की थी और जाते-जाते बची था ।
“क्या सोच रहा है ?” मदान तनिक उतावले स्वर में बोला ।
“कुछ नहीं ।” मेरी तन्द्रा टूटी, “इंश्योरेंस के बारे में और कौन जानता है ? मेरा मतलब है तुम्हारे, शशिकान्त और इंश्योरेंस कम्पनी के अलावा ।”
“मेरा वकील ।” वो बोला ।
“पुनीत खेतान !”
“तू कैसे जानता है ?”
“क्या ?”
“कि पुनीत खेतान मेरा वकील है ?”
“आल इंडिया रेडियो से घोषणा हुई थी । और कौन जानता है ?”
“कोई नहीं ।”
“तुम्हारी बीवी भी नहीं ?”
“नहीं ।”
“पुनीत खेतान का पता ठिकाना ?”
“क्यों चात्ता है ?”
“बहस न करो ।”
“ऑफिस शक्ति नगर में । घर शालीमार बाग में ।”
“दोनों जगहों का पता बताओ । फोन नम्बर भी ।”
उसने बताया । मैंने नोट किया ।
“वो सामने” फिर मैंने पूछा, “वाल केबिनट की बगल में जो बंद दरवाजा है, उसके पीछे क्या है ?”
“बाथरूम ।” वो बोला, “क्यों ?”
“कुछ नहीं ।” मैंने कुर्सी पर पड़े शशिकांत की ओर इशारा किया, “घर ये ऐसे ही रहता था ?”
“क्या मतलब ?”
“ये सूट-बूट पहने तैयार बैठा है ।”
“कहीं जाने की तैयारी में होगा । या कहीं से लौटा होगा ।”
“ये अपनी स्टडी में बैठा है ।”
“तो क्या हुआ? साफ-साफ बोल क्या कहना चाहता है !”
“इसका यहां मौजूद होना साबित करता है कि हत्यारा न सिर्फ इसके लिए अपरिचित नहीं था बल्कि वो इतना जाना-पहचाना था कि हत्प्राण उसे यहां स्टडी में लेकर आया । ऐसा न होता तो उसने आगंतुक को ड्राइंगरुम में बिठाया होता या बाहर से ही टरका दिया होता ।”
“इसका क्या मतलब हुआ ?”
“इसका ये मतलब हुआ कि हत्यारा कोई अजनबी नहीं था । वो मरने वाले का खूब जाना-पहचाना था और उसे कतई उम्मीद नहीं थी कि वो यूं उस पर गोली चला सकता था ।”
“हूं ।”
“ऐसा बंदा कौन हो सकता है ? या बंदी कौन हो सकती है ?”
उसने उत्तर न दिया ।
“वो लड़की.. .सुजाता मेहरा...मकतूल की मुफ्त की हाउस कीपर, वो शाम को यहां से वापस कब जाती थी ?”
“कोई पक्का नहीं । जल्दी भी जाती थी । देर से भी जाती थी । नहीं भी जाती थी । शशि के मूड की बात थी । मैंने बताया तो था ।”
“हां, बताया था ।”
“वो कोई मुलाजिम तो नहीं थी न जो...”
“आई अडरस्टैंड । यानी कि हो सकता है कि कातिल के यहां आगमन के वक्त वो यहीं हो ।”
“कैसे हो सकता है ? कातिल इतना अहमक तो नहीं होगा कि यू अपने पीछे कत्ल का एक गवाह छोड़ जाता ।”
“उसे पता नहीं लगा होगा कि कोठी में कोई और भी था । आखिर इतनी बड़ी कोठी है ये ।”
“लेकिन अंधाधुंध गोलियां चलने की आवाज सुनकर वो लड़की क्या भीतर खामोश बैठी रही होगी ।”
“अपनी जान की खैर चाहती होगी तो खामोश ही बैठी होगी !”
“लेकिन बाद में...बाद में भला कैसे वो यूं शशि को पीछे मरा छोड़कर यहां से खिसक गई होगी ?”
“कत्ल के केस में इन्वोल्व्मेंट से हर कोई बचना चाहता है ।”
“कोल्ली, वो लड़की हर कोई नहीं थी, वो शशि की दीवानी थी । वो शशि को पीछे मरा छोड़कर यूं खिसक नहीं सकती थी । खिसक भी सकती थी तो कत्ल के” उसने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली, “चौदह -पंद्रह घंटे बाद तक वो खामोश नहीं रह सकती थी । और कुछ नहीं तो वो कम से कम पुलिस को एक गुमनाम टेलीफोन कॉल ही कर तकती थी । आज यहां तेरे कत्ल का प्रोग्राम न होता और उसकी वजह से मेरा यहां आना लाजिमी न होता तो यूं तो पता नहीं कब तक ये यहां मरा पड़ा रहता !
“तुम कहते हो कि लड़की ग्यारह बजे के आसपास यहां आती है ?”
“हां ।”
“अगर वो ग्यारह बजे यहां आ गई तो इसका मतलब ये होगा कि कत्ल की उसे कोई खबर नहीं यानी कि कल रात कत्ल के दौरान वो वहां मौजूद नहीं थी ।”
“न आई तो भी तो ये मतलब नहीं होगा कि उसे कत्ल की खबर थी । सौ और वजह हो सकती हैं, उसके यहां न आने की ।”
“ये भी ठीक है । वो रहती कहां है ?”
“मंदिर मार्ग । वर्किंग गर्ल्ज होस्टल में ।”
“अब तुम एक काम करो ।”
“क्या ?”
“यहां से फूट जाओ ।”
“कहां फूट जाऊं ?”
“अपने घर । चुपचाप । समझ लो कि तुम यहां आए ही नहीं । घर जाकर अपनी बीवी को समझाओ कि कल शाम से तुम घर से नहीं निकले । तुम्हारी तबीयत खराब थी । तुम्हारे पेट में, पसली में, कान में, कहीं दर्द था । या ऐसी ही कोई और अलामत सोच लो जिसकी वजह से डॉक्टर को तो नहीं बुलाना पड़ता लेकिन आराम जरूरी होता है, बल्कि मजबूरी होता है ।”
“मुझे कभी-कभी गठिया का दर्द होता है ।”
“बढ़िया । एन वही कल शाम को तुम्हें हो गया था । अभी भी है । मदान दादा, ये जरूरी है कि तफ्तीश के लिए जब तुम्हारे यहां पहुंचे तो वो तुम्हें हाय-हाय करता बिस्तर के हवाले पाए और तुम्हारी बीवी इस बात की तस्दीक करे कि वो हाय-हाय कल शाम से जारी थी । कहना मानती है वो तुम्हारा ?”
“कैसे नहीं मानेगी ? खौफ खाती है वो मेरा ।”
“बढ़िया । कहने का मतलब ये है कि अगर मेरी झूठी गवाही नहीं चल सकती तो तुम्हारी बीवी की झूठी गवाही तो चल सकती है ।”
“तुमसे बेहतर चल रुकती है लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“वो शाम को घर पर नहीं थी । अगर किसी को ये बात पता हुई या ऐन कत्ल के समय उसे किसी ने कहीं और देखा हुआ हो तो ?”
“उससे बात करो । मालूम करो कि ऐसी कोई सम्भावना है या नहीं ।”
“अगर हुई तो ?”
“तो अपनी ये जिद फिर भी बरकरार रखना कि गठिया वाले दर्द की वजह से तुम घर पर थे, अलबत्ता अपने खस्ताहाल की वजह से तुम्हें ये खवर नहीं थी कि बीवी वीच में थोड़ी देर के लिए कहीं चली गई थी ।”
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