RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“और फ्रैंक । साफगो ।”
“वो भी । नाम क्या है तुम्हारा ?”
“सुधीर ।”
“कुम्भ राशि हो न ?”
“हां ।”
“कुम्भ राशि से मेरी खास पटती है । इसलिए तुम्हारे साथ हो सकता है हफ्ता-दस दिन की जगह महीना दो महीना चल जाए ।”
“जहेनसीब ।”
मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो जो कुछ कह रही थी, दिल से कह रही थी या महज अपनी हाजिरजवाबी को धार दे रही थी ।
“आज मौसम बढ़िया है ।” वो बोली, “चलो कहीं ड्राइव पर चलें ।”
“मेरे पास कार नहीं है ।” मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला ।
“नो प्राब्लम । मेरे पास है । कई हैं ।”
“लेकिन ।”
“खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे हरामी दो ।”
“इस वक्त मेरा तुम्हारे डैडी से मिलना जरूरी है ।”
“मत मिलो ।”
“निहायत जरूरी है ।”
“सोच लो । ये मौका दोबारा हाथ नहीं आएगा ।”
“आएगा । जल्द आएगा ।”
“क्या ?”
“मौका । दोबारा तुम्हारे से मुलाकात का ।”
“मिस्टर सोच लो । नाओ ऑर नैवर ।”
“शाम को कहां पाई जाती हो ?”
“शाम किसने देखी है ।”
“ कहां पाई जाती हो ?”
“मेरी शामें ऐसे अहमक के लिए नहीं हैं जिसको मेरे से ज्यादा जरूरी मेरे बाप से मिलना लगता हो ।” उसने जोर से पांव पटके और रोषपूर्ण स्वर में बोली, “गुड बाई ।”
“ठहरो, ठहरो ।”
“इरादा बदल रहे हो ?” वो ठिठककर बोली ।
“वो तो मुमकिन नहीं लेकिन एक बात का जवाब दो ।”
“किस बात का ?”
“अभी जब तुम्हारी पहली निगाह मेरे ऊपर पड़ी थी तो तुम चौंक क्यों गई थी, बदहवास क्यों हो गई थीं ?”
“मैं तो नहीं चौंकी थी । मैं तो नहीं हुई थी बदहवास ...”
“क्या इसलिए क्योंकि मुझे शशि समझ बैठी थीं ?”
“शशि ?”
“सिर्फ हेयर स्टाइल और मूंछों का फर्क है ।”
“तुम क्या कह रहे हो मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा ।”
“तुम किसी शशि को नहीं जानती ?”
“नहीं जानती ।”
“यूं आनन-फानन बिना सोचे-समझे जवाब मत दो । कम से कम ये तो पूछ लो कि मैं किस शशि की बात कर रहा हूं । और नहीं तो उसका पूरा नाम तो पूछ लो ।”
“पूछ लिया । बोलो, क्या है पूरा नाम ? कौन है वो ?”
“पूरा नाम शशिकांत । घर मैटकाफ रोड पर । राजेन्द्र प्लेस में नाइट क्लब । कुछ याद आया ?”
“नहीं ।”
“फिर तो अभी जो अपनी खूबियां बयान करके हटी हो, उसमें एक खूबी और जोड़ लो ।”
“क्या ?”
“बड़ी ढीठ हो ।”
“शटअप ।”
“और भुलक्कड़ भी । मादरजात अल्फ नंगी होकर जिस मर्द को एंटरटेन कर रही थी, उसे चंद दिन भी याद न रख सकीं ।”
“क्या ।”
“मैंने सिर्फ दो मिनट फिल्म देखी थी तो तुम्हारे सांचे में ढले नंगे जिस्म को देख मुझे गश आने लगा था, पूरी फिल्म देखता तो मेरी हालत अस्पताल जाने वाली हो जाती । या शायद शमशान पहुंचने वाली ।”
“फिल्म ? कैसी फिल्म ?”
“वीडियो फिल्म, मेरे पास है । शाम को मिलना । दिखाऊंगा ।”
“क ...कहां ?”
“जहां तुम कहो ।”
“फोन करना ।”
“कहां ?”
