RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 4
पुनीत खेतान से बहुत कठिनाई से मेरी मुलाकात हो पाई । शक्तिनगर में स्थित अपने ऑफिस से वो आनन-फानन कहीं कूच की तैयारी कर रहा था कि मैं वहां पहुंचा था ।
मैंने उसे अपना कार्ड दिया ।
“मदान साहब ने फोन पर तुम्हारा जिक्र किया ।” वो कार्ड पर एक सरसरी निगाह डालकर उसे मेज पर एक ओर रखता हुआ बोला ।
“मदान साहब से बात हो गई आपकी ?” मैं बोला ।
“अभी हुई है । मैंने फौरन मैटकाफ रोड पहुंचना है, इसलिए तुम अगर फिर कभी.....”
“यानी कि कत्ल की खबर आपको हो चुकी है ।”
उसने सकपकाकर मेरी तरफ देखा ।
“आप पुलिस के बुलावे पर मैटकाफ रोड जा रहे हैं या अपने क्लायंट की हिमायत के लिए उसके बुलावे पर ?”
“क्लायंट के आई मीन मदान साहब के बुलावे पर ।”
“कत्ल की बाबत कुछ मालूम तो अभी होगा नहीं आपको !”
“अभी नहीं मालूम । फोन पर मदान साहब ने इतना ही कहा था कि शशिकांत का कत्ल हो गया था और मैं फौरन मैटकाफ रोड पहुंचूं ।”
“फिर तो आप बैठ जाइए । कत्ल के बारे में कुछ जानकर जाएंगे तो आप और आपका क्लायंट - जो कि मेरा भी क्लायंट है - दोनों फायदे में रहेंगे ।”
“मदान साहब तुम्हारे भी क्लायंट हैं ?”
“हां । उन्होंने मुझे शशिकांत के कातिल का पता लगाने का कार्यभार सौंपा है ।”
“आई सी । यहां क्यों आए ?”
“इसी काम से । अपनी इन्वेस्टिगेशन के सन्दर्भ में आपसे चंद सवाल करने ।”
“मेरा कत्ल से क्या लेना देना है ?”
“कत्ल से न सही, उस शख्स से तो लेना-देना था जिसका कि कत्ल हुआ है ।”
“ही वाज ओनली ए क्लायंट । लाइक एनी अदर क्लायंट ।”
“अग्रीड । लेकिन इत्तेफाक से अपने कत्ल से थोड़ी देर पहले वो आपकी सोहवत में था ।”
“तुम क्या चाहते हो ?”
“पहले तो यही चाहता हूं कि बैठ जाइए और मुझे भी बैठने को कहिये ।”
“ठीक है ।” वह अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर ढेर हो गया और बोला, “प्लीज सिट डाउन लेकिन ज्यादा वक्त न लगाना वर्ना साहब खफा हो जायेंगे ।”
“जब आप ये बतायेंगें कि आप मेरी वजह से लेट हुए थे खफा नहीं होंगें ।”
“ओके । ओके । एज यू विश ।”
“थैंक्यु ।” मैं बोला और मैंने ऑफिस में चारों ओर निगाह डाली । वो बहुत ही शानदार ऑफिस था । उसका वो निजी कक्ष ही नहीं बाकी का सारा ऑफिस, जहां कि सात-आठ मुलाजिम काम कर रहे थे, भी उतना ही शानदार और सुसज्जित था ।
और उससे भी ज्यादा शानदार और सुसज्जित वो खुद था । आयु में वो पैंतीस और चालीस के बीच में कहीं था । फैशन पर उसकी हद से ज्यादा आस्था मालूम होती थी । वो निहायत शानदार सूट पहने था, उसके बाल आधुनिकतम स्टाइल से कटे हुए थे और बड़े करीने से सिर पर सजे हुए थे । आईब्रोज औरतों की तरह बनी हुई थीं और चेहरे की थ्रेडिंग हुई थी । अपनी दायीं कलाई में वो भैंस के गले में बांधने वाली सांकल जितना मोटा आईडेंटीटी ब्रेसलेट पहने था । अपने बायें हाथ की एक उंगली में वो नीलम की अंगूठी पहने था और कलाई पर कम-से-कम पचास हजार रुपए कीमत की राडो की घड़ी बांधे था । कहने का तात्पर्य ये था कि वो सिर्फ रईस ही नहीं, रईसमिजाज भी था ।
“कुछ पियोगे ?” वो बोला ।
“सिगरेट ।” मैंने जेब से अपना डनहिल का पैकेट निकाला, “बस । और कुछ फिर कभी । यूं टाइम बचेगा ।”
मैंने एक सिगरेट उसे दिया और एक खुद लिया । उसने जेब से सोने का सिगरेट लाइटर निकालकर दोनों सिगरेट सुलगाए ।
“शूट ।” फिर वो बोला ।
प्रत्युत्तर में सबसे पहले मैंने संक्षेप में उसके सामने वारदात का और मौकाएवारदात का खाका खींचा ।
“हूं ।” वो बोला ।
“कल आप वहां किस सिलसिले में गए थे ?” मैंने पूछा ।
“भई, क्लायंट ने बुलाया था सो गया था । और सिलसिला क्या होना था ?”
