RE: Desi Chudai Kahani मकसद
तभी वहां का भीतर की ओर एक दरवाजा खुला और भीतर एक सुन्दर युवती ने कदम रखा ।
मैं हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ ।
मेरे पर निगाह पड़ते ही लड़की थमककर खड़ी हो गई । उसके चेहरे पर एकाएक हैरानी और बदहवासी के भाव प्रकट हुए । कुछ क्षण वह मुझे मुंह बाए देखती रही ।
मैंने देखा कि वह मर्दों जैसी खुले गले की लंबी धारियों वाली कमीज और डेनिम की जींस और जैकेट पहने थी । जींस इतनी टाईट थी कि ऐसा लगता था जैसे टखनों से कमर तक जिस्म पर डेनिम की रंगत का स्प्रे पेंट हुआ था । उसकी कमीज के तीन बटन खुले थे जिसकी वजह से उसके गले की मरमरी रंगत का मुझे बड़ा दिलकश नजारा हो रहा था । कमीज बड़ी-बड़ी जेबों वाली थी और वक्ष के उभार जेबों में भरे लगते थे ।
काबू में आ जाए - मन ही मन घुटनों तक लार टपकाते हुए मैंने सोचा - तो सबसे पहले जेब ही खाली करूं साली की ।
फिर उसके चेहरे के भाव बदले । मुझे लगा जैसे उसने चैन की गहरी सांस ली हो ।
मैंने देखा कि उसके बाल कटे हुए थे और मेकअप के नाम पर उसके होंठों पर बहुत सलीके से चढ़ी हुई सिर्फ लाल लिपस्टिक दिखाई दे रही थी ।
“हल्लो देयर ।” वह मुस्कराकर बोली ।
“हल्लो युअरसेल्फ ।” मैं बड़े अदब से बोला ।
गेंद की तरह फुदकती हुई वो मेरी तरफ बढ़ी । मैने उसकी उम्र का अंदाज बीस के आसपास का लगाया ।
वह मेरे विल्कुल सामने आ खड़ी हुई तो एकाएक मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी !
वो वही लड़की थी जिसे मैंने शशिकांत की मेज की दराज से बरामद वीडियो कैसेट मैं देखा था । उस वक्त क्योंकि वो पूरी ढकी हुई थी इसलिए मुझे उसको पहचानने में वक्त लगा था । आखिर नंगी औरत में सूरत से कहीं बेहतर देखने लायक चीजें होती हैं ।
“जरूर कोई ममी के वाकिफ हो ।” वह बोली, “क्योंकि मैं तो तुम्हें जानती नहीं ।”
“ममी !” मेरे मुंह से निकला ।
“मेरे डैडी की बीवी । ममी ही हुई न मेरी ? मिसेज माथुर । मिसेज सुधा माथुर ।” उसके स्वर में व्यंग्य का स्पष्ट पुट था ।
“आप माथुर साहब की बेटी हैं ?”
“हां । पिंकी कहते हैं मुझे ।”
मदान ने सुधा माधुर को अपनी बीवी से सिर्फ चार साल बड़ी बताया था । इस लिहाज से वो पिंकी, वो स्वनामधन्य बालिका, सुधा माथुर की बेटी तो नहीं हो सकती थी ।
“सौतेली मां की बेटी हैं आप ।” मैं बोला ।
“बेटी तो सगी मां की ही होती है ।”
“मेरा मतलब है ये....ये सुधा जी माथुर साहब की दूसरी बीवी हैं ?”
“हां । तुम सुधा से ही मिलने आए होगे लेकिन वो तो इस वक्त घर होती नहीं ।”
“वजह ।”
“इंटीरियर डेकोरेटर जो है । अपने एक्सटीरियर की डेकोरेशन की नुमायश करने के लिए इंटीरियर डेकोरेशन का सजावटी धंधा पकड़ा हुआ है पट्ठी ने ।”
“इतने रईस आदमी की बीवी ये धंधा ....”
“पैसा कमाने के लिए नहीं करती । शौक की खातिर करती है । पास्टाइम के लिए करती है और ...”
“और क्या ?”
“घर से अकेली निकलने का बहाना हासिल करने के लिए करती है ।”
“आई सी ।”
“इस वक्त कनाट प्लेस में होगी । अपने ऑफिस में । आई मीन होगी तो होगी, वैसे नहीं भी होगी ।”
“मैं उनसे मिलने नहीं आया ।”
“सच !”
“हां ।”
“वैल, दैट्स गुड न्यूज । मुझे तो गुस्सा ही आने लगा था ।”
“किस बात पर ?”
“इसी बात पर । जो भी खूबसूरत सजीला नौजवान इस घर में कदम रखता है, वो ममी से ही मिलने आया होता है । उसका क्लायंट बनके । अपना इटींरियर डैकोरेट कराने के लिये ।”
“ये खूबसूरत सजीला नौजवान आपने मुझे कहा ?”
“तुम्हें ‘ही’ कहा । और कौन है यहां ?”
“फिर तो तारीफ का शुक्रिया ।”
“सिर्फ थोबड़ा ही खूबसूरत है या हरामी भी हो ?”
“वो तो मैं एक नंबर का हूं ।”
“और कमीने ?”
“फुल ।”
“खास दिल्ली वाली किस्म के ?”
“हां ।”
“और फंदेबाज ? मतलबी ? हरजाई ?”
“एक्सपोर्ट क्वालिटी का ।”
“फिर तो तुम्हारी मेरी निभ जाएगी हफ्ता दस दिन । क्योंकि मैं खुद ऐसी ही हूं ।”
“कैसी ?”
“हरजाई । कमीनी । फ्लर्ट ।”
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