“2511265 पर । ये मेरा प्राइवेट नंबर है । इसे मैं ही उठाती हूं । मैं नहीं उठाऊंगी तो कोई और भी नहीं उठाएगा ।”
“गुड ।”
वो लम्बे डग भरती वहां से विदा हो गई ।
मैं वापस सोफे पर बैठ गया ।
मैं अभी बैठा ही था कि वहां एक सूट-बूटधारी साउथ इंडियन ने कदम रखा । उम्र में वो कोई पचास साल का था और इतना काला था कि चमड़ी की और बालों की रंगत में फर्क मुश्किल से ही मालूम होता था । उसकी आंखें तीखी थीं और चेहरे पर बुद्धिमत्ता की छाप थी ।
“हल्लो ।” वह बोला “आई एम नायर । मैं मिस्टर माथुर का प्राइवेट सैक्रेट्री हूं ।”
“मैं सुधीर कोहली ।” मैं उठता हुआ बोला ।
“आई नो । वेलकम, मिस्टर कोहली । मिस्टर माथुर शूटिंग रेंज पर हैं....”
“शूटिंग रेंज पर हैं !” मैं सकपकाया, “लेकिन मुझे तो यहां मिलने आने को कहा गया था ।”
“मिस्टर कोहली ।” वो मुस्कराया, “शूटिंग रेंज यहीं है । मिस्टर माथुर को जिस चीज की जरूरत होती है, वो उनके लिये यहीं मुहैया की जाती है । वो चीज के पास नहीं जाते । चीज उनके पास आती है ।”
“कमाल है !”
“शूटिंग रेंज यहीं कोठी के पिछवाड़े में है । आप उनके पास जाना चाहते हैं तो तो अभी चल सकते हैं वर्ना अभी और इन्तजार कीजिए ।”
“मैं और इन्तजार नहीं करना चाहता ।”
“तो फिर तशरीफ लाइए ।”
मैं उसके साथ चलता हुआ कोठी के पिछवाड़े में पहुंचा । वहां एक बहुत बड़ा उद्यान था जिसके बीच में स्वीमिंग पूल था और जिसके आगे शूटिंग रेंज था ।
पिछवाड़े में पहुंचते ही शूटिंग की आवाज आने लगी थी । स्वीमिंग पूल से पार हो जाने के बाद मुझे एक उम्रदराज आदमी दिखाई दिया जो कि रायफल से दूर टंगे टारगेट पर गोलियों से निशाना साध रहा था । मैंने देखा कि वो आदमी खड़ा होकर रायफल चलाने की जगह बैठकर ऐसा कर रहा था और जिस कुर्सी पर वो बैठा था वो एक व्हील चेयर थी ।
“मिस्टर माथुर अपाहिज हैं ।” नायर धीरे से बोला, “दो साल पहले लकवे के शिकार हो गए थे । दोनों टांगे बेकार हो गई हैं । बस, कमर से ऊपर के ही अंग चलते हैं ।”
“ओह ! फिर तो कहीं आते-जाते तो क्या होंगे !”
“बहुत कम आते-जाते हैं । बहुत ही कम । तभी जब कहीं जाना इंतहाई जरूरी हो ।”
“कोई इलाज वगैरह....”
“कोई इलाज नहीं । इंग्लेंड अमरीका तक के डॉक्टर इन्हें लाइलाज घोपित कर चुके हैं ।”
“दैट्स टू बैड ।”
हम पीछे से उनकी ओर बढे ।
मेरे देखते-देखते माथुर ने रायफल से जितनी भी गोलियां चलाई वो तमाम की तमाम टार्गेट से कहीं-न-कहीं टकराई । निशाना खूब था उसका ।
हम करीब पहुंचे तो उसने रायफल रख दी ।
मैंने देखा कि अपाहिज होते हुए भी साठ साल की उम्र के लिहाज से उसकी तंदरुस्ती बुरी नहीं थी । उसके चेहरे पर चमक थी और बाल उस उम्र में भी आधे से ज्यादा काले थे ।
उसकी सूरत से यूं लगता था जैसे जिंदगी की हर देखने लायक चीज कई-कई बार देख चुका था और पहली बार देखने पर भी किसी चीज का उस पर कोई खास रौब गालिब नहीं हुआ था ।
इसे कहते हैं खालिस बड़ा आदमी- मैंने मन ही मन सोचा ।
“सर” नायर ने आगे बढ़कर उसे बताया, “मिस्टर कोहली हैज अराइवड ।”
उसने पैनी निगाहों से मेरी तरफ देखा ।
मैंने हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया ।
मेरे अभिवादन पर उसने कोई खास गौर फरमाया हो, ऐसा न लगा । उसने अपने सैक्रेट्री को इशारा किया जो कि फौरन लम्बे डग भरता वहां से रुखसत हो गया ।
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