“किस सिलसिले में बुलाया था ?”
“यही बिजनेस डिस्कशंस ।”
“कितने बजे पहुंचे थे आप ?”
“छ: पांच पर । छ: बजे की अप्वाइंटमेंट थी । पांच मिनट लेट हो गया था ।”
“तब मूड कैसा था आपके मेजबान का ?”
“अच्छा नहीं था । खराब था । खराब मूड से मेरे पहुंचते ही नवाज किया था उसने मुझे ।”
वो तनिक हंसा ।
“कैसे ?” मैंने पूछा ।
“इसी बात पर गले पड़ने को कोशिश करने लगा कि मैं पांच मिनट लेट क्यों आया था ! पहले तो मैंने बात को ये कहकर टालने की कोशिश की कि उसकी घड़ी गलत होगी लेकिन वो बोला कि पीछे वाल केबिनट पर पड़ी एटलस के सूरत वाली उसकी घड़ी गलत हो ही नहीं सकती थी । पांच मिनट की देरी के लिए दस बार सॉरी कहलवा कर पट्ठे ने जान छोड़ी ।”
“आई सी । किसी और बात को भी लेकर आप दोनों में तकरार हुई थी ?”
उसने घूर के मुझे देखा ।
“किन्हीं कागजात के मामले को लेकर ?” अपलक उसकी निगाह से निगाह मिलाए मैं बोला ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?” वो बोला, फिर तत्काल उसने जोड़ा, “ओहो, तो उस लड़की से तुम्हारी बात हो चुकी है । उसी ने बताया होगा ।”
“किसने ?”
“उसकी सेल्फ अपोइंटेड हाउसकीपर सुजाता मेहरा ने ।”
“उसी ने बताया था ।”
“बेचारी से बहुत बुरी तरह पेश आया था शशिकांत । मेरे सामने ही मिट्टी झाड़ के रख दी उसकी । इतनी सी बात पर काटने को दौड़ रहा था उसे कि उसका ब्वाय फ्रेंड उसे डेट पर ले जाने के लिए वहां क्यों आ रहा था । इतना जलील नहीं करना चाहिये किसी को । और वो भी किसी के सामने । मैं वहां मौजूद न होता तो लड़की शायद उसकी बकबक झेल भी लेती । मेरे सामने नहीं बर्दाश्त हुई उसे अपनी जिल्लत । कोठी की चाबी मुंह पर मार के गई वो वहां से ।”
“शशिकान्त पर इस बात का क्या असर हुआ ?”
“कुछ भी नहीं ।”
“वो कितने बजे गई थी ?”
“पूरे सात बजे ।”
“उसका ब्वाय फ्रेंड डिसूजा जो वहां आने वाला था और उस फसाद की जड़ था, वहां आया था ?”
“हां । सवा सात बजे आया था वो वहां । शशिकांत उस पर भी फट पड़ा था कि उसने उसके घर में घुसने की जुर्रत कैसे की थी जबकि घर में वो घुसा ही नहीं था । वो तो बेचारा दरवाजे पर ही खड़ा सुजाता के बारे में पूछ रहा था । शशिकांत गर्जने लगा कि वो कंपाउंड में भी क्यों दाखिल हुआ ! बोला, दफा हो जा वरना गोली मार दूंगा । बेचारे की शक्ल देखने वाली थी तब । तब मैंने ही उसे कहा था कि सुजाता को एकाएक वहां से चले जाना पड़ा था और वो जरूर उसके इन्तजार में बाहर सड़क पर या करीब के बस स्टैंड पर ही कहीं होगी । वो फौरन वहां से चला गया था ।”
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